मानसून की बेरुखी से सुखाड़ की राह पर बिहार? सावन में खेतों में दरार, राज्य की नौ नदियां अब भी ड्राई
मानसून की बेरुखी से बिहार के कई जिलों में सूखे के हालात बनने लगे हैं। किसान परेशान हैं। राज्य की कई नदियां सावन महीने में सूखीं हैं और सावन के महीने में धान के खेतों में दरार पड़ रहे हैं।
बिहार के कई जिलों में सूखे के हालात बनने लगे हैं। किसान परेशान हैं। पंप सेट के सहारे किसी तरह पौधों को जिंदा रखने की कोशिश की जा रही है। फिर भी कई जिलों में धान के पौधे सूखने लगे हैं। राज्य की कई नदियां सावन महीने में सूखीं हैं। धान का कटोरा कहे जाने वाला रोहतास में इसबार धान पर संकट के बादल गहराने लगे हैं। सिंचाई के अभाव में अधिकतर क्षेत्रों में धान की रोपनी शुरू नहीं हुई है। नौहट्टा, रोहतास के आलावा सासाराम प्रखंड के दक्षिणी भाग समेत लगभग हरेक प्रखंडों में धान की रोपनी प्रभावित है। किसान कमलेश कुमार, शिवपूजन चौधरी ने बताया कि जो खेत तैयार हो चुके थे, उसमें आज सिंचाई के अभाव में दरारें आ गई हैं जिले में अबतक 292.30 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन मात्र 157.7 मिमी ही बारिश हुई है।
सीवान में 15 जुलाई से 26 जुलाई के बीच सिर्फ एक दिन बारिश हुई है। यह बारिश धान की खेती के लिए पर्याप्त नहीं है। धान की फसल पीले पड़ रहे हैं। यही स्थिति कैमूर की है। खेतों में दरार देख की चिंता बढ़ने लगी है। धान की नर्सरी व फसल लगे खेत में दरार पड़ने से पौधे सूखकर गिरने लगे हैं। एक पखवाड़े से बारिश नहीं हो रही है।
सारण के मझवलिया के किसान राजेश सिंह, नवादा के किसान बलिराम राय व अमर राय ने बताया कि 15 से बीस फीसदी किसानों ने निजी पंपसेट या नहर के पानी में पंपसेट लगा कर धान की रोपनी की है। अधिकतर किसान बारिश का इंतजार कर रहे हैं। भोजपुर में रोपनी के अंतिम दौर में भी बारिश नहीं हो रही है और नहरें भी सूखी पड़ी हैं। इससे जिले में सूखे के हालात उत्पन्न हो रहे हैं। जहानाबाद जिले में 17.5 प्रतिशत और अरवल में 25 फीसदी धान की रोपनी हुई है।
मानसून के समय भी सूबे का नदियों का बुरा हाल है। खासकर दक्षिण बिहार की नदियों की स्थिति काफी खराब है। एक ओर जहां 9 नदियां सूखी पड़ी हैं और पनी को तरस रही हैं वहीं 10 नदियों में इतना भी पानी नहीं कि उसे मापा जा सके। वे गेजस्तर से नीचे ही हैं। ऐसे पिछले पांच-छह वर्षों में गर्मी की दस्तक देते ही नदियों के सूखने का सिलसिला शुरू हो जाता है। इधर, यह समस्या अधिक गंभीर होती गयी है। हाल यह है कि मानसून में भी नदियां सूख रही हैं। वे बूंद-बूंद पानी को तरस रही हैं। नदियों के सूखने का एक बड़ा दुष्प्रभाव यह हो रहा है कि उनके बड़े हिस्से पर अतिक्रमण शुरू हो गया है।
नदियों के सूखने और उनका जलस्तर गेजस्तर से नीचे जाने के कारण कुंआ, तालाब, आहर-पईनों के सूखने का सिलसिला तेज हो गया है। नहरों में पानी नहीं है। खेतों से नमी कम होती जा रही है। पहाड़ी क्षेत्रों में भी जलस्रोत तेजी से खत्म हो रहे हैं। दरअसल, सूबे में नदियों का संकट 90 के दशक के बाद बढ़ने लगा था। लेकिन तब स्थिति इतनी गंभीर नहीं थी। तब नदियों में पानी घटता था, उसकी कमी होती थी लेकिन वह खत्म नहीं होता था। रात में तालाब-कुआं रिचार्ज हो जाते थे। लेकिन 1990 के बाद सूबे में यह संकट बढ़ता चला गया। आज स्थिति काफी गंभीर हो चुकी है।
ये नदियां सूखी हैं
कररुआ- पटना, तिलैया- नवादा, काव- रोहतास, भूतही, धोबा, लोकायन, मोहाने, नोनई व पंचाने- नालंदा
इनमें गेजस्तर से नीचे पानी
बटाने-औरंगाबाद, खलखलिया- भागलपुर, जीवछ- दरभंगा, जमुने- गया, मोरहर-गया, दुर्गावती-कैमूर, नूना-मुजफ्फरपुर, सकरी- नवादा, बलान- समस्तीपुर, मरहा-सीतामढ़ी