Hindi Newsबिहार न्यूज़पूर्णियाChoravrat Festival Unique Tradition of Sun Worship in Kasba

लोक आस्था का पर्व चोरा व्रत शुरू

-फोटो--फोटो- कसबा, एक संवाददाता। कसबा में सूर्य पूजा पर आधारित लोक आस्था कर पर्व चोराव्रत दीपावली के एक दिन बाद से मनाया जाता है। हर वर्ष किसी न क

Newswrap हिन्दुस्तान, पूर्णियाSat, 2 Nov 2024 12:59 AM
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कसबा, एक संवाददाता। कसबा में सूर्य पूजा पर आधारित लोक आस्था कर पर्व चोराव्रत दीपावली के एक दिन बाद से मनाया जाता है। हर वर्ष किसी न किसी परिवार का मनौती पूर्ण होने पर इस पर्व को करते है। इस वर्ष भी नगर के करीब एक दर्जन घरों में चोराव्रत का त्योहार मनाया जा रहा है। इस व्रत को करने की परपंरा भी अलग है। व्रत करने वाले मनौती पूर्ण होते ही व्रत की तैयारियां एक वर्ष पूर्व से ही शुरू कर देते है। दुर्गा पूजा के समय से ही घर का रंग-रोगन करते हैं। व्रत के एक सप्ताह पूर्व ही गंगा स्नान पूरे परिवार के सदस्यों द्वारा किया जाता है। परिजनों के घर चोरी करने पहुंचे हैं व्रतधारी:

यह पर्व दीपावली के अर्धरात्रि के समय शुरू होता है। अर्धरात्रि के समय व्रतधारी एक मिट्टी के चूल्हे में विशेष प्रकार का भोजन दूध और चावल से बनाया जाता है। उसी भोजन का सेवन सभी व्रतधारी द्वारा किया जाता है। अहले सुबह ग्यारह बजे से घर के आंगन में व्रत की पूजन विधि विधान प्रारंभ हो जाती है। परिवार के सभी व्रतधारी पुरूष का सिर मुंडन नाई द्वारा कर दिया जाता है तथा नया वस्त्र पहनाया जाता है। इसके बाद सिर पर पाट के रेशा को पीला रंग में रंग कर बांधा जाता है तथा शरीर पर चट्टी का बना पीला वस्त्र को पहनाया जाता है। हाथ में छूरा होता है जिसके नोक पर सुपाड़ी गूथा रहता है। अब ये व्रतधारी चोर हो जाते है। इन चोरों का सरदार एक मामा भी होता है। जो रिश्ते में मामा होते हैं। उसके हाथों में एक लम्बी तलवार होती है। इसके साथ कीर्तन मंडली भी शामिल रहते हैं। चोर भांजा-भांजी को अपने इष्ट मित्रों व स्वजनों के घर जाकर चोरी करते है। चोरी करने के क्रम में घर के महिला सदस्य उसके पांव पानी से धोते हुए एक चोर के माथे पर पाट का रेशा का कुछ अंश काट लेती है और बदले में चावल व दक्षिणा दिया जाता है। इसी तरह यह व्रत दिनभर चलता रहता है। रात्रि समय भगवान सत्यनारायण की पूजा-अर्चना की जाती है और फिर शनिवार की सुबह से लेकर दोपहर तक इस्ट मित्रों व स्वजनों के घर चोरी करने का यह कार्यक्रम चलता रहता है। दोपहर बाद किसी नदी पोखर या तालाब में इस पर्व का समापन किया जाता है। कहा जाता है कि जिस घर में चोराव्रत का पर्व होता है उस परिवार के सदस्यों को तीन साल लगातार छठ पर्व करना जरूरी होता है।

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