Farmers Struggle with Challenges in Pulses Cultivation Damage from Wild Animals and Insects बोले सीवान : अरहर की फसल को नीलगाय और जंगली सुअर कर रहे बर्बाद , Siwan Hindi News - Hindustan
Hindi NewsBihar NewsSiwan NewsFarmers Struggle with Challenges in Pulses Cultivation Damage from Wild Animals and Insects

बोले सीवान : अरहर की फसल को नीलगाय और जंगली सुअर कर रहे बर्बाद

किसान दलहनी फसलों की खेती में कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं। नीलगाय और लंगूर के हमलों के कारण किसान अरहर की फसल से हाथ खींच रहे हैं। फसल की रक्षा के लिए कोई सरकारी सहायता नहीं मिल रही है। किसानों को...

Newswrap हिन्दुस्तान, सीवानFri, 28 March 2025 11:09 PM
share Share
Follow Us on
बोले सीवान : अरहर की फसल को नीलगाय और जंगली सुअर कर रहे बर्बाद

दाल हमारे भोजन में काफी महत्व रखता है। जिले में धान, गेहूं, मक्का और सरसों के बाद दलहनी फसल अरहर की खेती बड़े पैमाने पर होती है। यहां करीब साढ़े 5 हजार हेक्टेयर में हर साल अरहर की खेती किसान करते हैं। हालांकि, पिछले साल से ही दलहनी फसलों की खेती को बढ़ावा देने के प्रयास किये गए हैं। लेकिन, नीलगाय और लंगूर जैसे जानवरों का हमला इस कदर बढ़ गया है कि अब अधिकतर किसान इस खेती से अपना हाथ खींच रहे हैं। जिले में दलहन की खेती के पीछे रहने की एक बड़ी वजह यह भी है। पिछले साल से किसानों को दलहन की खेती को लेकर प्रेरित किया जा रहा है। लेकिन, अरहर की फसल को इन जानवरों से बचाव के लिए कोई सहायता भी उपलब्ध नहीं कराए जाने से किसानों को काफी नुकसान हो रहा है। किसान दलहनी फसलों की खेती पर सरकार से अनुदान पाना चाहते हैं। ब्लॉक स्तर पर बीज का वितरण करने और किसानों में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। विभाग से किसानों को दलहनी फसलों की बुआई के बारे में सही से जानकारी भी नहीं मिल पाती है। जिससे वे सही से खेती भी नहीं कर पाते हैं। बढ़िया क्वालिटी के बीज मुहैया न हो पाने पर बाजार से ऊंचे दामों पर बीज खरीदने को मजबूर होते हैं।

अरहर की फसल में होता है कीटों का प्रभाव

अरहर समेत दलहन की सभी फसल में फली छेदक कीटों का प्रभाव होना एक बड़ी समस्या है। किसानों की सरकार से यह मांग है कि दलहनी फसलों की देखभाल एवं छिड़काव के लिए मुफ्त में छिड़काव मशीनें और कीटनाशक उपलब्ध कराई जाएं। साथ ही, खेती के दौरान की अन्य जरूरी सामग्रियां भी सरकार उपलब्ध कराए। किसानों का कहना है कि उन्हें अपनी दलहनी फसल को सुरक्षित रखने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इसके बावजूद, इन जंगली जानवरों और फली छेदक कीटों से बचाव नहीं कर पाते हैं।

अरहर की भी एमएसपी पर हो खरीदारी

किसान चाहते हैं कि अरहर सहित सभी दलहनी फसलों की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित करते हुए इसकी खरीदारी की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाय, ताकि उन्हें लाभ मिल सके। अरहर की फसल को तैयार होने में लगभग 9 महीने लगते हैं। इस दौरान किसानों को फसल के रखवाली में ज्यादा मेहनत और खर्च करना पड़ता है। किसान बताते हैं कि अरहर की फसल में पैदावार मौसम के अनुरूप अच्छा व खराब होता है। फरवरी-मार्च में मौसम थोड़ा भी खराब रहा तो फलियां में कीड़े लगने लगते हैं। जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इस वजह से किसानों की मेहनत और खर्च बेकार हो जाती है।

