बोले सासाराम : पशुचारे पर मिले सब्सिडी तो आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे पशुपालक
पशुपालक दूध बेचने से आय कम होने के कारण आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। महंगाई और पशुचारे की कीमतों में वृद्धि के कारण उनका मुनाफा घट रहा है।
पशुचारे पर मिले सब्सिडी तो आर्थिक रूप से समृद्ध होंगे पशुपालक पशुपालकों को दूध बेचने से होने वाली आय उनकी आजीविका का मुख्य जरिया होती है। लेकिन इन दिनों ग्वाले कई परेशानियों से जूझ रहे हैं। बढ़ती महंगाई के बीच पशुचारा की कीमतों में वृद्धि के कारण मुनाफा कम हो रहा है। वहीं अत्याधिक ठंड व गर्मी के मौसम में उत्पादन में कमी के कारण भी उन्हें आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। साथ ही हरे चारे की कमी को लेकर भी वे परेशान रहते हैं। वहीं दूध उत्पादन को लेकर बैंकों द्वारा लोन नहीं मिलना भी उनकी परेशानियों में शामिल है। ऐसे में ग्वाले पशुचारे पर सब्सिडी की मांग कर रहे हैं।
सुबह-सुबह साइकिल की ट्रिन-ट्रिन की आवाज से दूधवाले की आने का जानकारी हो जाती है। साइकिल पर बड़े-बड़े बर्तनों को देखकर भी इनको आसानी से पहचाना जा सकता है। गर्मी की सुबह हो या जाड़े की ठंड। यहां तक की बरसात में भी ये अपने तय समय से घरों पर दूध लेकर पहुंच जाते हैं। दूध पहुंचाने के दौरान उन्हें ठंड का कोई एहसास नहीं होता है। यहां तक कि बरसात में भी वे भींगते हुए घरों के दरवाजे पर दस्तक देते हैं। ऐसा सिर्फ वे अपने व्यवसाय को लेकर नहीं, बल्कि व्यवसाय के साथ मानवता का भी परिचय देते हैं। मौसम की मार को मात देते हुए ग्राहकों के घरों पर पहुंचने का मुख्य मकसद यह भी होता है कि घर पर बच्चे दूध के बिना भूखे न रह जाएं। इस तरह वे व्यवसाय के साथ मानवता का भी परिचय देते हैं। लेकिन, इन दिनों घर-घर दूध पहुंचाने वाले ग्वाला आर्थिक रूप से पिछड़ गए हैं। महंगाई के कारण खली-चोकर महंगी हो गयी है। इसका सीधा असर उनकी आर्थिक स्थिति पर पड़ा है। चारा महंगा होने के कारण उन्हें मुनाफा कम हो रहा है। ऐसे में उनके सामने अपने परिवार वालों का भरण-पोषण की चिंता सता रही है।
गर्मी, ठंड व बरसात के दिनों में भी सबसे पहले ग्वाला जग जाते हैं। सुबह चार बजे से ही इनकी दिनचर्या शुरू हो जाती है। सबसे पहले मवेशियों के मल-मूत्र को इनके द्वारा साफ किया जाता है। इसके बाद मवेशियों को चारा-पानी देते हैं। जब मवेशी भोजन कर लेते हैं तो ग्वाला दूध दूहने का कार्य करते हैं। बाल्टियों में दूध दूहने के बाद उसे बड़े-बड़े बर्तनों में रख साइकिल व बाइक के माध्यम से घर-घर पहुंचाने का कार्य करते हैं। इस दौरान उन्हें 15-20 किलोमीटर तक का सफर तय करना पड़ता है। घरों पर दूध पहुंचाने के बाद ग्वाला अपने घर पहुंच फिर से वे मवेशियों की सेवा में लग जाते हैं। मवेशियों को नहलाने के साथ अन्य कार्य उनके द्वारा किया जाता है। फिर शाम को वही सिलसिला शुरू हो जाता है। जो रात नौ बजे तक चलता है। ऐसे में दिनभर हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी वे आर्थिक रूप से पिछड़ गए हैं। उनके सामने घर परिवार चलाना मुश्किल हो रहा है।
