फूड प्रोसेसिंग यूनिटों पर भी पड़ी कोरोना की मार
कोरोना काल के दौरान फूड प्रोसेसिंग यूनिटों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। सही तरीके से बाजार नहीं मिलने के कारण उत्पादन जहां ठप हो गया। वहीं लॉकडाउन के कारण मजदूरों का संकट इन यूनिटों पर दिखा।...
कोरोना काल के दौरान फूड प्रोसेसिंग यूनिटों के उत्पादन पर बुरा असर पड़ा है। सही तरीके से बाजार नहीं मिलने के कारण उत्पादन जहां ठप हो गया। वहीं लॉकडाउन के कारण मजदूरों का संकट इन यूनिटों पर दिखा। हालांकि धीर-धीरे बाजार मिलने के बाद इनकी स्थिति में सुधार दिखने लगा है। जिले में मशाला की जबरदस्त खेती होने के बावजूद लॉकडाउन में मजदूर पूरी तरह बेरोजगार हो गए थे।
वहीं उद्योग जगत में भी मंदी का असर पूरी तरह छा गया था। जिला में 2 वृहद सहित 517 औद्योगिक इकाई रजिस्टर्ड हैं। इसमें सुधा डेयरी व हसनपुर चीनी मील वृहद इकाई हैं। जबकि तीन चावल व एक आटा सहित 4 मध्यम व मुर्गीदाना, तेल, आटा, मशाला आदि के 37 लघु व 474 कुटीर उद्योग मौजूद हैं। लॉकडाउन ने लघु, कुटीर, मध्यम व वृहद उद्योगों को भी खासा प्रभावित किया। हालांकि अब धीरे-धीरे स्थिति में सुधार दिख रही है। औद्योगिक इकाईयों का ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन शुरू है। जिला में आए प्रवासी मजदूरों को यहां के कुटीर से मध्यम इकाईयों में उनकी क्षमता के अनुरूप काम उपलबध कराया जा रहा है। बाहर से आए लोगों को रोजगार उपलब्ध कराकर प्रशासन उन्हें यहीं रहकर जिला का विकास बढ़ा रही है। मशाला फैक्ट्री संचालक सुनील सिंह ने बताया कि वैश्विक महामारी कोरोना के बीच हाल बेहाल रहा। कच्चा माल उपलब्ध होने के बाद भी उत्पादन पूरी तरह से रोक देनी पड़ी थी। मजदूरों की कमी ने उतना प्रभावित नहीं किया लेकिन बाजार नहीं रहने के कारण तैयार माल निकालना मुश्किल हो गया था। गोदाम में बहुत सारा माल खराब भी हो गया।
हालांकि अब स्थिति थोड़ी सुधर रही है। सरकारी योजना का लाभ मिलने में परेशानियां नहीं है। बैंक की ओर से पैसे देने की बात कही जा रही है लेकिन उत्पादन सीमित होने के कारण फिलहाल इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। चावल मिल के मालिक सरोज सिंह ने बताया कि कई क्विंटल चावल खराब हो गया है। सही तरीके से मजदूर नहीं मिलने के कारण ये स्थिति बनी। इसकी भरपाई होने में अभी लंबा समय लगेगा।
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