भगवान की शरणागति से ही कल्याण संभव : स्वामी राघवाचार्य
गांधी मैदान में आयोजित श्रीरामकथा के तीसरे दिन स्वामी राघवाचार्य महाराज ने भगवान की भक्ति और शरणागति का महत्व बताया। उन्होंने राजा प्रताप भानु की कथा सुनाते हुए कहा कि बिना भक्ति के कोई भी कार्य सफल...
आध्यात्मिक सत्संग समिति के बैनर तले गांधी मैदान में आयोजित श्रीरामकथा के तीसरे दिन सोमवार को स्वामी राघवाचार्य महाराज ने प्रभु की भक्ति और मानव कल्याण की बात बताई। बताया कि भगवान की शरणागति से ही कल्याण संभव है। उन्होंने राजा प्रताप भानु की कथा सुनाते हुए कहा कि उन्होंने वेद में वर्णित यज्ञ कई बार किये। उन्होंने इस कर्म के लिए कोई फल की आकांक्षा भी नहीं की, लेकिन उनके ये कर्म इसलिए सफल नहीं हुए क्योंकि उन्होंने खुद को भगवान को समर्पित नहीं किया। इस कारण उनका पूरा परिवार राक्षस बन गया और प्रताप भानु ही रावण बने। पूरे जीवन आप भगवान की भक्ति करते हैं, लेकिन मरते समय यदि भगवान की स्मरण नहीं किया तो आपको मुक्ति नहीं मिलेगी। स्वामी जी के टीम ने जब ‘तेरे बिगड़े बनेगे काम फिक्र क्या करना पर श्रद्धालु जमकर झूमे। आध्यात्मिक सत्संग समिति के अध्यक्ष कमल नोपानी ने कहा कि गांधी मैदान में चल रही रामकथा को सुनने पूरे परिवार के साथ लोगों को आना चाहिए। रामकथा सुनने से बच्चों में संस्कार आता है। कथा समापन के बाद यहां सुंदरकांड का पाठ होगा।
भगवान की शरणागति का बड़ा महत्व : भगवान के प्रति शरणागति के महत्व पर प्रकाश डालते हुए स्वामी जी ने कहा कि ब्रह्मलोक में ब्रह्मा जी की अध्यक्षता में सभी देवताओं की सभा हुई। सभी ने भगवान की शरणागति की। अयोध्या प्रसंग सुनाते हुए कहा कि जब भगवान अयोध्या में प्रकट हुए तो वहां महर्षि विश्वामित्र ने आकर भगवान की शरणागति की। मिथिला में आने पर मिथिला के लोगों ने भगवान की शरणागति की। वन जाते वक्त लक्ष्मण जी ने फिर केवट, हनुमान, सुग्रीव और विभीषण ने भगवान की शरणागति की। जब प्रभु श्रीराम अयोध्या की राजगद्दी पर बैठे तो समस्त सृष्टि ने उनकी शरणागति की।
सीता मां की कथा ने किया भक्तों को भाव विह्वल : स्वामी जी ने माता जानकी जी के पावन चरित्र का वर्णन कर भावविभोर कर दिया। कहा कि वन से लौटने के बाद एक प्रजा की ओर से माता जानकी के ऊपर लगाये गये आरोप को प्रभु श्रीराम अपने पराक्रम से दबा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं करके एक आदर्श प्रस्तुत किया। माता सीता के धरती में समाने का प्रसंग जब उन्होंने सुनाया तो श्रद्धालु भाव विह्वल उठे। वे कहते हैं कि महर्षि वाल्मिकी सीता माता को लेकर अयोध्या पहुंचे। उन्होंने प्रभु श्रीराम से कहा कि मैं तुम्हारी सभा में शपथ लेकर कहता हूं कि सीता निष्पाप हैं उन्हें स्वीकार करो। इसी दौरान सीता जी ने सर झुकाकर कहा कि यदि मैंने अपने मन कर्म और वचन से प्रभु की सेवा की हो तो यह धरती फट जाये उसी समय सीता जी के रोम से सिन्दूर झरने लगा और धरती फट गयी। अन्दर भू-देवी सिंहासन लेकर प्रकट हुई और बोली बेटी मेरे साथ चलो फिर सीता जी उनकी गोद में बैठ गयी और धरती में समा गयी। यह दृश्य देखकर प्रभु श्रीराम धरती पर मस्तक रगड़ते हुए सीते लौट आओ कहकर विलाप करने लगे ।
अश्विनी चौबे सहित कई गणमान्य रहे मौजूद : सोमवार को कथा श्रवण के लिए पूर्व केन्द्रीय मंत्री अश्विनी कुमार चौवे उनके पुत्र शाश्वत चौवे, संजय भालोटिया, विजय किशोरपुरिया, जर्नादन राय, रामलाल खेतान, गजेन्द्र बुबना, राहुल खंडेलवाल, गिरधर झुनझुनवाला, सुशील सुंदरका, गोपाल कृष्ण लक्ष्मण अग्रवाल, मनीष तिवारी, सोहन प्रसाद गुप्ता सहित अन्य लोग मौजूद रहे।
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