डॉक्टरों की प्राइवेट प्रैक्टिस की जासूसी करेगी डिटेक्टिव एजेंसी, IGIMS के फैसले से चिकित्सकों में हड़कंप
आईजीआईएमएस के द्वारा पिछले दिनों एक गए फैसले से डॉक्टरों में हड़कंप मच गया है। दरअसल, आईजीआईएमएस के चिकित्सकों पर निगरानी रखने के लिए अस्पताल प्रशासन निजी डिटेक्टिव एजेंसी की मदद लेगा।
निजी प्रैक्टिस करने वाले व अलग अस्पताल चलाने वाले आईजीआईएमएस के चिकित्सकों पर निगरानी रखने के लिए अस्पताल प्रशासन निजी डिटेक्टिव एजेंसी की मदद लेगा। आईजीआईएमएस के इस फैसले की कुछ लोगों ने कड़ी आलोचना की है। बता दें कि आईजीआईएमएस में 300 से अधिक चिकित्सक हैं। निजी प्रैक्टिस नहीं करने के लिए उन्हें नन प्रैक्टिसिंग अलाउंस (एनपीए) भी मिलता है। यह उनकी बेसिक सैलरी का 25 होता है। आईजीआईएमएस की सर्वोच्च संस्था, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स (बीओजी) के पूर्व सदस्य, नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार सिंह ने कहा है कि प्राइवेट डिटेक्टिव एजेंसी को काम पर रखने के पूरे पहलू पर गौर करने के लिए एक समिति बनाने का निर्णय लिया गया है।
डॉ. सिंह ने कहा कि आईजीआईएमएस में डॉक्टरों द्वारा निजी प्रैक्टिस करना संस्थान के विकास में एक बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा कि मैंने कई बीओजी बैठकों में निजी प्रैक्टिस का मामला उठाया, लेकिन कुछ भी ठोस नहीं हुआ और यह अभी भी एक पहेली बनी हुई है। अब समय आ गया है कि आईजीआईएमएस यह जिम्मेदारी आर्थिक अपराध इकाई (ईओयू) या सतर्कता विभाग जैसी स्वतंत्र सरकारी जांच एजेंसी को सौंप दे। इससे न केवल लागत बचेगी बल्कि निजी जासूसों की सेवाएं लेने में हितों के टकराव से भी बचा जा सकेगा। आईजीआईएमएस डॉक्टरों के निजी प्रैक्टिस पर अंकुश लगाने और दोषी चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई करने में असफल रहा है।
वहीं आईजीआईएमएस के पूर्व निदेशक और वर्तमान में श्री बालाजी विद्यापीठ, पुडुचेरी के कुलपति डॉ. एनआर विश्वास ने कहा है कि हमने बहुत कोशिश की लेकिन आईजीआईएमएस में डॉक्टरों द्वारा निजी प्रैक्टिस को रोकने में असफल रहे। कई सफलताओं के बावजूद, मैं इस मामले में अपनी विफलता स्वीकार करता हूं। डॉ बिस्वास ने कहा कि मैंने पश्चिम बंगाल से निजी जासूसों को नियुक्त करने की भी कोशिश की, लेकिन कोरोनो महामारी आने के कारण यह काम नहीं हो सका और फिर मेरा कार्यकाल आईजीआईएमएस में समाप्त हो गया।
गौरतलब है कि मार्च 2014 में एक सरकारी फ्लाइंड स्क्वायड ने आईजीआईएमएस के छह डॉक्टरों को निजी प्रैक्टिस में लिप्त होने के आरोप में रंगे हाथ पकड़ा था। मामला बीओजी में ले जाया गया और उनकी सेवाएं समाप्त करने की सिफारिश की गई, लेकिन आरोपियों को सिर्फ चेतावनी देकर छोड़ दिया गया।
बता दें कि ऐसे चिकित्सकों की सेवा की समीक्षा, सेवा विस्तार या कार्रवाई के लिए भी मुख्य सतर्कता अधिकारी सह डीन डॉ. ओम कुमार की अध्यक्षता में चार सदस्यीय कमिटी बनाई गई है। इसमें अस्पताल अधीक्षक डॉ. मनीष मंडल, अनिल कुमार चौधरी और सदस्य सचिव के रूप में फिजियोथेरेपी के हेड डॉ. विनय कुमार पांडेय शामिल हैं। आईजीआईएमएस के अधीक्षक डॉ मनीष मंडल ने बताया है कि दो-तीन वर्षों से बड़ी संख्या में चिकित्सक निजी प्रैक्टिस में जुट गए हैं। इससे आईजीआईएमएस में इलाज प्रभावित होने लगा है। कई बार मरीज चिकित्सक पर अपने निजी क्लिनिक में भेजे जाने का आरोप लगा चुके हैं। इससे छवि भी खराब होती है।