बोले सासाराम अंतर्गत डेहरी सोन नद किनारे संवाद के दौरान उपस्थित ग्वालाओं ने बताया कि चारे की कीमतों में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। जिसका असर हमारे मुनाफे पर पड़ रहा है। हम दाम में वृद्धि करते हैं तो ग्राहक हमसे दूध नहीं लेते हैं। मजबूरी हमें कम मुनाफा में ही दूध बेचना पड़ता है। जिस कारण हमारी आर्थिक स्थिति काफी कमजोर होते जा रही है। बताया कि दिन भर कड़ी मेहनत करने के बावजूद हमें लाभ नहीं हो रहा है। साथ ही हम घर-घर जाकर दूध पहुंचाते हैं। फिर भी मेहनत के अनुसार आमदनी नहीं होती है। ऐसे में बमुश्किल घर वालों के लिए दो वक्त की रोटी का इंतजाम हो पाता है। बताया कि चारे के दाम में लगातार वृद्धि हो रही है। वहीं दूसरी ओर शहरीकरण के कारण हरा चारा भी मवेशियों को नहीं मिल रही है। पहले आसानी से चारा मिल जाता था। लेकिन, अब चारे के लिए परेशान होना पड़ता है।
बताया कि उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार को लेकर सरकारी स्तर पर कोई व्यवस्था नहीं की गई है। कहा कि ग्वाला समाज के उत्थान के लिए सरकार को आगे आना चाहिए। दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए सरकार को ग्वाला समाज के युवाओं को प्रोत्साहित करना चाहिए। तभी आने वाले समय में ग्वाला समाज के युवा इस पेशे से जुड़ेंगे। नहीं तो आने वाले दिनों में इस समाज के युवा अपनी आजीविका चलाने के लिए अन्य व्यवसाय की ओर आकर्षित हो जाएंगे।
योजनाओं का नहीं मिल रहा है लाभ
बताया कि सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। अनुदानित दर पर गाय-भैंस को लेकर सरकार द्वारा योजना चलाई जाती है। लेकिन, उक्त समाज के अधिकांश लोगों को योजनाओं की जानकारी नहीं है। जिस कारण भी वे योजनाओं का लाभ नहीं ले पाते हैं। वहीं जिन्हें जानकारी है, वे कार्यालयों का चक्कर लगाकर थक जाते हैं। ऐसे में सरकारी स्तर से योजनाओं का प्रचार प्रसार होना चाहिए। कैंप लगाकर योजनाओं की जानकारी देनी चाहिए। ताकि समाज के लोगों को सरकार द्वारा चलाई जाने वाली योजना का लाभ मिल सके। बताया कि ग्वाला समाज को बैंक से लोन भी नहीं मिलता है। जिस कारण उन्हें परेशानी होती है।
शिकायतें
1. सुबह से देर रात तक हाड़तोड़ मेहनत के बावजूद मुनाफा नहीं होता है। जिस कारण आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई है।
2. खली-चोकर की कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है। लेकिन, दूध के दामों में वृद्धि नहीं होने से परिवार का भरण-पोषण करने में समस्या हो रही है।
3. ठंड हो या बरसात, कभी दूध पहुंचाने में थोड़ा भी विलंब होता है तो ग्राहकों द्वारा हमसे अच्छा व्यवहार नहीं किया जाता है। ऐसे में असुरक्षा बना रहता है।
सुझाव
