विलुप्त हो रही भोजपुरी कहावतों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रहे सव्य साची
क्षेत्रीय भाषाओं की कहावतें जीवन से जुड़ी होती हैं। IPS अधिकारी सव्य साची ने भोजपुरी कहावतों को संग्रहित कर उनका हिन्दी अनुवाद किया है। उनका उद्देश्य कहावतों की लुप्त होती परंपरा को पुनर्जीवित करना...
क्षेत्रीय भाषाओं की कहावतों का जीवन से सीधा सरोकार रहा है। हमारे बड़े बुजुर्ग सामान्य बातचीत में कहावतों का खूब इस्तेमाल करते रहे हैं। इनमें सम्प्रेषणीयता की अद्भूत शक्ति होती है। भोजपुरी साहित्य पर काम कर रहे बंगाल कैडर के भारतीय पुलिस सेवा के वरिष्ठ अधिकारी सव्य साची पिछले कुछ दिनों से कहावतों को संग्रहित कर उसका हिन्दी अनुवाद कर रहे हैं। वे विभिन्न माध्यमों से इसे लोगों तक पहुंचा भी रहे हैं। वे कहावतों की लुप्त हो रही परम्परा को पुनजीर्वित करने में लगे हैं। कहावतों के माध्यम से कड़वी से कड़वी बातें भी इस तरह कह दी जाती हैं, जिससे न तो वक्ता को अपनी मूल बात कहने में असहजता होती है और न श्रोता ही आहत होते हैं।
उत्तरदायित्व बोध प्रशंसनीय : डा. कलानाथ मिश्र
भाषाविद भी कहते हैं कि कहावतें हमारी संवेदनाओं के संचार का भी सशक्त माध्यम हैं। लेकिन समय के साथ लोकभाषाओं से मुहावरे और कहावत गायब होने लगीं। युवा पीढ़ी तो कहावतों से पूरी तरह कटती जा रही है। भाषाविद और एएन कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डा. कलानाथ मिश्र कहते हैं कि कहावतों से एक तो भाषा का सौन्दर्य बढ़ जाता है साथ ही लोक के अवचेतन में इसके विद्यमान होने से बात की समझ आसानी से होती है। सीनियर आईपीएस सव्य साची के प्रयासों की सराहना करते हुए डा. मिश्र ने कहा कि पुलिस सेवा में रहकर भी भाषा के प्रति यह उत्तरदायित्व बोध प्रशंसनीय है।
जबले करीं बाबू बाबू, तबले चलाईं आपन काबू
उनके द्वारा संग्रहित कुछ कहावतों की बानगी और उनका हिन्दी अनुवाद दिलचस्प है - उचकले न मिली दान, मांगले ना रही मान (उचककर खड़ा होने से दान नहीं मिलता है, हाथ पसारने से मान नहीं मिलता है अर्थात् संतोष के अभाव में अभीष्ट की प्राप्ति नहीं होती है) इसी तरह, जबले करीं बाबू बाबू, तबले चलाईं आपन काबू (दूसरों की खुशामद करने में जितना समय बर्बाद करेंगे उतने में खुद के बूते काम पूरा कर लेंगे।) सात पांच मिली करीं काज, हारी जीतीं नाहीं लाज( सामूहिक काम में विफलता और सफलता का जिम्मा किसी एक के हिस्से नहीं आता।) रहे निरोगी जो कम खाय, काम न बिगड़े जो गम खाय (जो कम खाते हैं वे निरोग रहते हैं और जो गम खाते हैं, उनका काम नहीं बिगड़ता है।) आलस नींद किसाने नासे, चोरे नासे खांसी (आलस्य और नींद से किसान का नुकसान होता है, चोर का खांसी से नुकसान होता है।) मारल चोर उपासल हीत, फेरु फेरु दुअरे ना लागे (चोट खाया हुआ चोर और भूखा रहने पर अतिथि ये दोनों लौटकर फिर उस द्वार पर नहीं आते।) बात के चूकल आदमी और डारि के चूकल बानर के ठेकान न लागे (वचन का पालन नहीं करने वाला आदमी और डाल से चुके हुए बंदर को शरण नहीं मिलती।)
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