कोरोना लॉकडाउन पलायन: राजस्थान से साइकिल चलाकर आ गए पटना, किसी ने पूछा तक नहीं
रंजीत लॉकडाउन से ठीक पहले गांव से राजस्थान नौकरी के लिए निकला था। साथ में गांव के दो दोस्त भी गए। तीनों को काम भी मिल गया और पैसा भी आने लगा। लेकिन, अचानक से कोरोना का संक्रमण बढ़ा और लॉकडाउन...
रंजीत लॉकडाउन से ठीक पहले गांव से राजस्थान नौकरी के लिए निकला था। साथ में गांव के दो दोस्त भी गए। तीनों को काम भी मिल गया और पैसा भी आने लगा। लेकिन, अचानक से कोरोना का संक्रमण बढ़ा और लॉकडाउन में फैक्ट्री बंद हो गई। अब जेब में जो पैसा था वह कुछ दिन चला बाद में दाने-दाने को मोहताज हो गए। जमा पूंजी सब खर्च हो गई इसके बाद समझ में नहीं आ रहा था कि पेट की आग कैसे बुझाए। कंपनी के मैनेजर से बात किया, लेकिन वह भी मदद से इनकार कर दिया। घर वालों कर्ज लेकर पैसा भेजा तब जाकर तीनों अलग-अलग साइकिल से 954 किमी का सफर कर सोमवार को पटना पहुंचे। कोरोना के हॉट स्पॉट भिवाड़ी से आने के बाद भी न तो कहीं बॉडर पर जांच हुई और न ही पटना में स्क्र्रींनग की गई।
चार बच्चों के साथ जहानाबाद से पैदल आ गए पटना
फुलवारी के ढिबरा निवासी दिलीप राम की ससुराल जहानाबाद के कुर्थी में है। पत्नी और बच्चे ससुराल में थे। ससुराल में ही उसे तीन बेटियों पर एक बेटा हुआ। बेटे की पूजा पाठ के लिए ससुराल वालों ने उसकी पत्नी बच्चों को वहीं रोक लिया था। छठ में पूजा हुई लेकिन लॉकडाउन के कारण वह वहां से निकल नहीं पाए। दिलीप राम का कहना है कि कोई चारा उसके पास नहीं था कि वह बच्चों को लेकर घर तक आए। कई बार कोशिश किया, लेकिन पुलिस की सख्ती के कारण वह घर से निकला ही नहीं। ऐसे में वह काफी परेशान हो गया और अंत में पैदल ही बच्चों को लेकर पटना के लिए निकल पड़ा। सोमवार को पटना पहुंचा तो बच्चों के पत्नी व उसकी भी हालत खराब हो गई थी। कड़ी धूप में तीन मासूम बेटियों और एक दुधमुहे बच्चे को लेकर एक कदम चलना मुश्किल हो गया था। पत्नी बेटी के साथ छोटे बेटे को गोद में लेकर कुछ दूर चलती थी तो दिलीप भी दो बेटियों के साथ सामान लेकर चलता था। ऐसे करते वह पटना पहुंचे। दर्द से सभी की हालत खराब थी। बच्चों की हालत खराब देख आसपास के लोगों ने मदद की और ,खाने पीने का सामन दिया। बाद में पुलिस अपने साधन से उन्हें भेजा।
दिन रात साइकिल चलाकर पहुंचे
रंजीत का कहना है कि वह मूल रूप से मुजफ्फरपुर का रहने वाला है। घर की हालत बहुत खराब है। बाहर जाकर ही वह कुछ काम करता है। गांव के ही दो दोस्त धर्मेंद्र और इंद्रजीत के साथ वह लॉकडाउन से कुछ ही दिन पहले राजस्थान के भिवाड़ी गया था। जाने के साथ ही तीनों प्लास्टिक की फैक्ट्री में काम पर लग गए। लेकिन थोड़े ही दिन में लॉकडाउन के बाद फैक्ट्री बंद हो गई। रंजीत का कहना है कि हर किसी ने इस लॉकडाउन का फायदा उठाया। राशन वाले से लेकर अन्य सामान भी अधिक दाम में दिया गया। वह परेशान हो गया और समझ नहीं पा रहा था। इतनी सख्ती हो गई कि वह वहां से निकल नहीं पा रहा था। रंजीत का कहना है कि एक टाइम वह पानी पीकर बिता लेता था और जब भूख बढ़ती थी तो भूजा खाकर रात बिताता था।
घर वालों से फोनकर रोने लगे प्रवासी
किसी तरह से दो माह काटा और जब लॉकडाउन में थोड़ी ढील हुई तो घर वालों से पैसा मंगाकर साइकिल खरीदा। रंजीत का कहना है कि तीन हजार की साइकिल भी उसे 45 सौ की मिली। दोनों दोस्तों ने भी दो-दो हजार की पुरानी साइकिल ली और उसी से वह 10 मई को पटना के लिए निकल पड़े। रंजीत का कहना है कि दिन रात वह साइकिल चलाए। पांव भर जाता था और दर्द बढ़ता था तो रुक जाते थे, लेकिन कोशिश यही किया कि कहीं रुकना नहीं पड़े। दिन रात चलते रहे और पानी व भूजा खाकर पटना पहुंच गए। रंजीत ने कहा रास्ते में कहीं कोई जांच नहीं की गई है।