भारी बारिश भी अरहर के लिए है घातक

अरहर की फसल के लिए भारी बारिश भी घातक सिद्ध होती है। अरहर की फसल को किसान अमूमन डीह, बलुई मिट्टी और ऊंचे भाग वाले जमीन में करते हैं। साल 2019, 2020 एवं 2021 में काफी बारिश की वजह से अरहर की फसल जिले में काफी कम हुई थी। हालांकि, 2022 से सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है। इससे चंवरी क्षेत्र में भी अरहर की फसल लहलाने लगीं है। पिछले साल सामान्य से काफी कम बारिश होने से अरहर पर इसका प्रभाव देखा गया था। इसके पौधों में ग्रोथ तो कम हुई ही थी, पैदावार भी कम हुए थे। इस साल अरहर की फसल अच्छी है। पैदावार कितना होगा, इसकी कटनी-पिटनी के बाद हो स्पष्ट हो पाएगा।

फसल क्षति होने पर सरकार दे अनुदान

जिले में दहलहनी फसलों में सबसे अधिक अरहर और उसके बाद मटर की बुआई किसान करते हैं। लेकिन, इन फसलों पर ही नीलगायों, बंदरों और लंगूरों ज्यादा अटैक होता है। इन जानवरों का झुंड जिस भी खेत की ओर अपना रुख करता है, फसल जब तक बर्बाद नहीं कर देता तब-तक छोड़ता नहीं। इनकी वजह से ही जिले के किसानों को हर साल भारी क्षति उठानी पड़ती है। किसानों का कहना है कि सरकार इंडिविजुअल उनकी फसलों को हुई क्षति का आकलन करके मुआवजा देने की भी व्यवस्था करे। फसल बीमा कराना और बीमा की राशि पाने की प्रकिया इतनी जटिल है कि कोई इसमें पड़ना ही नहीं चाहता है।

फसल सहायता का भी नहीं मिल रहा लाभ

किसानों का कहना है कि सहकारिता विभाग द्वारा प्रत्येक साल फसल सहायता के लिए आवेदन कराता है। लेकिन, इसका उन्हें लाभ नहीं मिलता। किसान मु्द्रिरका साह गोंड ने बताया कि एक बार किसानों को फसल सहायता का लाभ मिला था। अब कोई-कोई किसान ही आवेदन कर रहे हैं। गांवों में नीलगायों व बंदरों की संख्या इतनी बढ़ गई है कि किसान इनसे तबाह है। किसान वन विभाग से इनकी शिकायत करते हैं तो वे कहते हैं कि बंदरों को पकड़ने के लिए उनके यहां कोई व्यवस्था नहीं है। सुअरों एवं नीलगायों को मारने का आदेश है। किसान इसके लिए आवेदन ऑनलाइन करें। निखती खुर्द के किसान सत्येन्द्र राय ने कहा कि उन्हें आवेदन किये एक माह से ऊपर हुए, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं की गई है। नीलगायें गांव में अंदर में घुसकर खेत में लगी सब्जियां चट कर जा रही हैं।

प्रस्तुति- शशि भूषण , रितेश कुमार।

शिकायतें :-

1. अरहर की खेती करने वाले किसानों को मौसम पर ही निर्भर रहनी पड़ती है। सरकारी स्तर से कोई सहायता नहीं मिल रही है।

2. किसानों को अरहर की खेती करने में कृषि यंत्र नहीं होने की वजह से अधिक समस्याएं आती है। जुताई-बुआई महंगी ही है।

3. किसानों को खेती में इनदिनों मजदूरी बढ़ने से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों को लोन भी नहीं मिलता।

4. जिले में अरहर की खेती करने वाले किसान अपनी इस खेती से रुख मोड़ रहे हैं। किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा।

5. सभी किसान बंदर-लंगूर, जंगली सुअर व नीलगाय से अपनी फसल को बचाने के लिए परेशान हैं। कोई इनकी सुनता ही नहीं।

सुझाव :-

1. अरहर की खेती करने वाले सभी किसानों को अनुदान दिया जाय। खाद-बीज और कीटनाशक दवाओं की व्यवस्था भी हो।

