चैत्र नवरात्र: हे मां! विपदा से लड़ने की शक्ति देना
इस बार चैत्र नवरात्र में कोरोना रूपी राक्षस ने श्रद्धालुओं को चुनौती दी है। हर बार राक्षसों का वध कर मां दुर्गा ने अपने भक्तों की रक्षा की है। इस बार मां दुर्गा राक्षस रूपी कोरोना का वध करेगी। इसी...
इस बार चैत्र नवरात्र में कोरोना रूपी राक्षस ने श्रद्धालुओं को चुनौती दी है। हर बार राक्षसों का वध कर मां दुर्गा ने अपने भक्तों की रक्षा की है। इस बार मां दुर्गा राक्षस रूपी कोरोना का वध करेगी। इसी सोच के साथ राजधानी पटना के घर में मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की। भक्तों को पूरा भरोसा है कि पूजा-अर्चना करने पर मां की कृपा बरसेगी, जिससे इस राक्षस का वध होगा। यह राक्षस जहां भी भीड़ देखता है, इसकी ताकत बढ़ जाती है।
गली-मोहल्लों के कुछ मंदिरों में लोग जुटे, लेकिन पुजारियों ने श्रद्धालुओं से आग्रह किया है कि अपने घरों में रहकर ही मां की पूजा-अर्चना करें। मंदिरों में न जाएं। कहीं भी भीड़ न लगाएं। ऐसे में लॉक डाउन के बीच भी श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं रही। बुधवार को नवलखा मंदिर में चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन चैत्र प्रतिपदा पर मां शैलपुत्री की विधिवत पूजा कर कलश स्थापना की गई। वहीं कुछ घरों व मंदिरों में कलश स्थापना हुई। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन माता के प्रथम रूप मां शैलपुत्री की पूजा होती है।
मां शैलपुत्री को पर्वतराज हिमालय की पुत्री माना जाता है। इनका वाहन वृषभ है। इसलिए इनको वृषोरूढ़ा और उमा के नाम से भी जाना जाता है। देवी सती ने जब पुनर्जन्म लिया, तो इसी रूप में प्रकट हुईं। इसलिए देवी के पहले स्वरूप के तौर पर माता शैलपुत्री की पूजा होती है। मां शैलपुत्री की उत्पत्ति शैल से हुई है। नवदुर्गाओं में प्रथम देवी शैलपुत्री अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल धारण करती हैं। यह त्रिशूल जहां भक्तों को अभयदान देता है, वहीं पापियों का विनाश करता है। बाएं हाथ में सुशोभित कमल का पुष्प ज्ञान और शांति का प्रतीक है।
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