बोले सासाराम : वाहन मैकेनिक को आसानी से लोन मिलने का है इंतजार
शहर और गांवों में वाहन मैकेनिकों की स्थिति बेहद खराब है। आर्थिक तंगी के कारण उन्हें दो वक्त की रोटी जुटाना मुश्किल होता है। सरकारी योजनाओं की जानकारी न होने और ऋण प्रक्रिया की जटिलता के कारण वे सहायता...
शहर के चौक-चौराहे से लेकर गांव की गलियों में हर जगह वाहन मैकेनिक दिख जाएंगे। टूटी-फूटी झोपड़ी, गुमटी, प्लास्टिक या टाट के नीचे ये अपना व्यवसाय चलाते हैं। इनके फटे कपड़े और उसपर लगे ग्रीस से इनको पहचानना बेहद आसान हो जाता है। इनके कपड़े और दुकान की स्थिति देख इनकी आर्थिक के साथ जीवनशैली का अंदाजा लगाया जा सकता है। ऐसे में आर्थिक स्थिति को सुधार के लिए सरकारी मदद की दरकार है। जिले में लगभग 10 हजार वाहन मैकेनिक हैं। जिनके द्वारा दुपहिया से लेकन चार पहिया वाहनों की मरम्मती करने का काम करते हैं। शहर के हर चौक चौराहों से लेकर गांव की गलियों तक सड़कों की किनारे ये दिख जाएंगे। इनका कार्य स्थल टूटी-फूटी गुमटी होती है। वहीं कुछ मैकेनिक प्लास्टिक या फटे टाट के नीचे वाहनों की मरम्मती करते दिख जाएंगे। फटे कपड़े पर लगे ग्रीस से इनकी आर्थिक स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। दिन भर कड़ी मेहनत कर वे अपने व अपने परिवार वालों के लिए बमुश्किल दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाते हैं। इनकी आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं होती है कि वे अपने दुकान का संचाल व्यवस्थित ढंग से कर सकें। ऋण की जटिल प्रक्रिया व शैक्षणिक स्तर कम होने के कारण उन्हें लोन नहीं मिल पाता है। ऐसे में वाहन मैकेनिक लोन की मांग कर रहे हैं। ताकि ऋण के माध्यम से वे अपना आर्थिक उत्थान कर सकें।
बोले सासाराम के अंतर्गत डेहरी के थाना चौक पर पहुंचे वाहन मैकेनिक ने बताया कि दो वक्त की रोटी का इंतेजाम करना मुश्किल होता है। कभी-कभी तो बोहनी तक नहीं होती है। ऐसे में घर का चूल्हा जलाना मुश्किल होता है। कहा कि हमारी शैक्षणिक स्थिति भी कम है। जानकारी के अभाव में हम सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। बैंक से लोन मिलने की प्रक्रिया जटिल है। जिस कारण लोन नहीं मिल पाता है। ऐसे में अपने दुकान का संचालन और उपकरण खरीदने को लेकर कर्ज लेना पड़ता है। उस कर्ज को चुकाने में परेशानी होती है।
अतिक्रमण अभियान का होते हैं शिकार
बताया कि सड़कों के किनारे वे अपनी दुकान का संचालन करते हैं। किसी तरह कर्ज लेकर सिर छुपाने के साथ औजार रखने की व्यवस्था करते हैं। लेकिन, अतिक्रमण हटाव अभियान के दौरान हमें परेशान किया जाता हैं। हमारी गुमटी को भी तोड़ दिया जाता है। जिस कारण हमें आर्थिक नुकसान होता है। ऐसे में रोज-रोज की झंझट से छुटकारा पाने के लिए स्थानीय प्रशासन की और से स्थाई जगह चिन्हित किया जाए। ताकि हम बगैर भय के अपनी दुकानों का संचालन कर सके।
स्वास्थ्य की नियमित हो जांच
ठंड हो या गर्मी की गर्म हवा। साथ ही बरसात के दिनों में भी हम हमने परिवार की आजीविका को लेकर सड़कों के किनारे दुकान लगाते हैं। रोजी-रोटी के इंतजाम को लेकर दिन के 12-16 घंटे सड़कों के किनारे ही रहना पड़ता है। ऐसे में प्रदूषण के साथ मौसम के मार का भी शिकार होना पड़ता है। जिसे देखते हुए स्वास्थ्य विभाग द्वारा वाहन मैकेनिकों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि वे स्वस्थ्य रहें। वाहन मैकेनिक स्वस्थ्य रहेंगे, तभी अपने व अपने परिवार वालों के लिए आजीविका का इंतजाम कर सकते हैं।
