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बोले सासाराम : नाई समाज के आर्थिक उत्थान के लिए ब्याज मुक्त लोन की है दरकार

नाई समाज की आर्थिक स्थिति आज भी खराब है। परंपरागत पेशा अब उद्योग में बदल रहा है, लेकिन नाई समाज के लोग सैलून संचालन में असमर्थ हैं। उन्हें ब्याज मुक्त लोन की आवश्यकता है ताकि वे अपनी किस्मत बदल सकें।...

Newswrap हिन्दुस्तान, सासारामWed, 19 Feb 2025 08:23 PM
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बोले सासाराम : नाई समाज के आर्थिक उत्थान के लिए ब्याज मुक्त लोन की है दरकार

खुले आसमान के नीचे पीढ़ा पर बैठकर हजामत बनाने का नाई समाज का परंपरागत पेशा आज लघु उद्योग की शक्ल लेने लगा है। अब वातानुकूलित कमरा और आरामदायक चेयर में ये कारोबार कर रहे हैं। उस्तरा के बदले ट्रिमर का उपयोग किया जाने लगा है। इनके परंपरागत धंधे पर अन्य वर्ग का भी कब्जा हो गया है। ऐसे में आज भी नाई समाज के लोग आर्थिक रूप से पिछड़े हैं। उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वे खुद सैलून का संचालन कर सकें। लिहाजा उक्त सामज के लोग अपने आर्थिक उत्थान के लिए ब्याज मुक्त लोन की मांग कर रहे हैं। ताकि उनकी भी किस्मत बदल सके। नाई समाज के परंपरागत धंधे ने पेशे का रूप ले लिया है। यह धंधा अब पूंजीपतियों और पैसे वाले लोगों के हाथ में आ गया है और इसमें दिन- प्रतिदिन बदलाव देखने को मिल रहा है। खुले आसमान के नीचे पीढ़ा से शुरू हुआ व्यवसाय अब वातानुकूलित कमरे में आरामदायक चेयर तक पहुंच गया है। उस्तरा की जगह अब ट्रिमर का उपयोग होने लगा है। साबुन की जगह महंगे क्रीम और लोशन का इस्तेमाल दाढ़ी बनाने में हो रहा है। इस तरह सबकुछ बदला। लेकिन, इतने समय में नहीं बदली तो सिर्फ नाई की किस्मत। आज बड़े-बड़े सैलून में इस समाज के लोग मजदूरी करते हैं, जबकि सैलून में पूंजी लगाने वाले पूंजीपति मुनाफा लेते हैं। नाई को सिर्फ मजदूरी से ही काम चलाना पड़ रहा है। आर्थिक रूप से पिछड़े होने के कारण ये खुद के सैलून संचालन में असमर्थ हैं। ऐसे में उक्त समाज के लोगों के आर्थिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए ब्याज मुक्त लोन मिले तो ये भी अपनी किस्मत को संवार सकते हैं।

नाई समाज आज भी आर्थिक के साथ-साथ सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर पिछड़ा है। इतने दिनों में अब भी उनकी जीवनशैली में कोई बदलाव देखने को नहीं मिला है। शैक्षणिक स्तर भी काफी पिछड़े हैं। हालांकि समाज के कुछ लोग अन्य व्यवसाय से जुड़कर अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को सुधारने की जद्दोजहद कर रहे हैं। लेकिन, अधिकतर लोगों के जीवन में बदलाव देखने को नहीं मिला है। जिस कारण वे आज भी हाशिए पर हैं। इनके बच्चों को भी अपेक्षित शिक्षा नहीं मिल पा रही है। ऐसे में नई समाज के आर्थिक, शैक्षणिक और सामाजिक उत्थान की जरूरत है। आर्थिक उत्थान के लिए इस समाज को ब्याज मुक्त लोन की आवश्यकता है। ताकि वे खुद का सैलून संचालित कर अपनी आर्थिक स्थिति को बदल सकें। राजनीति में भी उक्त समुदाय अपनी भागीदारी की मांग कर रहा हैताकि राजनीतिक स्तर पर भी इनकी पहुंच बन सके।

