द्वापर युग से जुड़ा है कंदाहा का सूर्य मंदिर
महिषी में स्थित सूर्य मंदिर कन्दाहा, भक्तों को मनवांछित फल देने के लिए प्रसिद्ध है। इसका निर्माण 14वीं शताब्दी में राजा हरिसिंह देव ने कराया था। यहाँ की काले पत्थर की सूर्य मूर्ति और कुंआ का पानी चर्म...
महिषी। जिला मुख्यालय से 15 किलोमीटर दूर स्थित सूर्य मंदिर कन्दाहा में सूर्योपासना से भक्तों को मनवांछित फल मिलता है। कहा जाता है कि मिथिला के ओइनवर (ओनिहरा) वंश के राजा हरिसिंह देव के द्वारा चौदहवीं शताब्दी में इस मंदिर को स्थापित किया गया था। विद्वानों के अनुसार मूर्ति के माथे के ऊपर मेष राशि का चित्र अंकित रहने की वजह से यह भी कहा जाता है की द्वापरयुग में भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र साम्भ के द्वारा यह स्थापित है। काले पत्थर के सूर्य की अनुपम व अदभुत मूर्ति और चौखट पर उत्कृष्ट लिपि पर्यटकों व पुरातत्वविदों को अपनी ओर खासे आकर्षित करती है। इस स्थल पर जब-तब खुदाई से मिली देवी देवताओं की दुर्लभ प्रतिमाओं के बाद पुरात्विक महत्व को लेकर इस मंदिर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अपने संरक्षण में ले लिया। इस इलाके के प्रसिद्ध उग्रतारा मंदिर, कारू खिरहरि मंदिर, मठेश्वर धाम, नाकुचेश्वर महादेव, संत बाबा लक्ष्मीनाथ गोसाई आदि मंदिर पूजा करने आने वाले श्रद्धालु, सूर्य मंदिर कन्दाहा जरूर आते हैं। खासकर छठ पर्व पर एवं प्रत्येक रविवार को सूर्योपासक यह आकर भगवान भाष्कर की उपासना करते हैं। काले पत्थर की कलात्मक दुर्लभ सूर्य मूर्ति को देख श्रद्धालु खास आकर्षित होते हैं।
कुंआ में स्नान से चर्म रोग होता ठीक : इस मंदिर के कुंआ की पानी की खास विशेषता है। मान्यता है कि कुंआ के पानी से स्नान करने से कुष्ठ सहित चर्म रोगियों को काफी लाभदायक होता है। प्रत्येक रविवार को काफी संख्या में आकर यहां स्नान कर पूजन करते हैं। खासकर छठ व कार्तिक पूर्णिमा दिन इस मंदिर के कुंआ के पानी से स्नान करने के शरीर व मन को काफी लाभ मिलता है।
छठ में इस स्थान की रहती महिमा : खासकर सूयोॅपासना का महापर्व छठ में इस मंदिर व स्थल का महत्व काफी बढ़ जाता है। छठ के मौके पर इस मंदिर में श्रद्धालुओं द्वारा खास कार्यक्रम व विशेष पूजा की जाती है। इस जगह चैत्री छठ भी मनाया जाता है।
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