प्रस्तुति-तारिक महमूद।
मैकेनिकों के लिए सरकारी प्रशिक्षण केंद्र बने
वाहन मैकेनिकों ने बताया कि दिन प्रतिदिन गाड़ियों की तकनीकी बदल रही है। ऐसे में नई गाड़ियां बनाने की जानकारी नहीं होने के कारण परेशानी का सामना करना पड़ता है। जिसे देखते हुए सरकारी स्तर से प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की जाए। ताकि हम भी नई तकनीकों को जान सकें। जिससे हमारा व्यवसाय प्रभावित ना हो। बताया कि वाहन मैकेनिकों की स्थिति काफी दायनीय है। जिस कारण कई मैकेनिक पलायन करने पर मजबूर हैं। ऐसे में सरकार को हमारे रोजगार के बढ़ावा देने के लिए अनुदान उपलब्ध कराना चाहिए। ताकि हम भी बेहतर जीवन जी सकें।
बीमा का मिले लाभ
वाहन मैकेनिकों ने बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं होती है कि वे अपना बीमा करा सकें। ऐसे में जब किसी वाहन मैकेनिक के साथ कोई हादसा होता है तो, उसे बीमा का लाभ नहीं मिल पाता है। जिस कारण परिवार की आर्थिक स्थिति काफी कमजोर हो जाती है। जिसे देखते हुए वाहन मैकेनिकों के लिए सरकारी स्तर से बीमा का प्रावधान करना चाहिए।
ताकि मैकेनिकों के साथ अनहोनी होने पर परिवार को आर्थिक लाभ मिल सके। बताया कि साथ ही वाहन मैकेनिकों का निबंधन श्रम विभाग में कराकर उन्हें भी श्रम विभाग के द्वारा चलाई जाने वाली योजनओं का लाभ मिल सके।
स्थानीय नगर निकाय सड़कों के किनारे दुकान का निर्माण कराकर उसे वाहन मैकेनिक को दें। ताकि हमें कम किराया में एक स्थायी दुकान मिले। जहां हम अपने व अपने परिवार वालों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर सकें। इन्हें मदद की सख्त दरकार है।
सुझाव
1.अतिक्रमण हटाओ अभियान के दौरान उनके दुकानों को उजाड़ दिया जाता है। ऐसे में प्रशासन द्वारा वाहन मैकेनिकों के लिए जगह उपलब्ध करानी चाहिए।
2. ऋण की प्रक्रिया काफी जटील है। वाहन मैकेनिकों को ऋण लेने के लिए बैंक का चक्कर लगाना पड़ता है। ऐसे में ऋण की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए।
3. शैक्षणिक स्थिति कमजोर होने के कारण सरकारी योजनाओं के लाभ से वंचित हैं। ऐसे में कैंप के माध्यम से वाहन मैकेनिकों को योजना का लाभ मिलना चाहिए।
4. वाहन मैकेनिकों के लिए सरकारी स्तर से प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की जानी चाहिए। ताकि प्रशिक्षण केंद्र के माध्यम से वे नई तकनीक को जान सकें।
5. वाहन मैकेनिक 12-16 घंटे सड़कों के किनारे रहते हैं। सबसे ज्यादा प्रदूषण का वे शिकार होते हैं। जिसे देखते हुए उनकी नियमित स्वास्थ्य जांच होनी चाहिए।
शिकायतें
1.वाहन मैकेनिक सड़कों के किनारे दुकान लगाकर अपनी आजीविका चलाते हैं। ऐसे में प्रशासन द्वारा अतिक्रमण के नाम पर सताया जाता है।
2. वाहन मैकेनिकों को व्यवसाय बढ़ाने के लिए ऋण लेने में परेशानी होती है। बैंक का चक्कर लगाते-लगाते थक जाते हैं।
3. शैक्षणिक स्थिति काफी कमजोर होने के कारण सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। साथ ही योजना का लाभ भी नहीं ले पाते हैं।
4. वाहन मैकेनिकों के लिए प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना करना चाहिए। ताकि वे प्रशिक्षित होकर नए तकनीक के गाड़ियों की मरम्मती भी कर सकें।
5. वाहन मैकेनिक 12-16 घंटे सड़क के किनारे रहते हैं। सबसे ज्यादा प्रदूषण का वे शिकार होते हैं। ऐसे में उनके स्वास्थ्य की जांच नहीं होती है।
उभरा दर्द
