मिथिला एवं बिहार का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा आज
बनमनखी, संवाद सूत्र। बनमनखी, संवाद सूत्र। मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा आज मनाया जाएगा। यह पर्व पर्यावरण ,पशु, पक्षी, संस्कृति,परंपरा एवं भ
बनमनखी, संवाद सूत्र। मिथिला का प्रसिद्ध लोक पर्व सामा चकेवा आज मनाया जाएगा। यह पर्व पर्यावरण ,पशु, पक्षी, संस्कृति,परंपरा एवं भाई-बहन के स्नेह संबंधों को प्रगाढ़ बनाने का पर्व है। यह पर्व मिथिला के घर-घर में 7 दिनों तक मनाया जाता है। इसकी शुरुआत छठ के दूसरे दिन सप्तमी से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा की रात सामा चकेवा विसर्जन के साथ संपन्न होता है। इस पर्व को मनाने के दौरान महिलाएं मिथिला के लोकगीत जैसे भगवती गीत, सोहर, झूमर ,बट गबनी, नचारी,उदासी,समदाउन सात दिनों तक गाती है तथा सात दिनों तक सामा चकेवा को धान का शीश चढ़ाया जाता है। अंतिम दिन नए धान का चूड़ा दही गुड़ आदि के साथ सामा चकेवा की बेटी की तरह विदाई की जाती है। इस पर्व के दौरान सात दिनों तक मिथिला का घर आंगन पारंपरिक लोकगीतों से गूंज उठता है। सामा चकेवा का यह पर्व मिथिलांचल, कोशी, सीमांचल के अलावा बिहार के कोने-कोने में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व को खासकर महिलाएं एवं लड़कियां बढ़ चढ़कर उत्साह के साथ मनाती हैं तथा अपने भाई के सुख समृद्धि एवं मंगल कामना के लिए भगवान श्री कृष्ण से आशीर्वाद मांगती हैं।
...ऐसे खेलते हैं समा चकेवा का खेल:
-सामा चकेवा का खेल खेलने के लिए महिलाएं मिट्टी की मूर्तियां बनाती हैं, जिसमें सामा ,चकेवा ,वृंदावन, चुगला, पेटार, भंवरा, झांझी कुत्ता, डोली ,कहार, आदि की मूर्ति शामिल होती है, जिसे रंग बिरंगे रंगों से रंगा जाता है। महिलाएं एवं लड़कियां बांस के बने डाला में मूर्तियां लेकर सर पर रखते हुए पारंपरिक गीत गाती हुई चांदनी रात में गांव की गलियों से गुजरते हुए खेत या चौबटिया पर इसका विसर्जन करती हैं। इस दौरान भाई सामा चकेवा की मूर्तियों को तोड़ता है। बहनें पारंपरिक लोकगीत गाते हुए चुगला एवं वृंदावन के चूल को जलाती है तथा अपने भाई को नए धान का कूटा हुआ चूड़ा दही एवं शक्कर खिलाती है। इस दौरान लोग आतिशबाजी भी होती है। विसर्जन के बाद महिलाएं गीत गाती हुई अपने घर को लौट जाती है
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