तैयारी : बिहार के खेतों तक पाइप से पहुंचेगा सिंचाई का पानी
जल संसाधन विभाग ने पाइप सिंचाई योजना पर काम शुरू किया है, जो भूअर्जन की समस्याओं का समाधान प्रदान करेगी। इस योजना के तहत पानी बिना खेतों को नुकसान पहुंचाए पहुंचाया जाएगा। विभाग मध्यप्रदेश और...
सूबे में पाइप से सिंचाई होगी। जल संसाधन विभाग इसको लेकर व्यापक कार्ययोजना बनाने में जुट गया है। इसके लिए विभाग मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र मॉडल का अध्ययन करेगा। यहां पहले से पाइप सिंचाई योजना पर काम हो रहा है। यही नहीं वहां कई इलाकों में यह मॉडल बेहद सफल भी है। पाइप सिंचाई की योजना ऐसे क्षेत्रों के लिए बेहद उपयोगी है जहां भूअर्जन की समस्या है और किसान खेत देने को तैयार नहीं हैं। पाइप सिंचाई योजना में खेतों को बगैर कोई नुकसान पहुंचाए, सिंचाई के लिए पानी पहुंचाया जा सकता है। इसमें जमीन के अंदर से पाइप ले जाया जाएगा, जिससे खेतों को कोई नुकासन नहीं होगा और किसान सहजता से खेती कर सकेंगे। उन्हें हर प्रकार के फसल लगाने में किसी तरही की कोई व्यावहारिक समस्या नहीं होगी।
विभाग इस समय बाढ़ निरोधक योजनाओं के साथ-साथ सिंचाई योजनाओं के लिए भी भूअर्जन की समस्याओं से जूझ रहा है। बड़ी संख्या में परियोजनाएं भूअर्जन के चक्कर में फंसी हुई हैं। इसके कारण जहां सिंचाई की कई परियोजनाओं का कार्यान्वयन नहीं हो पा रहा है, वहीं उनकी लागत राशि भी लगातार बढ़ती जा रही है। भूअर्जन के कारण तो कई योजनाएं रद्द होने के कगार पर भी खड़ी हैं। सरकार को इनके कार्यान्वयन में काफी दिक्कतें आ रही हैं।
ऐसे में विभाग ने पाइप सिंचाई योजना के विकल्प पर काम शुरू किया है। इसके लिए चार-चार इंजीनियरों की टीम मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र जाएगी। प्रत्येक टीम में एक-एक अधीक्षण अभियंता के साथ एक-एक कार्यपालक अभियंता और दो-दो सहायक अभियंताओं को शामिल किया गया है। ये अभियंता वहां इस योजना से संबंधित तकनीकी जानकारी लेंगे। स्थलीय अध्ययन के बाद वे संभाव्यता विश्लेषण करते हुए विभाग के प्रधान सचिव को अपनी रिपोर्ट देंगे। रिपोर्ट पर मंथन के बाद विभाग आगे की कार्ययोजना बनाएगा। कार्ययोजना बनाने के पहले विशेषज्ञों की सेवा भी ली जाएगी।
पैसा-पानी दोनों की बचत:
विभाग का मानना है कि पाइप सिंचाई में मौजूदा परियाजना लागत से काफी कम राशि खर्च होगी। अभी भूअर्जन के लिए जमीन की कीमत की चार गुनी राशि देनी पड़ती है, लेकिन इस योजना में जमीन की कीमत की एक तिहाई राशि ही खर्च होगी। यही नहीं जमीन के अंदर पाइप के होने से पानी की भी बचत होगी। पानी कहीं भी व्यर्थ बर्बाद नहीं होगा।
विभाग ने अपने स्तर से पुनपुन सिंचाई परियोजना में इस तकनीकी के उपयोग का निर्णय लिया है। यह मॉडल के रूप में प्रयोग किया जाएगा। विभाग इसके लिए डीपीआर बनाने में जुट गया है। मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र से अध्ययन रिपोर्ट आने के बाद योजनाओं को अद्यतन किया जा सकता है। पिछले दिनों विभाग की एक उच्चस्तरीय टीम पश्चिम बंगाल की भी यात्रा पर गयी है। वहां भी कई इलाकों में पाइप सिंचाई का प्रयोग किया जा रहा है।
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