1.दिनभर मेहनत करने के बावजूद हमें मुनाफा नहीं होता है। ऐसे में ग्वाला को अनुदानित दर पर पशुचारा मुहैया करायी जाए। ताकि आर्थिक नुकसान से उबरा जा सके।
2. ग्वाला समाज के युवा वर्ग अब अपने पारंपरिक व्यवसाय को छोड़ रहे हैं। ऐसे में सरकारी स्तर से लोन की सुविधा उपलब्ध करायी जाए। ताकि युवा वर्ग इस पेशे से जुड़े रहें।
3. ग्वाला समाज काफी पिछड़ गया है। उन्हें आगे बढ़ने को लेकर सरकारी स्तर से प्रयास होने चाहिए। ताकि सरकारी मदद से वे अपनी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ कर सकें।
बोले पशुपालक
समाज के लोगों के आर्थिक उत्थान को लेकर सरकारी स्तर पर योजनाएं संचालित होनी चाहिए। साथ ही हमारे लोगों को बेहतर शिक्षा व स्वास्थ्य की सुविधा उपलब्ध करायी जाए। ताकि हमारा आर्थिक उत्थान हो सके।
-विनोद सिंह।
दूध उत्पादन से लेकर घरों तक उसे पहुंचाने वाले हमारे समाज को सरकार की ओर से मदद की पहल होनी चाहिए। हमे भी लोन की सुविधा मिले। लोन देने की व्यवस्था को आसान बनाया जाए। ताकि हमारा आर्थिक उत्थान हो सके।
-ददन सिंह।
समाज के लोग, जो सरकारी सुविधाओं से वंचित हैं। उन्हें सभी योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए। उनकी समस्या जानकार उसका निवारण सरकारी स्तर से करायी जाए। ऐसा नहीं होने से हम पिछड़ते जा रहे हैं।
-विमल सिंह।
ठंड का मौसम हो या बरसात का मौसम। हम घर-घर जाकर दूध पहुंचाते हैं। ऐसे में हमारे समाज के लोगों को प्रोत्साहन की जरूरत है। ऐसे में सरकारी स्तर से पहल होनी चाहिए। ताकि उनका उत्थान हो सके।
-सावित्री देवी।
पहले सुबह छह बजे से लेकर दस बजे तक दूध पहुंचाने का काम करते थे। अब पास के एक-दो घरों में दो-चार लीटर दूध लेकर पहुंचाते रहते हैं। उम्र काफी हो गई है। ऐसे में बुजुर्गों के लिए कोई योजना चलाई जानी चाहिए।
-नारायण सिंह यादव।
सुबह चार बजे से रात आठ बजे तक मवेशियों की सेवा करते हैं। यह हमारा पुश्तैनी पेशा है। दिन भर कड़ी मेहनत करने के बावजूद कमाई नहीं हो पाती है। घर परिवार चलना मुश्किल हो रहा है।
-पिंटू सिंह।
बेरोजगारी के चलते पारंपरिक धंधा कर रहे हैं। महंगाई बढ़ गई है। खली व चोकर की कीमतों में दिन प्रतिदिन वृद्धि हो रही है। जबकि दूध की कीमत स्थिर है। ऐसे में आर्थिक रूप से काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
-सुमित यादव।
दूध की बिक्री से मुनाफा नहीं हो रहा है। दूसरा काम नहीं मिल रहा है। ऐसे में बेरोजगारी के कारण धंधा करना मजबूरी है। इस व्यवसाय से घर परिवार चलाना काफी कठिन हो गया है। सरकारी मदद की दरकार है।
-गोरखनाथ सिंह।
पहले की तुलना में अब दूध का कारोबार कम हुआ है। लोगों को गाय-भैंस अपने घर पालने का समय ही नहीं है। ऐसे में दूध का उत्पादन कम होगा। उत्पादन कम होने से कारोबार में भी कमी आई है। इसका कारण सरकारी स्तर पर प्रोत्साहन नहीं देना है।
-विजय यादव।
पहले दूध बेचने से मुनाफा अधिक होता था। लेकिन, अब तो महंगाई इतनी बढ़ गई है कि समय से पशुओं के लिए चारा भी जुटा पाना मुश्किल होता है। जब पशु को समय पर भोजन ही नहीं मिलेगा, तब दूध कैसे बनेगा।
