हजारों एकड़ भूमि में नहीं हो सकेगी रबी की बुआई
हसनपुर प्रखंड में हजारों एकड़ भूमि में इस बार रबी फसलों की बुआई नही हो सकेगी। इसका कारण यह है कि वर्षा का पानी जलनिकासी के अभाव में अब भी निचली एवं सर्वाधिक उपरी भूमि में बरकरार है। संभावना जतायी जा...
हसनपुर प्रखंड में हजारों एकड़ भूमि में इस बार रबी फसलों की बुआई नही हो सकेगी। इसका कारण यह है कि वर्षा का पानी जलनिकासी के अभाव में अब भी निचली एवं सर्वाधिक उपरी भूमि में बरकरार है। संभावना जतायी जा रही है कि इन खेतों से पानी निकलने में चार पांच माह का समय लग जायेगा। जिससे किसान गेंहू, रैंचा, दलहन आदि फसलों की बुआई नही कर पाएंगे।
खेत में जलजमाव से खेतों में लगी गन्ने की फसलें भी मुरझाने लगी है। इससे गन्ना उत्पादक किसान मायूस हैं। किसानों का कहना है कि निचली भूमि में जनवरी तक वर्षा का पानी बना रहता है। इस बार उपरी भूमि भी प्रभावित हो चुकी है। खेतों से जल निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है। इलाके में किसानों से जुड़ी एक भी योजनाओं को अब तक कामयाबी नही मिल सकी है।
बताया जाता है कि खेतों से जलजमाव की समस्या दूर करने लिए जल निस्सरण विभाग ने एक योजना शुरू की थी। एक चौर से दूसरे चौर को जोड़ कर जलनिकासी करने की योजना थी। यह योजना विभाग ने 1979 में बनायी थी। जिसमें रोसड़ा से नवगछिया तक चौरों को जोड़ना था। बताया जाता है कि योजनाओं के कार्यान्वयन के लिए विभाग ने हसनपुर में 1979 में प्रमंडलीय कार्यालय की स्थापना की। योजना के कार्यान्वयन के लिए चार जगहों पर विभागीय एसडीओ भी नियुक्त किए गए थे।
बखरी, रोसड़ा, हसनपुर, नवगछिया में पदाधिकारी कार्य भी करने लगे थे। लेकिन आवंटन के अभाव में कोई कार्य नही हो सका। नतीजतन 1998 में उक्त कार्यालय का स्थांतरण समस्तीपुर हो गया। लोगों का मानना है कि सरकार सच में इस योजना को कार्य रूप देती तो हसनपुर के किसानों को आज यह कष्ट नहीं भोगना पड़ता। इस योजना के कार्यान्वयन होने से समस्तीपुर, बेगूसराय खगड़िया जिलों के किसान लाभान्वित होते। जिस में हसनपुर के महिसर घोसदाहा देेवड़ा लक्हर आदि चौरों को जोड़ने एवं जलनिकासी करने की योजना थी। लोगों का कहना है कि जनप्रतिनिधियों ने किसानों के हित में कभी सोचा ही नहीं।
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