संतान की लंबी आयु के लिए गणेश चतुर्थी पर महिलाओं ने रखा निर्जला व्रत
रघुनाथपुर में संकष्ठी गणेश चतुर्थी पर महिलाओं ने संतान की दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना के लिए निराजल व्रत रखा। चंद्रमा के उदय पर विधि-विधान से भगवान श्रीगणेश की पूजा की गई। महिलाएं गाय के गोबर से...
रघुनाथपुर, एक संवाददाता। संतान के दीर्घायु और सुख-समृद्धि की कामना को लेकर संकष्ठी गणेश चतुर्थी पर शुक्रवार को घर-घर की महिलाओं ने निराजल व्रत रखा। रात में चंद्रमा के उदय होने पर भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की। इसके बाद व्रती महिलाओं ने फलाहार किया। प्रथम पूज्य गणेश भगवान की चतुर्थी पर उनके पूजन के लिए महिलाओं ने दिनभर निराजल व्रत रखा। शाम में चंद्रोदय से पहले स्नान कर नया वस्त्र धारण किया। घर के आंगन में या छत पर पूजा-अर्चना के लिए चौक बनाया। चौक में पूजन की सारी वस्तुएं व भगवान गणेश की प्रतिमा रखी। रात में 9 बजकर 9 मिनट पर चंद्रमा के उदय होते ही विधि-विधान से पूजन कर तांबे के पात्र से अर्घ्य दिया। इसके बाद लाल रोड़ी, चंदन, कुश, दूर्वा, फूल, अक्षत, शमी पत्र, फल, मिष्ठान व तिल से बने लड्डू आदि को अर्पित किया। जिन महिलाओं के पास भगवान गणेश की फोटो या प्रतिमा नहीं थी, उन महिलाओं ने गाय के गोबर से ही भगवान गणेश की प्रतिमा स्वरूप में आकृति बनाकर पूजा-अर्चना की। इस दिन भगवान गणेश की एकदंत रूप की पूजा हुई। पुरोहितों से महिलाओं ने सुना गणेश चतुर्थी व्रत कथा माघ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को शहर से लेकर गांव तक के मंदिरों व घरों में व्रती महिलाओं ने गणेश चतुर्थी की कथा पुरोहित से सुना। सायंकाल में चंद्र को अर्घ्य देकर पुत्र की दीर्घायु की कामना की। इसके बाद घर में ही अपने से बड़ों का पैर छूकर आशीर्वाद लिया। पुरोहित इस व्रत की कथा में महाराज हरिश्चंद्र के नगर के एक कुम्हार के आंवा से जुड़े प्रसंग का वर्णन किया। भगवान श्री गणेश और कार्तिकेय की पृथ्वी की परिक्रमा वाली कथा सुनाई। जिसमें गणेश ने माता-पिता की ही परिक्रमा करके अपनी बुद्धिमत्ता का परिचय दिया और प्रथम पूज्य बने। जिसमें भगवान शंकर ने उन्हें आर्शीवाद दिया। पुरोहितों ने बताया कि सबसे पहले इस व्रत को द्रौपदी और पांडवों ने ही किया था। इस व्रत के करने से उनके सभी कष्ट दूर हो गए थे और खोया हुआ राज्य भी प्राप्त हो गया था। इधर, कई जगहों पर आसपड़ोस की महिलाओं ने एक जगह इकट्ठा होकर खुद से भी गणेश चतुर्थी व्रत कथा का वाचन किया और सुना।
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