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बोले आरा: पोल्ट्री कारोबारियों को कम ब्याज पर लोन और प्रशिक्षण की सुविधा मिले

पोल्ट्री व्यवसाय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन किसानों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। बढ़ती लागत, बीमारी के मामले, और बाजार में मांग की कमी ने इस व्यवसाय को प्रभावित किया...

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाFri, 21 Feb 2025 12:08 AM
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बोले आरा: पोल्ट्री कारोबारियों को कम ब्याज पर लोन और प्रशिक्षण की सुविधा मिले

मुर्गी पालन, हेचरी और अंडा उत्पादन पोल्ट्री व्यवसाय में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। ग्रामीण इलाकों में कम खर्च में ब्रायलर का उत्पादन कर मुनाफा कमाना युवाओं को भा रहा है। हालांकि पिछले कुछ समय से इस कारोबार में बड़ी-बड़ी कंपनियों के पैर पसारने के बाद छोटे मुर्गी पालकों की चिंता बढ़ गई है। बेहतर उत्पादन होने के बाद भी खुले बाजार में इनके उत्पादों की बिक्री में पहले जैसा लाभ नहीं मिल पा रहा है। समय-समय पर मुर्गियों की मौत से इन्हें नुकसान उठाना पड़ता है । इसके लिए समय-समय पर समुचित प्रशिक्षण दिये जाने की जरूरत है। बैंकों से सुलभ तरीके से लोन नहीं मिलने के चलते भी मुर्गी पालकों का कारोबार प्रभावित हो रहा है। ग्रामीण इलाकों में कुक्कुट पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय के तौर पर जाना जाता रहा है। यह न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है, बल्कि यह ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार का अवसर भी प्रदान करता है। शहरों की अपेक्षा ग्रामीण इलाकों में मुर्गी पालन कम दिनों में फायदेमंद व्यवसाय के तौर पर जाना जाता है। पूरे भोजपुर जिले में कुक्कुट पालन बड़े पैमाने पर किया जाता है, जहां इसके अंडे और मांस के साथ इसके वेस्ट पदार्थ (मल) का उपयोग भी खाद के रूप में किया जाता है। लंबे समय से कुक्कुट पालन में लगे किसान अपनी लागत व लाभ के अनुरूप बाजार भाव तय करते आ रहे थे।

इस व्यवसाय में गांव से शहर के बाजार तक मांस व अंडे की बिक्री सीधे गांव के फॉर्म से किए जाने का चलन था, मगर अब इस धंधे में स्थानीय बाजार की जगह बड़ी-बड़ी कंपनियां भी धीरे-धीरे पैठ बना रही हैं। चूजे से लेकर खाना व दवा तक उपलब्ध कराकर बीच की बड़ी रकम कंपनी ले जाती है तो बदले में किसान अदद छोटी रकम पाकर ही संतोष करने को मजबूर होते हैं। हालांकि कंपनी इसे किसानों के लिए व्यवस्था सरल व सुलभ बताती है, जहां उसे कम जोखिम पर इस कच्चे व्यवसाय में प्रति माह आमदनी की गारंटी होती है। पूर्व में कम लागत में अच्छा मुनाफा देने वाला व्यवसाय माने जाने वाला पोल्ट्री व्यवसाय अब किसानों के लिए दिन-ब-दिन मंहगा सौदा होता जा रहा है। पोल्ट्री हाउस, अनाज, पानी व बिजली के दिन-ब-दिन बढ़ते खर्च कुक्कुट पालन करने वाले किसानों पर अनावश्यक बोझ डालने लगा है। मुर्गी पालन के व्यवसाय में लगे किसानों को कई समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।

मुर्गी के चारे की कीमतें बढ़ने, मुर्गी की बीमारियों के बढ़ते मामले ने जहां लागत खर्च बढ़ा दी है, वहीं बाजार में मांग की कमी जैसी समस्या पोल्ट्री व्यवसायियों के लिए बड़ी चुनौती बनती जा रही है। पोल्ट्री व्यवसायियों की मानें तो बाजार में मांग की कमी भी बड़ी समस्या के रूप में उभर रही है। लोगों की खपत की आदतें बदल रही हैं और वे अब पहले की तरह मांस व अंडे का सेवन नहीं कर पा रहे हैं। इससे पोल्ट्री व्यवसायियों को अपने उत्पाद बेचने में मुश्किलें हो रही हैं। पोल्ट्री व्यवसायियों की मानें तो आए दिन मुर्गी की बीमारियों का भी खतरा बढ़ता रहता है। कमोबेश हर वर्ष बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं। मुर्गी की मृत्यु दर बढ़ रही है और व्यवसायियों को भारी नुकसान हो रहा है। उच्च बिजली दर व अधिक बिजली की खपत के कारण पोल्ट्री फॉर्म को वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ता है। किसानों को अपने पोल्ट्री फॉर्म में मुर्गी उत्पादन में बिजली की कमर्शियल दर अदा करनी पड़ती है। प्रस्तुति : दीपक कुमार सिंह