जन्म से लेकर मृत्यु तक में पड़ती है जरूरत

नाई समाज सदियों से हमारी संस्कृति का हिस्सा रहा है। जन्म से लेकर शादी-विवाह और मृत्यु तक के कर्मकांड इनके बगैर अधूरा हैं। बाल काटना व दाढ़ी बनाना उनका मुख्य पेशा है। बाल काटने और दाढ़ी बनाने के साथ घर-परिवार के रीति-रिवाजों में नाई समाज की सहभागिता रही है। परंपरागत तौर पर अपने पेशे से जुड़े नाई समाज के लोग छोटे सैलून चलाते हैं या फुटपाथों पर कुर्सी व आईना लगाकर बाल-दाढ़ी बनाते दिखते हैं। दूसरी तरफ, ब्रांडेड सैलून भी हैं, जहां लोग सुंदर दिखने के नाम पर मोटी रकम खर्च करते हैं। कुछ प्रशिक्षत नाई ऐसे सैलूनों में कारीगर के तौर पर काम करते हैं। कुल मिलाकर शिक्षा की कमी और सामाजिक स्तर पर अनदेखी के कारण नाई समाज बेबस नजर आ रहा है। जागरुकता की कमी के कारण सरकारी योजनाओं का लाभ लेने में भी ये पीछे रहते हैं। पूंजी के अभाव के कारण वे अपने कारोबार को गति नहीं दे पा रहे हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें सरकारी योजनाओं से जोड़कर ब्याज मुक्त लोन मिले। साथ ही कौशल विकास का प्रशिक्षण दिया जाये।

लघु उद्योग का दर्जा मिले

बाल काटने के पेशे से जुड़े नाई समाज के लोग अपने ही समाज के नेतृत्व पर सवाल उठाते हैं। इनका कहना है कि समाज में एकजुटता की कमी है। शिक्षा के अभाव के कारण सरकारी योजनाओं के प्रति समाज का बड़ा वर्ग जागरूक नहीं है। समाज के नेताओं को केवल चुनाव और उनके निजी कार्यक्रमों के समय भीड़ जमा करने के समय हमारी याद आती है। पूंजीपति बड़े-बड़े पार्लर खोलकर लाभ कमा रहे हैं। लेकिन, हम लोग आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इनकी मांग है कि सरकार इनके पेशे को लघु उद्योग का दर्जा मिले।

महंगाई बढ़ी, लेकिन आमदनी नहीं

बोले सासाराम के अंतर्गत अपने दर्द को बयान करते हुए इस पेशे से जुड़े नाई समाज के लोगों ने बताया कि महंगाई दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। क्रीम और लोशन समेत अन्य सामान की कीमत भी बढ़ जा रही है। लेकिन, मेहनताना नहीं बढ़ रहा है, जिस कारण ज्यादा मुनाफा नहीं होता है। छोटे सैलून संचालकों ने बताया कि ग्राहक बड़े ब्रांडेड सैलून में जाकर हजारों रुपए दे देते हैं। लेकिन, जब छोटे सैलून की बात की जाए तो बाल कटाई या दाढ़ी बनाने का मेहनताना देने में भी उनके सामने परेशानी हो जाती है। नाई समाज को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने की भी इन्होंने मांग की है। ताकि आरक्षण का लाभ मिलने से समाज की आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक और राजनीतिक स्तर में सुधार आ सके।

शिकायतें

1. नाई समाज आज भी आर्थिक रूप से पिछड़ेपन का शिकार है। इस समाज के आर्थिक उत्थान को लेकर अब तक कोई विशेष पहल नहीं की गई है।

2. नाई समाज के पारंपरिक पेशे के लिए न्यूनतम मजदूरी दर तय नहीं है। जिस कारण उन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती है।

3. नाई समाज के लोग अब भी शिक्षा से वंचित हैं। जिस कारण सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजना का लाभ उन्हें नहीं मिलता है।

4. नाई समाज को योजनाओं की जानकारी के लिए सरकारी स्तर से कोई कैंप का अयोजन नहीं किया जाता है।

5. कारोबार को आगे बढ़ाने के लिए लोन की प्रक्रिया जटिल है। ऐसे में उक्त समाज के लोगों को अपना व्यवसाय बढ़ाने के लिए लोन नहीं मिल पाता है।

सुझाव

1. नाई समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति को सुधार को लेकर सरकार द्वारा विशेष योजना की शुरूआत करनी चाहिए। ताकि आर्थिक पिछड़ेपन को दूर किया जा सके।

2. अन्य पेशे से जुड़े लोगों की तरह नाई समाज के पारंपरिक पेशे से जुड़े कारीगरों के लिये न्यूनतम मजदूरी दर तय की जाये। ताकि उनकी आर्थिक स्थिति ठीक हो सके।

3. बाल काटने के पेशे को लघु उद्योग का दर्जा दिया जाये। ताकि परंपरागत पेशे से जुड़े नाई समाज के लोगों को योजनाओं का लाभ मिल सके।

