किराया निर्धारण न स्टैंड, सुविधा शुल्क से ई-रिक्शा चालक बेहाल
समस्तीपुर में 2015 में शुरू हुए ई-रिक्शा की संख्या अब 7800 हो गई है। चालकों को सुविधाओं की कमी और हर चौराहे पर 20 रुपये की अवैध वसूली का सामना करना पड़ रहा है। बिना स्टैंड के, जाम और पुलिस की कार्रवाई...
समस्तीपुर । वर्ष 2015 में समस्तीपुर में ई-रिक्शा चलने की शुरुआत हुई थी। आज शहर में इसकी संख्या करीब 7800 हो गई है। इन रिक्शा चालकों का दर्द है कि उन्हें सुविधा कुछ नहीं मिलती है लेकिन अवैध वसूली के रूप में हर चौराहे पर 20 रुपये देना पड़ता है। निगम ने न कोई स्टैंड बनाया है व न किराये का निर्धारण किया है। जाम लगने का दाग भी उन्हीं पर लगता है। ऊपर पुलिस का डंडा भी झेलना पड़ता है। ला मुख्यालय में वर्षों तक सामान्य रिक्शा का संचालन होता था। गरीब तबके के लोग मेहनत कर रिक्शा खींचकर चलाते थे और राहगीरों को उनके गंतव्य तक पहुंचाते थे। नई टेक्नालॉजी आने के बाद वर्ष 2015 से जिले में इलेक्ट्रिक रिक्शा यानि ई-रिक्शा चलना शुरू हुआ। धीरे-धीरे शहर में सैकड़ों ई-रिक्शा चलने लगे। 2019 आते-आते शहरी क्षेत्र में ई-रिक्शा की संख्या 500 तक थी। अब यह संख्या करीब 7800 तक पहुंच गयी है। शहर के आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों व प्रखंड मुख्यालयों से भी करीब 750 ई-रिक्शा प्रतिदिन शहरी क्षेत्र में आते-जाते हैं। ये ई-रिक्शा चलानेवाले चालक प्रतिदिन करीब 15 हजार यात्रियों को शहरी व आसपास के क्षेत्रों में उनके गंतव्य तक पहुंचाते हैं।
सोनू कुमार, पिंटू कुमार, लालबाबू पासवान आदि ई-रिक्शा चालकों का कहना है कि उनके लिए सरकारी स्तर पर कोई सुविधा नहीं है। बस स्टैंड पर जुटे ई-रिक्शा चालकों ने कहा कि शहर में ना ही ई-रिक्शा स्टैंड बना है और न ही कोई अन्य सुविधाएं उपलब्ध करायी गयी हैं। ई-रिक्शा चालक भी शहर में चलने के लिए स्टैंड का चार्ज देते हैं। गोपाल प्रसाद ने कहा- स्टैंड नहीं बनने से अधिकांश चालक देर शाम के बाद ई-रिक्शा नहीं चलाते हैं, जिससे रात में लोगों को गंतव्य तक पहुंचने में परेशानी होती है। ऐसे में अगर शहर में ई-रिक्शा स्टैंड बन जाए तो रात में भी यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाया जाएगा। ई-रिक्शा चालकों ने बताया कि शहर में जाम लगने का सारा आरोप उन्हीं पर लगता है। जब भी जाम लगता है तो ट्रैफिक पुलिस वाले ई-रिक्शा चालकों का दोष बताते हुए उनपर डंडा चलाते हैं। ई-रिक्शा को सड़क के किनारे एक मिनट भी खड़ा नहीं होने देते हैं। सड़कों पर चार पहिया वाहनों की पार्किंग प्रतिदिन चारों तरफ होती है। चार पहिया वाहन घंटों सड़क पर खड़े रहेंगे तो ट्रैफिक पुलिस के जवान कुछ नहीं बोलेंगे। ई-रिक्शा चालकों पर डंडा चलाया जाता है। उनकी समस्याओं को सुनने वाला कोई नहीं है। जनप्रतिनिधि और अधिकारी दोनों उनकी समस्याओं के समाधान के प्रति दिलचस्पी नहीं दिखाते हैं।
इसके बाद हर मौसम में हम यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाते हैं। ई-रिक्शा चालकों ने बताया कि एक शहर में हमें तीन जगह स्टैंड का टैक्स देना पड़ता है। यानि एक ही शहर में तीन जगह पर्ची कटानी पड़ती है। प्रतिदिन अगर तीनों जगह पर्ची कटी तो 60 रुपए देने पड़ते हैं। जिसमें मगरदहीघाट पर 20 रुपए, कर्पूरी बस पड़ाव के नाम पर 20 रुपए और रेलवे स्टेशन पर जाने पर 20 रुपए की पर्ची कटानी पड़ती है। वहीं अगर विपरीत मौसम , बंदी या हड़ताल के कारण सवारी की कमी हो गई या ई-रिक्शा नहीं चला तो ये 60 रुपए भी अपनी जेब से चले जाएंगे, जबकि एक ही शहर में तीन जगह स्टैंड टैक्स नहीं लगना चाहिए। लेकिन, यहां सड़क पर खुलेआम यह ज्यादती हो रही और प्रशासन आंखें बंद किए हुए हैं। इसके अलावा भी अगर कोई ई-रिक्शा चालक एसडीओ कार्यालय के पास से मोड़ लिया तो उससे 50 रुपए अतिरिक्त की वसूली की जाती है। ताजपुर रोड में सड़क पर ईिरक्शा लगाकर रखने पड़ती है। ना ही कोई स्टैंड का डाक होता है और ना ही कोई सरकारी सूचना जारी होती है। यहां तक कि पर्ची नहीं कटाने पर मारपीट तक की जाती है।
ई-रिक्शा की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ ही रही है। प्रशासन की ओर से ई रिक्शा स्टैंड के निर्माण को लेकर जमीन का चयन किया जा रहा है। जहां ई-रिक्शा चालक अपना वाहन पार्किंग कर सकते है। शहर के सड़कों पर ई रिक्शा लगा रहने के कारण जाम की समस्या उत्पन्न होती है। इसके निदान को लेकर भी ठोस कदम उठाया जा रहा है।
-केडी प्रौज्ज्वल, नगर आयुक्त
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