गुर्री व मखाना बेच किसान हो रहे मालामाल
सहरसा के किसान इस बार गुर्री और मखाना बेचकर अच्छे मुनाफे में हैं। गुर्री की कीमत 6 से 15 हजार से बढ़कर 34 हजार रुपए प्रति क्विंटल हो गई है। उच्च क्वालिटी के मखाने की कीमत भी दोगुनी हो गई है। मखाना...
सहरसा। कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल के किसान गुर्री व मखाना बेचकर मालामाल हो रहे हैं। छह से 15 हजार बिकने वाला गुर्री (मखाना का कच्चा दाना अथवा बीज) इस बार 36 हजार रुपए क्विंटल बिक रहा है। अच्छी क्वालिटी के मखाने की कीमत भी इस साल दोगुनी से अधिक है। उद्यान विभाग के फीडबैक में उच्च क्वालिटी का मखाना 1500 रुपए किलो बिक रहा है। सहरसा के जिला उद्यान पदाधिकारी सह सहायक निदेशक उद्यान शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि मखाना की ब्रांडिंग देश से लेकर विदेश तक में होने से इसकी मांग काफी बढ़ गई है। इस कारण 6 से 15 हजार प्रति क्विंटल बिकने वाला गुर्री इस साल 34 हजार रुपए बिक रहा है। जिले के किसानों से लिए गए फीडबैक में यह भी जानकारी मिली है कि अच्छी क्वालिटी के मखाना की बिक्री कीमत हजार से 1500 रुपए किलो है। पहले इसकी कीमत 500 से 600 रुपए रहती थी।
किशनगंज के सहायक निदेशक उद्यान राहुल रंजन ने कहा कि इस बार गुर्री (गुड़यिा) की कीमत 2400 रुपए प्रति क्विंटल की दर से शुरू हुई। जो अभी किशनगंज सहित सीमांचल इलाके में 3200 रुपए क्विंटल चल रही है। वहीं अच्छी क्वालिटी के मखाना की कीमत 1200 रुपए है। सहरसा के मखाना उत्पादक किसान सज्जन ने कहा कि इस बार गुर्री की बिक्री से रिकॉर्ड कमाई हो रही है। छह हजार रुपए क्विंटल बिकने वाली गुर्री 34 हजार रुपए क्विंटल तक खरीदे जा रहे हैं। किसान के मुताबिक गुर्री को खरीदकर कारोबारी पूर्णिया या दरभंगा ले जाते हैं। वहां गुर्री को फोड़कर मखाना का लावा तैयार किया जाता है। सहरसा जिले में 200 हेक्टेयर यानी 5 हजार एकड़ में मखाना की खेती होती है। जिसमें दरभंगा से सटे इलाके को छोड़कर अन्य जगहों पर सबौर मखाना वन की खेती होती है।
मखाना से बनते कई तरह के उत्पाद: मखाना को पौष्टिक से भरपूर माना गया है। इससे स्नैक्स, हलुआ, कुरकुरे सहित अन्य उत्पाद बनते हैं। भूंजा मखाना और इसका खीर बना हुआ भी काफी प्रचलित है।
पहले गुर्री लगाने में खर्च नहीं निकलता था: पहले कई बार ऐसा मौका आया था जब गुर्री लगाने में हुई खर्च राशि नहीं निकलता था। किसान विष्णुदेव ने कहा कि वित्तीय वर्ष 2020-22 में तो मात्र 6 हजार रुपए प्रति क्विंटल गुर्री बिका था। उससे ज्यादा गुर्री लगाने में खर्च हो गया।
अगस्त से अक्टूबर तक निकलता गुर्री अगस्त से अक्टूबर तक गुर्री निकलता है। अगस्त से ही गुर्री से मखाना का लावा बनना शुरू हो जाता है, जो दिसंबर तक निकलता है।
सबौर मखाना वन बीज लगाने से बढ़ा उत्पादन: सबौर मखाना वन बीज लगाने से 12 से 15 क्विंटल मखाना उत्पादन बढ़ गया। मखाना अनुसंधान केंद्र भोला शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के प्रधान अन्वेषक सह विशेषज्ञ डॉ. अनिल कुमार ने कहा सबौर मखाना वन बीज की रोपाई बाद एक हेक्टेयर में बड़े आकार के 32 से 35 क्विंटल मखाना का उत्पादन होने लगा है। इस बीज के बदले दूसरे बीज का उपयोग करने से एक हेक्टेयर में 19 से 20 क्विंटल मखाना उत्पादन ही होता था।
ट्रेन से मखाना दिल्ली इटारसी तक भेज रहे: सहरसा से ट्रेन के जरिए मखाना देश के विभिन्न हिस्सों में पहुंच रहा है। पार्सल से बुक कराकर किसान और व्यापारी सिवान, गोरखपुर, दिल्ली, लुधियाना, अमृतसर, इटारसी सहित अन्य जगहों को मखाना भेज रहे हैं। सहरसा से वैशाली एक्सप्रेस, पुरबिया एक्सप्रेस, बांद्रा हमसफर एक्सप्रेस से बुक किया मखाना भेजा जाता है। जनसेवा,जनसाधारण से भी मखाना भेजा जाता है। हर माह 2 हजार से अधिक मखाना भरा बोरा बुक होता है
बिहार के मखाना की विदेशों तक में भी मांग : मखाना की विदेशों तक में जबरदस्त मांग बढ़ गई है।
मखाना अनुसंधान केंद्र भोला शास्त्री कृषि महाविद्यालय पूर्णिया के प्रधान अन्वेषक सह विशेषज्ञ ने कहा कि कोसी, सीमांचल और मिथिलांचल से मखाना सिंगापुर, अमरीका, बांग्लादेश, पाकिस्तान, रूस, नेपाल, कनाडा, सऊदी अरब सहित अन्य देशों को जाता है। बता दें कि डाक विभाग के जरिए भी मखाना विदेशों के बाजार में पहुंच रहा है।
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