4. नाई समाज के लोगों को कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षण दिया जाये। ताकि उक्त समाज के युवा उक्त पेशे से जुड़कर अपनी आजीविका चला सकें।

5. नाई समाज के लोगों को ब्याज मुक्त लोन उपलब्ध कराया जाए। साथ ही लोन की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए। ताकि उक्त समाज के लोग लोन के माध्यम से अपना व्यवसाय बढ़ा सकें।

नाई समाज की दयनीय स्थिति को देखते हुए इसे अतिपिछड़ा वर्ग से निकालकर अनुसूचित जाति में शामिल किया जाये। पिछड़ा वर्ग में होने के कारण हमें आरक्षण का लाभ नहीं मिल पा रहा है। जबकि हमारी जाति को आरक्षण की सबसे अधिक जरूरत है।

-अनिल शर्मा

बड़े सैलून खोलने में लाखों रुपये खर्च होते हैं। गरीब परिवार से आने के कारण इतना पैसा नहीं है। बैंक भी हमें कारोबार के नाम पर ऋण देने से मना कर देता है। ऐसे में लोन की प्रक्रिया को असान बनाते हुए ऋण उपलब्ध कराया जाए।

-सुनील शर्मा

शिक्षा की कमी समाज की बड़ी समस्या है। अशिक्षित होने के साथ योजनाओं की जानकारी के अभाव में हम लाभ से वंचित रह जाते हैं। ऐसे में सरकारी स्तर से नाई समाज के लिए कैंप लगाते हुए योजनाओं की जानकारी देनी चाहिए।

-चितरंजन कुमार

तकनीकी रूप से नाई समाज को सक्षम होना बेहद जरूरी है। उन्नत तकनीकों से लैस पार्लरों में जाने वाले लोग वहां ऊंची कीमत अदा करने में नहीं हिचकते हैं। बल्कि वह इसे सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़कर देखते हैं।

-मुंद्रिका ठाकुर

पूंजीपति बड़े-बड़े पार्लर खोलर मोटा मुनाफा कमा रहे हैं। लेकिन, आर्थिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ने के कारण नाई जाति खुद के पारंपरिक पेशे से उतना नहीं कमा पा रही है। आज हमारी स्थिति भूखे मरने की है।

-कन्हाई शर्मा

समाज में एकजुटता की भारी कमी है। कोई भी एक- दूसरे की बात मानने को तैयार नहीं है। हर कोई अपनी सुविधा के अनुसार काम करता है। लेकिन, जाति की सुविधा पर ध्यान देने के नाम पर किनारे हो जाते हैं।

-मुकेश कुमार शर्मा

हमारे पास अपनी बात रखने के लिये कोई उचित माध्यम नहीं है। शिक्षा का अभाव होने के कारण कागजी कार्रवाई में बेहद पीछे रहते हैं। यही कारण है कि सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित रह जाते हैं।

-प्रमोद शर्मा

कौशल विकास योजना के तहत बाल काटने एवं इससे संबंधित कार्यों के लिए सरकार द्वारा प्रशिक्षण का प्रावधान तो है। लेकिन, इसमें भी शामिल एजेंसी अपनी मनमानी करती हैं। ये सुविधा अधिकतर महिलाओं को ही मिलती है।

-धर्मेंद्र शर्मा

नाई समाज के लोगों की आर्थिक स्थिति बेहत खराब है। इतनी कमाई नहीं है कि वे अपने पूरे परिवार का सही तरीके से भरण पोषण कर सकें। आर्थिक तंगी से जूझना उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती है। ऐसे में सरकारी मदद की दरकार है।

-बिनोद ठाकुर

बाल काटने के पेशे से जुड़ी सामग्री के दाम तो बढ़ रहे हैं। लेकिन, हमारी मजदूरी नहीं बढ़ रही है। दूसरे कारीगरी के कार्यों की तरह बाल काटने के हमारे पारंपरिक पेशे के लिये न्यूनतम मजदूरी दर तय की जानी चाहिये। ताकि आर्थिक उत्थान हो सके।

-मनोज ठाकुर

समाज में शिक्षा की कमी है। जानकारी के अभाव में सरकारी योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। कई सरकारी योजनाओं का लाभ तो अशिक्षा के कारण नहीं मिल पाता है। सरकारी अधिकारी हमारी बातों को नहीं सुनते हैं।

-बीरबल ठाकुर

प्रस्तुति: तारिक महमूद

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