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तकनीकी ज्ञान के बाद भी बैंकों का सहयोग नहीं

पूरे भोजपुर में सिर्फ कोईलवर प्रखंड मुख्यालय स्थित ग्रामीण स्वरोजगार संस्थान में युवाओं को अलग-अलग विधाओं में प्रशिक्षित किया जाता है। दस दिनों तक चलने वाले आवासीय प्रशिक्षण में हर माह लगभग सौ युवा प्रशिक्षण लेते हैं। इस मद में सरकार ग्रामीण क्षेत्र के बेरोजगार युवाओं को स्वावलंबी बनाने हेतु ट्रेनिंग के दौरान नाश्ता, खाना व रहने पर अच्छी खासी रकम खर्च करती है। अपने क्षेत्र में दक्षता प्रशिक्षण ले चुके युवाओं को बैंकों से ऋण दिलाने में सहयोग करने का जिम्मा कमोबेश संबंधित संस्थान पर ही है पर अफसोस यह है कि ट्रेनिंग के बाद मिले दक्षता प्रमाण पत्र घर की शोभा बढ़ाने के अलावा किसी काम के नहीं साबित हो रहे। युवाओं की मानें तो तकनीकी ज्ञान उपलब्ध कराने की व्यवस्था इस व्यवसाय में उतरने वालों के लिए महज खानापूरी साबित हुई है। हालांकि कोईलवर स्थित पंजाब नेशनल बैंक के सहयोग से चलाये जा रहे ग्रामीण स्वरोजगार संस्थान से जुड़े लोगों ने बताया कि चालू वित्तीय वर्ष में ट्रेनिंग का डाटा मौजूद है पर ऋण प्राप्त कर व्यवसाय शुरू किए जाने की जानकारी नहीं है। इधर, पोल्ट्री व्यवसाय में युवा उद्यमियों से जुड़े लोगों से बैंकों से ऋण पर मदद में संस्थान की भागीदारी के बाबत पूछे जाने पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं मिला। पोल्ट्री व्यवसाय में कदम रखे दर्जनों लोगों से की गई रायशुमारी में इस शिकायत पर लोगों ने खुलकर अपने विचार रखे। पोल्ट्री फार्मिंग में शामिल दर्जनों उद्यमियों ने बताया कि प्रखंड व जिले की कौन कहे, राज्य स्तर से तकनीकी ज्ञान मिलने के बाद कुक्कुट पालन के लिए युवा बैंकों की दौड़ लगाते रहे पर बैंकों की ओर से उन्हें ऋण उपलब्ध कराने में कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई गई। नतीजा यह है कि जानकारी के अभाव में न तो युवा उद्यमी पूंजी लगा पाते हैं और न ही इस व्यवसाय में उम्मीद के मुताबिक तरक्की ही कर पाते हैं।

सुझाव

1. सरकार को मुर्गा का मूल्य निर्धारण करना चाहिए, जिससे पोल्ट्री फार्मिंग में उद्यमियों को इसका फायदा मिल सके।

2. मुर्गियों के लिए चूजा, चारे व दवा की लगातार बढ़ते मूल्य पर अंकुश लगाने की जरूरत है।

3. पोल्ट्री के लिए चारे के उत्पादन में अनाज और विटामिन का उल्लेख करना आवश्यक किया जाना चाहिए

4. पोल्ट्री व्यवसाय में मुर्गियों की मृत्यु से प्रभावित उद्यमियों के हित में फॉर्म में बीमा की व्यवस्था की जानी चाहिए।

5. ट्रेनिंग संस्थानों को तकनीकी जानकारी उपलब्ध कराने के बाद उद्यमियों को बैंकों से ऋण दिलाने में सहयोग करना चाहिए।

शिकायतें

1. लागत बढ़ जाने से पोल्ट्री उत्पादों को किसान बाजार के प्रतिस्पर्धा मूल्य पर बेच पाना मुश्किल होता है।

2. बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के बढ़ते मामले में मुर्गियों की देखरेख हेतु चिकित्सा सुविधा मुहैया नहीं की जाती है।

3. बैंकों की ओर से दी जाने वाली ऋण की शर्तें, ब्याज दरें और सुरक्षा की आवश्यकता पर सरकार का ध्यान नहीं।

4. प्रशिक्षण संस्थान सरकार की ओर से जारी योजनाओं की जानकारी देने और बैंक से ऋण मुहैया कराने में सहयोग नहीं करते