2. किसानों को खेती के लिए कृषि यंत्र भी अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराई जाय। एमएसपी पर अरहर की खरीदारी भी हो।

3. अरहर की बुआई करनेवाले किसानों को खेती करने के लिए कृषि लोन दिया जाय। लोन उपलब्ध कराने में रियायत भी मिले।

4. दलहनी फसलों की खेती करने वाले किसानों को प्रशिक्षण दिया जाय। फसल क्षति पर इसमें मुआवजे की भी व्यवस्था हो।

5. किसनों की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर बंदर-लंगूर, नीलगाय और जंगली सुअर को जंगलों में छोड़ दिया जाय।

हमारी भी सुनिए :-

1. किसानों की समस्याओं पर किसी का भी ध्यान नहीं है। जब वोट का समय आता है किसानों की फिक्र होने लगती है। उनकी समस्याओं का हल आखिर में क्यों नहीं किया जाता है। हमलोग बढ़-चढ़कर वोट करते हैं, सरकार हमारी भी फिक्र करे।

ललन राय

2. राज्य का सहकारिता विभाग द्वारा प्रत्येक साल किसानों से फसल सहायता के लिए आवेदन करवाता है। लेकिन, इसका उन्हें लाभ नहीं मिलता। इससे अब किसान आवेदन करना भी छोड़ दिये हैं। सिर्फ एक बार ही लाभ मिल पाया है।

मु्द्रिरका साह गोंड

3. अरहर की खेती करने वाले किसानों को मौसम पर ही निर्भर रहनी पड़ती है। सरकारी स्तर से कोई सहायता नहीं मिल रही है। कृषि विभाग हम किसानों को दलहनी फसल, खासकर अरहर लगाने पर उचित अनुदान उपलब्ध कराना सुनिश्चित करे।

देवेन्द्र मांझी

4. किसानों को खेती में इनदिनों मजदूरी बढ़ने से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों को बैंकों से लोन भी नहीं मिलता। इस वजह से महाजनों से कर्ज लेकर खेती करनी पड़ती है। लोन की व्यवस्था की जाय, तब ही हालत सुधरेगी।

अशोक राय

5. किसानों को अरहर की खेती करने में कृषि यंत्र नहीं होने की वजह से अधिक समस्याएं आती है। जुताई-बुआई तो महंगी है ही, बीज भी महंगा ही खरीदना पड़ता है। अरहर की सिंचाई नहीं करनी पड़ती। लेकिन, पिछले साल ही करनी पड़ी थी।

रामेश्वर मांझी

6. जिले में अरहर की खेती करने वाले किसान अपनी इस खेती से रुख मोड़ रहे हैं। किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया जा रहा है। इस वजह से किसानों की रुचि दलहनी फसलों के प्रति अब घटने लगी है। ध्यान नहीं दिया गया तो रकबा घट जाएगा।

प्रेमनाथ मांझी

7. सभी किसान बंदर-लंगूर, जंगली सुअर व नीलगाय से अपनी फसल को बचाने के लिए परेशान हैं। कोई हमारी सुनता ही कहां है। इन जानवरों की वजह से किसान पिछले 3-4 सालों से बहुत परेशान हैं। शिकायत करने पर कोई संज्ञान नही लेता।

लालझरी देवी

8. दाल का उत्पादन अगर बढ़ाना है तो अरहर की खेती करने वाले सभी किसानों को अनुदान दिया जाय। खाद-बीज और कीटनाशक दवाओं की व्यवस्था भी हो। फसल किसी वजह से बर्बाद होता है तो मुआवजा देने की व्यवस्था भी हो।

पुण्यदेव भगत

9. मौजूदा समय में कृषि यंत्रों की उपयोगिता बढ़ गई है। ऐसे में किसानों को अरहर की खेती करने में परेशानी उठानी पड़ती है। कृषि यंत्र नहीं होने की वजह से अधिक बहुत समस्याएं आती है। जुताई-बुआई महंगी ही है। छिड़काव में भी खर्च होता है।

