500 वर्ष पुराने बगौरा के उमानाथ मंदिर में स्वंयभू शिवलिंग की पूजा के बाद पूरी होती है मन्नतें
दरौंदा के बगौरा गांव में स्थित बाबा उमानाथ के मंदिर में महाशिवरात्रि के अवसर पर भव्य शिव बारात निकाली जाती है। इस अवसर पर 10,000 से अधिक श्रद्धालु शामिल होते हैं। मंदिर का रंग-रोगन और सजावट की जा रही...

दरौंदा, एक संवाददाता। प्रखंड के बगौरा गांव के शिवाला स्थित बाबा उमानाथ का मंदिर में महाशिवरात्रि की शाम भव्य शिव बारात निकलती है। शिव बारात में 10 हजार से अधिक श्रद्धालु पुरूष व महिलाएं शामिल होते हैं। स्थानीय श्रद्धालुओं द्वारा मंदिर के रंग-रोगन व सफाई के कार्य को अंतिम रूप दिया जा रहा है। महाशिवरात्रि की शाम मंदिर की सजावट भव्य रूप से की जाती है। 11 आचार्य बैदिक मंत्रोच्चार के बीच शिव पार्वती विवाह को सम्पन्न कराया जाता है। महिलाओं द्वारा मंगल गीत भी गए जाते है। मंदिर में बगौरा, कोड़र, ईटहरी, बेनौत, डोहर, दपनी, शेरही, मंछा, मदारीचक, बंगरा, नन्दू टोला सहित कई गांव के श्रद्धालु बाबा उमानाथ की पूजा अर्चना करने आते हैं। 500 वर्ष पुराना शिव मंदिर है शिवाला बगौरा में बाबा उमानाथ शिव मंदिर शिवाला, बगौरा करीब 500 वर्ष पुराना है। यह एक ऐतिहासिक मंदिर है। इस मंदिर का शिवलिंग स्वयंभू है। ग्रामीणों के सहयोग से मंदिर का स्वरूप बदलता गया। लेकिन शिवलिंग यथावत विराजमान है। मंदिर के इतिहास को जानने को लेकर हर कोई उत्सुक रहता है। मंदिर के संरक्षक रमेश नारायण सिंह बताते हैं कि पूर्वजो बताते थे कि यह एक स्वयंभू ऐतिहासिक शिव मंदिर है। इस मंदिर के शिवलिंग की स्थापना नहीं की गई है। बल्कि शिवलिंग पूर्व से ही विराजमान था। करीब 500 वर्ष पूर्व यहां केवल जंगल हुआ करता था। जंगल में पशु घास चरते थे। आस-पास बरगद का पेड़ था। एक बार एक भैंस का सींग बरगद के जड़ में फस गया। सारे चरवाहे इकठ्ठे हुए। कुदाल से बरगद के जड़ को निकालने लगे। इसी दौरान कुदाल की एक चोट शिवलिंग पर पड़ा। चोट पड़ने के साथ ही शिवलिंग का ऊपरी भाग का एक हिस्सा टूट गया। चारो तरफ केवल धुंआ फैल गया। सभी लोग भाग गए। अगले दिन पुनः ग्रामीणों का जत्था वहां पहुंचा। ग्रामीण शिवलिंग देख पूजा अर्चना शुरू कर दिए। ग्रामीणों के सहयोग से समय-समय पर मंदिर बनता गया। करीब 1900 ई में मंदिर को एक चाहरदीवारी के अंदर आकर दिया गया। ग्रामीण पूजा अर्चना करते रहे। सन 1980 के करीब से बाबा उमानाथ के मंदिर को भव्य रूप दिया जाना शुरू हुआ। जो अभी भी चल रहा है। मंदिर में बगौरा, कोड़र, ईटहरी, बेनौत, डोहर, दपनी, शेरही, मंछा, मदारीचक, बंगरा, नन्दू टोला सहित कई गांव के श्रद्धालु बाबा उमानाथ की पूजा अर्चना करने आते हैं। आचार्य जितेन्द्र नाथ पाण्डेय, त्रिपुरारी शरण मिश्रा, सुनील पाण्डेय, रमेश नारायण सिंह, दीनदयाल पाण्डेय, उदय सिंह बताते हैं कि इस मंदिर में जो भी पूजा अर्चना करने आया। वह खाली हाथ नहीं लौटा। सबकी मन्नते पूरी हुई है।
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