5. पोल्ट्री फॉर्म में घरेलू बिजली दरों की जगह व्यावसायिक बिजली दर सरकार की ओर से वसूल करना ज्यादती है।

लोगों ने रखीं बातें

कुक्कुट पालन में मांस के साथ अंडे जैसे उत्पादों के लिए बाजार की अनियमितता बड़ी चुनौती है, जिससे मुर्गी पालकों को अपने उत्पादों को बेचने में मुश्किल होती है। जरूरत है इस व्यवसाय को सुलभ बनाने के लिए सरकार को पहल करना चाहिए। -जीतेंद्र सिंह, पण्डुरा, संदेश

कुक्कुट पालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने में अपनी महती भूमिका निभाता है, क्योंकि यह व्यवसाय ग्रामीण क्षेत्रों में ही किया जाता है। जरूरत है इसे और बेहतर और सुलभ बनाने की, जिससे युवा इस व्यवसाय में आत्मनिर्भर बन सकें। -मनीष कुमार सिंह, संदेश

कोईलवर में पीएनबी के सहयोग से ग्रामीण स्वरोजगार संस्थान पोल्ट्री फार्मिंग जैसी तकनीकी शिक्षा प्रदान करते हैं। संस्थान को ट्रेनिंग के साथ पूंजी की व्यवस्था करने के लिए बैंकों व अन्य वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।-संजीत कुमार, बहियारा

तकनीकी जानकारी प्राप्त करने के बाद भी बड़े फॉर्म खोलने के उद्देश्य से लोग बैंकों की दौड़ लगाते रहे हैं पर बैंकों की ओर से उन्हें ऋण उपलब्ध कराने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई जाती है। सरकार की ओर से बैंकों द्वारा जारी योजनाओं की जानकारी समय-समय पर देनी चाहिए।-संतोष कुमार सिंह, चांदी

ग्रामीण इलाकों में कुक्कुट पालन एक महत्वपूर्ण व्यवसाय है, जो न केवल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाता है, बल्कि यह ग्रामीण युवाओं के लिए रोजगार के अवसर भी प्रदान करता है। हालांकि इस व्यवसाय में आ रही चुनौतियों पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है। -इमाम अंसारी, बहियारा

पोल्ट्री फार्मिंग को और बेहतर बनाने के लिए सरकार ने अब तक कोई कारगर कदम नहीं उठाया। नतीजतन आज इस क्षेत्र में कदम रखने में किसान घबराते हैं। सरकार को कुक्कुट पालन के लिए ऋण पर सब्सिडी, प्रशिक्षण व बाजार की सहायता के साथ समर्थन प्रदान करना चाहिए। -संजय सिंह, सकड्डी

कोरोना काल में पोल्ट्री व्यवसायियों की परेशानियों को भुला पाना मुश्किल होगा। मंहगे ब्याज पर मुर्गी फॉर्म की लागत लौटने की कौन कहे बिक्री तक नहीं हुई और लाखों किसानों की कमर टूट गई। इस दौरान सबसे ज्यादा नुकसान पोल्ट्री फॉर्म व्यवसायियों को हुआ।-राजेश कुमार, अखगांव

कुक्कुट पालन में बीमारियों आदि से रोकथाम के लिए टीकाकरण व कुछ दवाओं की विशेष आवश्यकता होती है। ग्रामीण इलाके में मुर्गियों की होने वाले बीमारियों की रोकथाम के लिए चिकित्सीय जांच की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार की ओर से व्यवस्था किए जाने की जरूरत है। -सुनील कुमार, प्रतापपुर, संदेश

अक्सर पोल्ट्री उद्यमियों को बाजार दर प्रभावित करता है। कभी मुर्गी का रेट कभी चूजा का रेट तो कभी दाना की दर को लेकर हमेशा समस्या झेलनी पड़ रही है। इस माह मुर्गी की दर 70 प्रति किलो है तो वहीं चूजे की दर 48 रुपए प्रति चूजा है। बढ़ती लागत जैसी समस्या को लेकर किसान अक्सर घाटे में रह रहे हैं। -सुभाष सिंह, बजरंग पोल्ट्री, उदवंतनगर

पोल्ट्री फार्म में वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों मसलन सौर ऊर्जा या बायोगैस का उपयोग कर बिजली की खपत को कम करने के लिए राज्य सरकार को छूट देने की पहल करनी चाहिए। इससे पर्यावरण के साथ साथ लागत खर्च घटेगी और मुर्गी पालकों को इसका फायदा मिलेगा। -राजेश कुमार, अखगांव

चूजा बनाने वाली कंपनी सीधे पालकों को न देकर डीलर के द्वारा ज्यादा मूल्य पर देती है। उच्च उत्पादन लागत के कारण पोल्ट्री फॉर्म उद्यमी अपने उत्पादों को उचित मूल्य पर नहीं बेच पाते हैं। सरकार को इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को राहत देने के लिए कदम उठाए जाने की जरूरत है। -साजिद अनवर, चांदी

