सब्जी में पहले करते थे निर्यात अब आयातित खाते
कहरा के ग्रामीण क्षेत्र में पहले सब्जी की भरपूर खेती होती थी, लेकिन अब नीलगाय और बंदरों के आक्रमण के कारण किसान अपनी फसलें छोड़ने को मजबूर हैं। पहले ताजा सब्जी के लिए लोग गांव आते थे, लेकिन अब वे...

कहरा, एक संवाददाता। प्रखण्ड के इस ग्रामीण क्षेत्र में पूर्व में अधिकांश परिवार गांव के किनारे स्थित जमीन में सब्जी की खेतीबारी कर प्रचूर मात्रा में सब्जी उत्पादन करते थे। परिवारों के आवश्यकता के पूर्ति करने के साथ ही बाजारों में भी निर्यात करते थे। समाज में भी खेती नहीं करने बालों को घर एवं भोज के लिए भी सब्जी गांव में सहजता से उपलब्ध हो जाता था। गांव में उत्पादित सब्जी की सबसे बड़ा विशेषता यह था कि इसमें कम मशाला लगता था। वनीय जीवों ने लगाया विराम: नीलगाय, बन्दर सहित अंन्य वनीय जीव अब गांव के किनारे आकर गोबी, आलू, बैगन सहित अन्य फसलों को बर्बाद कर दिया जाता है। सभी सीमाओं को लांघते हुए बन्दर की टोली घनी आवासीय क्षेत्र में आकर लोगों के छत पर लगे कददू, कदीमा, झींगा सहित अन्य लती में फलने बाले सभी सब्जी को बर्वाद करने के कारण मजबूरी वश छोड़ना पड़ा।
यह बतादें कि अपने जमीन में उत्पादित सब्जी काफी स्वादिष्ट होता था। ये उत्पादक किसान के द्वारा खेतों में मात्र गोबर के खाद का उपयोग किया जाता था। इस कारण इसे पकाने में अपेक्षाकृत बहुत कम मशाला का उपयोग किए जाने के बावजूद स्वादिष्ट एवं स्वास्थ्य वर्धक होता था। प्रखण्ड के इस ग्रामीण क्षेत्र में लोग अब आयातित एवं ब्यवसायिक तौर पर उत्पादित सब्जी पर पुरी तरह निर्भर है। पूर्व में शहर के लोग ताजी सब्जी के लिए गांव आते थे। वहीं अब अन्य जिला से आयातित सब्जी के लिए शहर जाते हैं। अधिक उत्पादन एवं मुनाफा के लिए व्यवसायिक तौर पर खेतीवाड़ी करने बाले अधिकतर किसानो द्वारा रासायनिक खाद एवं अत्यधिक कीट नाशक का उपयोग कर उत्पादित संकर किस्म का शब्जी स्वादिष्ट नहीं होने के साथ ही स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक होता है।
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