Hindi Newsबिहार न्यूज़सहरसाSama-Chakeba Festival Celebrating Brother-Sister Bond in Mithilanchal

सामा गीतों से गूंज रही ग्रामीण गलियां

सामा चकेबा पर्व मिथिलांचल का प्रसिद्ध पारंपरिक लोकपर्व है, जो भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक है। यह पर्व कार्तिक मास की पंचमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक मनाया जाता है। इसमें बहनें अपने भाइयों...

Newswrap हिन्दुस्तान, सहरसाWed, 13 Nov 2024 12:02 AM
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महिषी, एक संवाददाता । गाम के अधिकारी तोहे बड़का भैया हो़़़, छाऊर छाऊर छाऊर, चुगला कोठी छाऊर भैया कोठी चाऊर तथा साम चके साम चके अबिह हे, जोतला खेत मे बैसिह हे तथा भैया जीअ हो युग युग जीअ हो गीतों से ग्रामीण गलियां गुंजायमान होने लगी है। छठ महापर्व के खरना दिन से शुरू होने वाला सामा चकेबा मिथिलांचल का प्रसिद्ध पारम्परिक लोकपर्व है। यह लोकपर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक पर्व है। रविवार को सामा चकेबा पर्व होने के कारण लगभग सभी परिवारों में महिलाएं सामा चकेबा सहित अन्य मू्त्तितयों को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं। यह पर्व पूर्व मेंं गांव से शहर तक पूरे उत्साह से मनाया जाता था, लेकिन समय के साथ इसमें ह्रास आने लगा है। अब शहरी क्षेत्रों में सामा चकेबा त्योहार कमोवेश ही देखा जाता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी यह पर्व पूरे उत्साह और श्रद्धा से मनाया जाता है। इसमें बहनें सामा-चकेबा, चुगला आदि की मूर्ति बनाकर उन्हें पूजती हैं। हर दिन पर्व से सम्बन्धित लोक गीत गाया जाता है। इसे मिथिलांचल क्षेत्र में विशेष धूमधाम से मनाया जाता है। पर्व के दौरान बहनें अपने भाई के दीर्घ जीवन एवं सम्पन्नता की मंगल कामना करती है। सामा-चकेबा का पर्व पर्यावरण से संबद्ध भी माना जाता है। ग्रामीण पंडितों के अनुसार कार्तिक मास की पंचमी शुक्ल पक्ष तिथि से सामा-चकेबा की शुरुआत हो जाती है। इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है। आगामी 15 नवम्बर को कार्तिक पूर्णिमा है। पूर्णिमा की शाम को नदियों व खेतों में इन मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है। चर्चाओं के अनुसार मंत्री चरक की चुगली के कारण भगवान श्री कृष्ण के श्राप से उनकी पुत्री श्यामा पक्षी बन गयी। जिसपर शिव भक्त श्रीकृष्ण के दामाद चारुदत्त ने भी पक्षी रूप धारण कर लिया। शरद ऋतु के कार्तिक महीने में सामा-चकेबा पक्षी की जोड़यिां मिथिला में प्रवास करने पहुंच गयी थी। भाई साम्भ भी उसे खोजते मिथिला पहुंचे और वहां की महिलाओं से अपने बहन-बहनोई को श्राप से मुक्त करने के लिये सामा-चकेबा का खेल खेलने का आग्रह किया। कहते हैं कि उसी द्वापर युग से आजतक इसका आयोजन होता आ रहा है। मिथिलांचल अपनी लोक संस्कृति, पर्व-त्योहार एवं पुनीत परंपरा के लिए प्रसिद्घ रहा है। इसी कड़ी में भाई-बहन के असीम प्रेम का प्रतीक लोक आस्था का पर्व सामा-चकेबा है। मिथिला की प्रसिद्घ संस्कृति एवं कला का सामा-चकेबा पर्व भी एक अंग है। सामा-चकेबा की मूर्ति बनाने में बालिका एवं नवयुवती तल्लीन रहती है। मिथिलांचल में भाईयों के कल्याण के लिए बहनें यह पर्व मनाती है। पर्व के दौरान बहनें सामा, चकेबा, चुगला, सतभईयां को चंगेरा में सजाकर पारंपरिक लोकगीतों के जरिये भाईयों के लिए मंगलकामना करती है।

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