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मजदूर दिवस: कमाने की चिंता, खाने के पड़े लाले, कैसे मनाएं मजदूर दिवस

मजदूर मुसीबत में हैं। जिंदगी चौराहे पर है। काम बंद हैं, लेकिन पेट में भूख की आग जल रही है। भूख मिटाने के लिए कोई नई राह निकाल रहा है, तो कोई हारकर रोड पर खड़ा हो जा रहा है...इस इंतजार में कोई सामाजिक...

पटना, हिन्दुस्तान टीम Fri, 1 May 2020 07:13 AM
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मजदूर मुसीबत में हैं। जिंदगी चौराहे पर है। काम बंद हैं, लेकिन पेट में भूख की आग जल रही है। भूख मिटाने के लिए कोई नई राह निकाल रहा है, तो कोई हारकर रोड पर खड़ा हो जा रहा है...इस इंतजार में कोई सामाजिक संगठन आएगा और खाने का पैकेट दे देगा। कोरोना महामारी के चलते मजदूरों की जिंदगी बेपटरी हो गई है। लॉकडाउन के चलते हजारों श्रमिक राजधानी समेत विभिन्न जगहों पर फंसे हैं। मजदूर दिवस पर यह जानने की कोशिश की गई कि कैसे उनकी जिंदगी चल रही है। 

राजधानी पटना आज से डेढ़ महीने पहले गुलजार थी। सुबह से ही बाजार, मॉल और दुकानें कामगारों से गुलजार होने लगती थी। अब ऐसा नहीं है। राजधानी में कई जगहों पर सुबह-सुबह ही मजदूरों की मंडी सजती थी। यहां काम भी था और कामगार भी। किसी को भवन निर्मण से जुड़े मजदूर चाहिए या अन्य सामान की ढुलाई के लिए कोई मजदूर, सीधे यहां पहुंचते थे। चाय की दुकानों के पास रेट तय होता था। उन चौबारों पर आज सन्नाटा पसरा है । न  तो वहां काम है और ना कामगार। हिन्दुस्तान की पड़ताल में मजदूरों की इन मंडियों में सन्नाटा पसरा मिला। वहां मजदूरों के बारे में जानकारी देने वाला भी कोई ना था। 

दो सौ की संख्या में रहते थे श्रमिक 
बेली रोड पर सबसे बड़ी मजदूरों की मंडी जगदेव पथ के निकट पिलर नंबर चार के पास लगती थी  सुबह 5:30 बजे से डेढ़ सौ से 200 की संख्या में कामगार यहां जमा होते थे लेकिन पिछले डेढ़ महीने से यहां मातमी सन्नाटा पसरा है। यहां अधिकतर मजदूर भवन निर्माण और सामान धुलाई कार्य के लिए जुटते थे। आसपास बालू, सीमेंट और गिट्टी की दुकानें होने की वजह से काफी संख्या में ठेला चालक भी जुटा करते थे। लॉकडाउन के बाद दो-चार दिनों तक इक्के-दुक्के मजदूर तो दिखे लेकिन जैसे-जैसे सड़कों पर सख्ती बढ़ती गई, इनकी संख्या घटती चली गई। इनके पास ना तो रहने का स्थायी घर था और ना रोजगार के कोई अन्य साधन। पैसे में खाने के संकट से जूझते ये मजदूर आज कहां है उनकी कोई खोज खबर नहीं है। राजधानी में फंसे मजदूर सामाजिक संगठन के भरोसे रह रहे हैं।

काम ही नहीं है, कैसे मनाएं मजदूर दिवस
लॉकडाउन के कारण फैक्ट्रियां बीते लगभव सवा महीने से बंद पड़ी हैं। इस बार मजदूरों को एक मई की छुट्टी की कोई खुशी नहीं है। उनके सिर पर रोजगार जाने का संकट मंडरा रहा है। मजदूरों को अब फैक्ट्री खुलने का बेसब्री से इंतजार है। फैक्ट्रियों की ठंडी पड़ चुकी चिमनियों को देखकर मजदूरों का दिल बैठ रहा है।  

पटना शहर में बिहटा, फतुहा, पाटलिपुत्रा और दीदारगंज के पास चल रहे लगभग दो सौ फैक्ट्रियों के लगभग 20 हजार मजदूर लॉकडाउन में सीधे-सीधे प्रभावित हैं। राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस (इंटक) के प्रदेश अध्यक्ष चन्द्र प्रकार्श ंसह ने कहा कि इस बार मजदूर दिवस पर मजदूरों के हाथ और पेट दोनो खाली है। इस बार इन्हें वेतन मिलेगा या नहीं यह कहना मुश्किल है। मजदूरों को वेतन के लिए सरकारी सहायता की मांग इनके नियोक्ता उद्यमी कर रहे हैं। राज्य में औद्योगिक क्षेत्रों के मजदूरों की संख्या डेढ़ लाख से कम नहीं होगी। 

संगठित क्षेत्र के मजदूरों से ज्यादा परेशानी असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को है। पटना जिला में इन मजदूरों की काफी आबादी है। इंटक प्रदेश अध्यक्ष की माने तो पटना जिला में इनकी संख्या पन्द्रह लाख से ज्यादा है। ये मजदूर दाने-दाने को मोहताज हो गए हैं। 

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