बिहार क्रिकेट में गुटबाजी चरम पर, मुंबई से रणजी मैच खेलने स्टेडियम में पहुंच गई दो टीमें
पटना में हो रहे रणजी ट्रॉफी मैच के दौरान मुंबई के खिलाफ बिहार की दो टीमें खेलने मोइन-उल-हक स्टेडियम पहुंच गई। यह देख वहां मौजूद लोग भी अचरज में पड़ गए।
बिहार क्रिकेट में बीते दो दशकों से गुटबाजी चली आ रही है। अंदरूनी कलह के कारण बिहार क्रिकेट एसोसिएशन (बीसीए) को भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) की नाराजगी का सामना करना पड़ा और साथ ही कुछ अच्छी प्रतिभाएं भी राज्य से दूर हो गईं। गुटबाजी की गठना का ताजा मामला शुक्रवार को पटना में देखने को मिला। जब बिहार की दो टीमें पटना के मोइन-उल-हक स्टेडियम में मुंबई के खिलाफ रणजी ट्रॉफी एलीट बी ग्रुप मैच खेलने पहुंच गईं। इसमें से एक टीम का चयन बीसीए के सचिव अमित कुमार ने तो दूसरी का बीसीए अध्यक्ष राकेश तिवारी ने किया था।
आखिर में तिवारी की टीम मैच खेलने में सफल रही। इस टीम की अगुवाई बाएं हाथ के अनुभवी स्पिनर आशुतोष अमन कर रहे हैं। गुटबाजी की वजह से पटना में जन्मे और पले-बढ़े क्रिकेटर ईशान किशन और गोपालगंज के रहने वाले तेज गेंदबाज मुकेश कुमार की सेवाएं लेने में बीसीए विफल रहा। ये खिलाड़ी झारखंड और बंगाल के लिए खेलकर भारतीय टीम का हिस्सा बन गए हैं। इन दोनों के अलावा कई और खिलाड़ियों ने बेहतर माहौल में क्रिकेट करियर बनाने के लिए दूसरे राज्यों का रुख करना बेहतर समझा।
बीसीए के पूर्व अधिकारी और 2013 आईपीएल 'स्पॉट फिक्सिंग' मामले के मूल याचिकाकर्ता आदित्य वर्मा ने बताया कि रणजी ट्रॉफी मैच के लिए मोइन-उल-हक स्टेडियम का चयन क्यों किया? यह भी बड़ा सवाल है। राजबंशी नगर के ऊर्जा स्टेडियम में बेहतर सुविधाएं हैं। यह स्टेडियम भी पटना में ही है।
उन्होंने कहा कि इस तरह के प्रकरणों से केवल बिहार क्रिकेट को नुकसान होगा क्योंकि हमारे पास बहुत सारे प्रतिभाशाली क्रिकेटर हैं। बीसीए में कलह की शुरुआत साल 2002 से हुई थी, जब बीसीसीआई के तत्कालीन अध्यक्ष जगमोहन डालमिया ने पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा संचालित राज्य के क्रिकेट संघ को निलंबित कर दिया था।
डालमिया शासन ने अमिताभ चौधरी के नेतृत्व वाले गुट को मान्यता दी, जो बाद में बीसीसीआई के कार्यवाहक सचिव बने। इस बीच, पूर्व भारतीय हरफनमौला खिलाड़ी कीर्ति आजाद द्वारा 'एसोसिएशन ऑफ बिहार क्रिकेट' का गठन किया गया , जबकि वर्मा और प्रेम रंजन पटेल ने 'क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ बिहार' का गठन किया।
राज्य के एक दिग्गज क्रिकेट कोच ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि एक समय में बिहार में चार क्रिकेट संघ थे। इससे प्रशासन गड़बड़ा गया और 2018 में बीसीसीआई से मिलने वाला पैसा भी बंद हो गया। उन्होंने कहा कि इस बीच राज्य के कई बेहतरीन खिलाड़ी दूसरे राज्यों में क्रिकेट खेलने चले गए। इसमें खिलाड़ियों की कोई गलती नहीं है क्योंकि कोई भी इस गंदी राजनीति में फंसना नहीं चाहता है। स्थिति यह है कि एक युवा क्रिकेटर को चयन ट्रायल में भी मौका पाने के लिए अधिकारियों को रिश्वत देनी पड़ती है। कोच ने आगे कहा कि कई पदाधिकारी केवल पैसा कमाने के लिए क्रिकेट संघ में शामिल होते हैं। उन्हें क्रिकेट के विकास में कोई दिलचस्पी नहीं है।