-कुसुम देवी।
गाय-भैंसों को खिलाने के लिए चारा भी अब मुश्किल से मिल रहा है। हरा चारा की भी हमें खरीदारी करनी पड़ती है। जानवरों के बीमार पड़ने पर निजी पशु चिकित्सक के पास जाना पड़ता है। ऐसे में पैसे के अभाव में सही उपचार नहीं हो पाता है।
-कंचन सिंह।
मवेशी को पालन पोषण करते हुए दूध बिक्री कर मवेशी सहित घर परिवार चलना पड़ता है। लेकिन, जितनी मेहनत होती है। उतनी कमाई नहीं हो पाती है। इसे अच्छा तो प्रतिदिन मजदूरी करनेवाले शकुन की जिंदगी जीते हैं। सरकार को हमारे लिए अलग से योजना चलानी चाहिए।
-राजा राम।
रोज मेहनत कर अपने परिवार के लिए पैसे इकट्ठे करने में लगे रहते हैं। ताकि बच्चों की स्वास्थ्य और शिक्षा में कोई लापरवाही नहीं हो। लेकिन, हमारे समाज के विकास के लिए कोई ठोस योजना नहीं है।
-राजू यादव।
खली-चोकर के दामों में लगातार वृद्धि हो रही है। लेकिन, दूध का दाम स्थिर है। ऐसे में हमें कम मुनाफा हो रहा है। सरकार को पशुचारे पर सब्सिडी देना चाहिए। ताकि हमारा भी आर्थिक उत्थान हो सके।
-ललन सिंह।
पहले के लोग कम पढ़े लिखे होते थे। तब उनका काम चल जाता था। लेकिन, अब दौर बदल चुका है। हमें शिक्षित होकर आगे बढ़ना है और बेहतर काम करना है। अपने ही क्षेत्र में करना है। इसके लिए हमें सुविधाओं की जरूरत है। इस पर सरकार को ध्यान देना चाहिए।
-कन्हैया यादव।
सुबह छह बजे से दूध लेकर घरों व दुकानों तक पहुंचाने के लिए निकल जाता हूं। बरसात, ठंड या गर्मी। इन तीनों मौसमों में मैं लगातार अपने इस काम को करता रहता हूं। लेकिन, मेहनत के अनुसार मेहनताना नहीं मिलता है।
-पारस यादव।
सबसे ज्यादा परेशानी बरसात के दिनों में सही समय पर दूध पहुंचाने को लेकर रहती है। बाजवूद हम अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटते हैं। लेकिन, कभी थोड़ा भी लेट होता है तो, हमें सुनना पड़ता है। वहीं सरकारी स्तर पर सुविधा नहीं मिलने से हम पिछड़ रहे हैं।
-राजेश कुमार।
पशुपालन से लेकर दूध उत्पादन और दूध पहुंचाने तक सभी काम ग्वाला समाज के लोगों द्वारा ही किया जा रहा है। इन समाज के लोगों को आवास, हेल्थ कार्ड, श्रम कार्ड जैसी सुविधाओं का लाभ मिलना चाहिए।
-जनार्दन यादव।
बढ़ती महंगाई से लोग पशुओं को रखना ठीक नहीं समझ रहे हैं। वहीं सरकार की उदासीनता व पशुचारा पर सब्सिडी नहीं होने के कारण हमारी आर्थिक स्थिति खराब हो रही है। हम अपने निजी कार्यों से जुड़कर दो वक्त की रोटी कमाना चाहते हैं। सरकारी स्तर पर सुविधा मिलनी चाहिए।
-पप्पू यादव।
पहले की तुलना में दूध का उत्पादन कम हुआ है। वैसे में लोगों तक भरपूर मात्रा में दूध नहीं पहुंच रहा है। बढ़ती महंगाई ने लोगों को दूध के कारोबार छोड़ने पर विवश कर दिया है। ऐसे में विभाग हमारे लिए अच्छी योजना लाये।
-गुड्डू यादव।
प्रस्तुति : तारिक महमूद
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