तबला और ढोलक बजाने-बनाने वालों के समक्ष रोजगार का संकट
समस्तीपुर में तबला, ढोलक और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों के कलाकारों की संख्या घट रही है, जिससे व्यापारियों को नुकसान हो रहा है। युवा पीढ़ी डिजिटल वाद्ययंत्रों की ओर आकर्षित हो रही है, जिससे पारंपरिक...
समस्तीपुर। तबला, ढोलक और अन्य पारंपरिक वाद्ययंत्रों को बजाने वाले कलाकारों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। इससे इस कारोबार में जुड़े व्यापारियों को नुकसान हो रहा है। व्यापारियों की शिकायत है कि सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है। सीखने और सिखानेवाले लोग भी कम रुचि रख रहे हैं। प्रशासन को इस क्षेत्र में रोजगार की संभावना तलाशने की आवश्यता है। अधिकारियों का ध्यान आधुनिक और इलेक्टिॉनिक वाद्ययंत्रों पर है, जबकि इनसे हमलोगों को अधिक नुकसान हो रहा है। पारंपरिक वाद्ययंत्रों के रख-रखाव के लिए नई तकनीक पर जोर देने की आवश्यता है। बला और ढोलक जैसे पारंपरिक भारतीय वाद्ययंत्र बनाने वाले कारीगरों की स्थिति आजकल काफी दयनीय हो गई है। ये कारीगर जो भारतीय संगीत और संस्कृति का अहम हिस्सा हैं, आर्थिक तंगी, आधुनिक तकनीकी प्रतिस्पर्धा और पारंपरिक कला के प्रति घटती रुचि से जूझ रहे हैं। इस परम्परा की समृद्धि को बनाए रखना अब मुश्किल हो गया है और इसके पीछे कई कारण हैं, जो इन कारीगरों के जीवन को चुनौतीपूर्ण बना रहे हैं। शहर के बंगाली टोला में दर्जनों ढोलक व तबला कारीगरों से जब बात की गई तो उनका दर्द छलक उठा। स्थानीय अशोक कुमार शर्मा का कहना है कि आज के दौर में संगीत के शौकिन और शिक्षा प्राप्त युवा पीढ़ी अधिकतर डिजिटल वाद्ययंत्रों की ओर आकर्षित हो रही है, जिनकी कीमत कम और रख-रखाव सरल होता है। इससे पारंपरिक वाद्ययंत्रों जैसे तबला-हारमोनियम और ढोलक के प्रति रुचि में कमी आई है। इससे कारीगरों का बाजार सिकुड़ता जा रहा है और वे अपनी कला का प्रचार-प्रसार करने में असमर्थ हो रहे हैं। वहीं विनोद कुमार राम ने बताया कि तबला और ढोलक बनाने के लिए लकड़ी, चमड़ा, और धातु जैसे कच्चे माल की आवश्यकता होती है। आजकल इन सामग्रियों की कीमतें आसमान छू रही हैं, और इनकी उपलब्धता भी सीमित हो गई है। कारीगरों को सस्ते और गुणवत्तापूर्ण सामग्री प्राप्त करने में मुश्किलें आ रही हैं, जिससे वे अपना काम उचित लागत में नहीं कर पा रहे हैं।
वहीं अजीत कुमार शर्मा ने बताया कि आज की युवा पीढ़ी इस कारीगरी से नहीं जुड़ना चाहती है। कारण है कि इसमें मुनाफा बहुत कम होता है। परिवार की युवा पीढ़ी अन्य रोजगार व नौकरी की तरफ आकर्षित हो रही है, जिस कारण यह काम भी अब बहुत कम होते जा रहा है। हमलोग पूर्वजों के काम को आगे बढ़ा रहे हैं लेकिन हमारे बाद की युवा पीढ़ी इस काम को करना ही नहीं चाहती है। कारीगर मुकेश कुमार कहते हैं कि सरकार कलाकारों की बेहतरी को लेकर कोई कदम नहीं उठा रही है। धीरे-धीरे पूंजी व अन्य कारणों से नई पीढ़ी इस ओर से नहीं आना चाहती है।
उन्होंने बताया कि एक समय था जब काम से इतने ऑर्डर रहते थे कि उसे पूरा करने में रात दिन काम करना होता था लेकिन अब ये समय गुजरे जमाने की बात हो गई है। धीरे-धीरे लोग डिजिटल वाद्ययंत्रों की ओर आकर्षित हो रही है। जिनकी कीमत कम और रख-रखाव काफी सरल होता है। अपने पारंपरिक वाद्ययंत्रों के प्रति लोग अब रुचि कम रख रहे हैं। सरकार को इस क्षेत्र में लोगों की रुचि बढ़े, इसके लिए काम करने की आवश्यकता है।
कलाकारों के लिए वित्तीय सहायता के लिए कई योजनाएं हैं। राष्ट्रीय कलाकार कल्याण निधि, युवा कलाकार छात्रवृत्ति योजना, कला प्रदर्शन अनुदान योजना, मुख्यमंत्री कलाकार सहायता योजना का संचालन किया जा रहा है। यही नहीं राष्ट्रीय कलाकार कल्याण निधि साहित्य, कला, और जीवन के अन्य क्षेत्रों में दीन-हीन परिस्थितियों में रह रहे कलाकारों को वित्तीय सहायता दी जाती है।
- विवेक कुमार , महाप्रबंधक, जिला उद्योग केंद्र
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