सरकार से निवेदन है कि हर जिले में एक पोल्ट्री संघ का संगठन किया जाए जिससे मुर्गी व चूजा का रेट निर्धारित किया जा सके। इससे हम किसान भाइयों को मुर्गी उचित दर में बिकने और चूजा उचित दर पर मिलने की गुंजाइश रहेगी। कंपनी की जगह किसान बिक्री दर निर्धारित कर सकें। -राजू पांडेय, धनडीहा

पोल्ट्री फॉर्म को व्यावसायिक बिजली का दर चुकाना पड़ता है, जो कि घरेलू बिजली दरों से अधिक होता है। फॉर्म में मुर्गियों के लिए आवश्यक उपकरणों मसलन पंखे, हीटर व लाइटिंग के लिए अधिक बिजली की आवश्यकता होती है। इसे कम किया जाना चाहिए। -जयशंकर सिंह, चांदी

राज्य सरकार के पास रजिस्टर्ड पोल्ट्री की गणना नहीं है। नियमानुकूल प्रशासन इस व्यवसाय से जुड़े लोगों पर ध्यान नहीं देता। नतीजतन दक्षिणी राज्यों की अपेक्षा बिहार में यह व्यवसाय उतना लाभ देने वाला नहीं रहा। सरकार प्रशिक्षण की व्यवस्था करे। -मिथिलेश कुमार सिंह, कुंजन टोला

उभरा दर्द

पोल्ट्री फार्मिंग में मुर्गियों के बीच फैलती बीमारियों की जांच हेतु न कोई चिकित्सा व्यवस्था है और न ही जिला स्तर पर सरकार का कोई लैब है, जिससे संबंधित रोगों की जांच नहीं होती। सिर्फ मंहगी होती दवाओं को पोल्ट्री फीड के साथ देने के अलावा कोई चारा नहीं। ऐसी समस्याएं पोल्ट्री व्यवसायियों के लिए बड़ी चुनौती बन गई हैं।-रंजीत कुमार, बहियारा

मुर्गी दाना की कीमतें लगातार अप्रत्याशित तौर पर बढ़ती जा रही हैं। कीमत के अलावा बोरे पर उत्पाद की सामग्री और एमआरपी नहीं लिखा जाता है। बढ़ती कीमतों से फार्मिंग में लागत बढ़ जाती है और मुर्गी का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।-मंजय सिंह,चांदी

पोल्ट्री फार्मिंग में मुर्गी की बीमारियों का खतरा हमेशा बरकरार रहता है। बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं, जिससे मुर्गी की मृत्यु दर बढ़ रही है और इससे छोटे व्यवसायियों को खासा नुकसान होता है। इसका कोई निदान नहीं निकल रहा। इसके लिए कोई पहल होनी चाहिए।-फरहाद, चांदी

पोल्ट्री फार्मिंग में मुर्गी की बीमारियों का खतरा हमेशा बरकरार रहता है। बर्ड फ्लू जैसी बीमारियों के मामले बढ़ रहे हैं, जिससे मुर्गी की मृत्यु दर बढ़ रही है और इससे छोटे व्यवसायियों को खासा नुकसान होता है। इसका कोई निदान नहीं निकल रहा। इसके लिए कोई पहल होनी चाहिए।-फरहाद, चांदी

बाजार में मांस की खपत पहले की अपेक्षा कम देखी जा रही है। लोग अब पहले की तरह मांस का सेवन नहीं कर रहे हैं। इससे पोल्ट्री व्यवसायियों को अपने उत्पादों को बेचने में मुश्किल हो रही है।- विश्वजीत कुमार उर्फ मंटू, चांदी बाजार

पोल्ट्री फॉर्म की तकनीकी शिक्षा के बाद संस्थान बैंकों से उद्यमियों को जोड़ने की कवायद नहीं करते। पोल्ट्री व्यवसाय के लिए ऋण देने में बैंक आनाकानी करते हैं, जिससे ग्रामीण व छोटे किसानो को सब्सिडी का लाभ नहीं मिल पाता और न मुर्गियों की बीमा सुरक्षा ही मिल पाती।-रामाशंकर सिंह, चांदी

पोल्ट्री व्यवसाय में चूजे से मुर्गी बनने तक के बीच फॉर्म में फैलने वाली बीमारियों के लिए टीकाकरण व उपकरणों की नियमित जांच जैसी बेहतर व्यवस्था जिले में उपलब्ध नहीं है। इसके लिए सरकार व प्रशासन को योजना बनाने की जरूरत है।-नीरज प्रसाद सिंह, चांदी

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