उमेश कुमार

10. किसनों की फसल को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर बंदर-लंगूर, नीलगाय व जंगली सुअर को जंगलों में छोड़ दिया जाय। अगर, जंगल में इन्हें पहुंचाने में सरकार को अधिक खर्च लगता है तो फिर इन्हें मारने की व्यवस्था करने की जरूरत है।

देवराज राम

11. किसानों को खेती में इनदिनों मजदूरी बढ़ने से आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ रहा है। किसानों को लोन मिलता नहीं है और महाजनों से लिया गया कर्ज दिन-दुनी व रात-चौगुनी बढ़ती ही जाती है। खेती करने वाले किसानों को लोन मिले।

फूलझरी देवी

12. अरहर सहित सभी दलहनी फसलों के लिए राज्य व केन्द्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित करे। वहीं इसकी खरीदारी की व्यवस्था भी सुनिश्चित की जाय, ताकि उन्हें लाभ मिल सके। अरहर लगाने पर जोर भी दिया जाय।

बैजनाथ सिंह

13. 2022 से सूखे जैसी स्थिति बनी हुई है। इससे चंवरी क्षेत्र में भी अरहर की फसल लहलाने लगीं है। पिछले साल सामान्य से काफी कम बारिश होने से अरहर पर इसका प्रभाव देखा गया था। इस वजह से कई जगहों पर इसकी सिंचाई हुई थी।

सुनैना देवी

14. मेरे गांव के किसान को नीलगाय को मारने के लिए आवेदन दिए एक माह से ऊपर हुए, लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हो सकी है। नीलगायें गांव में अंदर में घुसकर खेत में लगी हुई सब्जियां चट कर जा रही हैं। भगाने पर भागती नहीं हैं।

लखी देवी

15. खेतों में लहलहाती अरहर की फसल देखकर किसान खूब खुश हैं। दाल की महंगाई को देखते हुए इस साल भी किसानों ने जून-जुलाई में अरहर फसल की बुआई अच्छी खासी की हुई है। लेकिन, अब इसकी कटनी-पिटनी की चिंता बनी हुई है।

सुदीश महतो

16. खेती किसानों के लिए इनदिनों घाटे की सौदा हो गई है। किसानों को होनेवाले घाटे की भरपाई के लिए राज्य सरकार इंडिविजुअल उनकी फसलों को हुई क्षति का आकलन करके अरहर लगनेवाले किसानों मुआवजा देना सुनिश्चित करे।

लालजी मांझी

17. अरहर की खेती करने वाले सभी किसानों को अनुदान दिया जाय। खाद-बीज और कीटनाशक दवाओं की भी व्यवस्था होनी चाहिए, तभी इसकी बुआई किसान बड़े पैमाने पर करेंगे। दाल हर किसी के थाली में पहुंच सके सरकार कदम उठाए।

कन्हैया राम

18. अरहर की फसल में पैदावार मौसम के अनुरूप अच्छा व खराब होता है। फरवरी-मार्च में मौसम थोड़ा भी खराब रहा तो फलियां में कीड़े लगने लगते हैं। जो फसल को काफी नुकसान पहुंचाते हैं। इस साल भी प्रभाव था लेकिन कम ही रहा।

हेवन्ती देवी

19. पिछले साल कृषि विभाग द्वारा किसानों को अनुदानित दर पर अरहर के बीज उपलब्ध कराए तो गए थे, लेकिन माह में ही फूल इसमें आने लगे। अरहर के पौधे बौने भी थे, जिससे फसल को चट करने में नीलगायों ने कोई कसर नहीं छोड़ा है।

जज सिंह

20. जिले में दहलहनी फसलों में सबसे अधिक अरहर फसल की बुआई होती है, उसके बाद मटर की बुआई किसान करते हैं। लेकिन, इन फसलों पर ही नीलगायों, बंदरों और लंगूरों ज्यादा अटैक होता है। इस साल तो ये परेशान कर दिए हैं।

लाजवंती देवी

लेटेस्ट   Hindi News ,    बॉलीवुड न्यूज,   बिजनेस न्यूज,   टेक ,   ऑटो,   करियर , और   राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।