बैंक से आसानी से लोन नहीं मिलता है। बैंक की जटील प्रक्रिया होने के कारण हमें अपना रोजगार बढ़ाने में मदद नहीं मिलती है। ऐसे में ऋण की प्रक्रिया को आसान बनाया जाए। ताकि हम भी आगे बढ़ सकें। हमारी बेहतरी के लिए बात होनी चाहिए। -मनीष कुमार।
आमदनी कम होने के कारण हमें पलायन करना पड़ता है। अन्य प्रदेशों में जाकर हम मेहनत मजदूरी करते हैं। ऐसे में सरकार को हमारी आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए कदम उठाना चाहिए। ताकि हमारा भी आर्थिक उत्थान हो सके। -महताब अंसारी।
वाहन मैकेनिकों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच की व्यवस्था होनी चाहिए। ताकि वे स्वस्थ्य रहें। वाहन मैकेनिक स्वस्थ्य रहेंगे, तभी अपने व अपने परिवार वालों के लिए आजीविका का इंतजाम कर सकते हैं। हमें भी सरकारी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। ऐसा होने पर ही हम कुछ कर पाएंगे। -नौशाद आलम।
वाहन मैकेनिकों का शैक्षणिक स्तर काफी कमजोर हैं। पैसे की तंगी के कारण इनका व्यापार नहीं बढ़ता है। ऐसे में आर्थिक स्थिति को सुधार के लिए सरकारी मदद की दरकार है। बैंकों से ऋण मिले तो जिंदगी संवर सकती है।
-अरमान खान।
आर्थिक स्थिति काफी कमजोर है। जीवन यापन करने में परेशानी हो रही है। सकरारी स्तर से रोजगार को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस पहल करनी चाहिए। ताकि हमारा भी आर्थिक उत्थान हो सके। -राकेश कुमार उर्फ मिट्ठू।
वाहन मैकेनिकों को प्रशिक्षण के लिए प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना की जाए। ताकि हम नए-नए तकनीक को जान सकें। बताया कि नई तकनीक की जानकारी नहीं होने के कारण परेशानी होती है। -इकबाल मिस्त्री।
वाहन मैकेनिकों की शैक्षणिक स्थिति काफी कमजोर हैं। जिस कारण हमें सरकारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती है। योजनाओं की जानकारी नहीं होने के कारण हमें लाभ से वंचित होना पड़ता है। -क्यूम अंसारी।
नई मोटर तकनीक को लेकर प्रशिक्षण मिलेगा तो हम लोगों को काम करने में परेशानी नहीं होगी। साथ ही अधिक आमदनी भी होगी। नई तकनीक से बने वाहन भी ठीक कर सकेंगे तो हमारा व्यवसाय मंदा नहीं होगा।
-इम्तियाज आलम।
दिन भर कड़ी मेहनत कर वे अपने व अपने परिवार वालों के लिए बमुश्किल दो वक्त की रोटी का इंतजाम कर पाते हैं। आर्थिक स्थिति इतनी बेहतर नहीं है कि वे अपने दुकान को व्यवस्थित तरीके से संचालित कर सकें। -गाटर खान।
दिन प्रतिदिन नई-नई तकनीक की बाइक बाजार में आ रही है। ऐसे में जानकारी के अभाव में हमे परेशानी होती है। जिसे देखते हुए सरकारी स्तर से वाहन मैकेनिकों के लिए प्रशिक्षण केंद्र की व्यवस्था होनी चाहिए। -वकील मिस्त्री।
सड़के किनारे दुकान लगा कर परिवार के भरण-पोषण करते हैं। आमदनी कम है। मेहनत के अनुसार मजदूरी भी नहीं मिलती है। ऐसे में घर चलाना मुश्किल हो जाता है। जिसे देखते हुए सरकार को मदद करनी चाहिए। -चूमन कुमार।
बच्चों को अच्छी शिक्षा देने से भी वंचित हैं। पहले दो वक्त की रोटी का इंतजाम किया जाता है। बच्चे शिक्षा से वंचित होते हैं। कमाई कम होने के कारण बच्चे भी दुकान पर काम करते हैं। -अशफाक अंसारी।
हमारी हालत पर ना ही सरकार का ध्यान है। और ना ही जनप्रतिनिधियों का। चुनाव के समय सब हमारी बाते करते हैं। लेकिन, चुनाव समाप्ति के बाद कोई हमें पूछता तक नहीं है। जिस कारण दर्द होता है। - सुरेंद्र कुमार।
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