बैंड बाजे की बुकिंग के इकारारनामे को मिले सरकारी मान्यता
--------बोले पटना - ट्रैफिक पुलिस वसूलती है अवैद्य जुर्माना - ध्वनी प्रदूषण
--------बोले पटना - ट्रैफिक पुलिस वसूलती है अवैद्य जुर्माना
- ध्वनी प्रदूषण कागज कैसे बने नहीं है जानकारी, दिए जा रहे जुर्माना
पटना, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि।
बैंड बाजे के बिना किसी भी शुभ काम की कल्पना नहीं की जा सकती। ये वही लोग हैं जो हमारे शुभ काम की शोभा बढ़ाते हैं। कहीं- कभी तो इनका प्रयोग अंतिम यात्रा ले जाने में भी किया जाता है। यह काफी साल पुराना काम है लेकिन अब इनकी अगली आने वाली पीढ़ी इस पेशे में आने से तौबा कर रही है। लोग ज्यादा, दबाव ज्यादा, खर्च ज्यादा और आमदनी कम। यही कारण है कि लोग अब इसे छोड़ दूसरे पेशे की तरफ जा रहे हैं। कोई अपने खानदानी धंधे को छोड़ सरकारी नौकरी की तरफ रूख कर रहे हैं तो कोई दूसरे पेशे को अपना रहे हैं। इनका कहना है कि सरकार इनकी ऐसी व्यवस्था करे कि जिससे बुकिंग की शर्तों के अनुसार समय पर छोड़ा जाए। और शर्त नहीं मानने वालों के ऊपर कानूनी कार्रवाई की जाए।
जिस चीज से खुद परेशान हैं, नहीं चाहते कि बच्चे भी वही झेलें
हिन्दुस्तान बैण्ड चलाने वाले अनिल मुंशी का कहना है कि हम इस पेशे में करीब 25-30 साल से हैं। लेकिन स्थिति आज भी ऐसी है कि हमें कर्ज में डूबे रहते हैं। जबतक कमाए तबतक खाए वरना ऐसे ही रहना पड़ता है। कभी बैंक से तो कभी लोगों से कर्ज लेना पड़ता है। दो महीने की कमाई में बारह महीने खाना होता है। कभी कभी तो स्थिति ऐसी हो जाती है कि हम दोनों मियां बीवी को निकलना पड़ता है। खरमास, शादी का ऑफ सीजन जैसी स्थिति में काम ना मिलने पर घर बैठे रह जाते हैं। यही हालत देखकर हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे भी इसी समस्या से गुजरें। हमने तो जैसे तैसे अपना कर्जा लेकर जीवन यापन कर लिया लेकिन हमारे बच्चे नहीं कर पाएंगे। इस महंगाई और आगे आने वाली महंगाई में कम पैसे में गुजारा कर पाना बहुत मुश्किल है। वहीं ओाअरएल बैंड के मालिक चित्तरंजन कुमार का कहना है कि सरकार पार्टी के साथ समझौता का ऐसा व्यवधान बनाए जिससे उन्हें नुकसान का सामना ना करना पड़े। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि पार्टी से बात हो जाती है लेकिन बाद में किसी कारण वश वे मुकर जाते है जिससे हमारा नुकसान हो जाता है। हमारे पास जो कारीगर हैं उन्हें तो देना ही पड़ता है। वो दूर दराज से आते हैं , उनका भी घर परिवार है तो हमें पार्टी पैसे दे या ना दे हमें अपने कारीगर को देना ही पड़ता है। इसलिए सरकार से हमारी यही मांग है कि हमारे और पार्टी के बीच इकरारनामे को सरकारी मान्यता मिले। इस नामे में शर्त हो जिसके ना मानने पर कानूनी कार्रवाई की जाए। उन्होंने संयुक्त रूप से ये कहा कि ध्वनी प्रदूषण के लिए हमें कई बार जुर्माना देना पड़ जाता है। लेकिन घ्वनी प्रदूषण का कागज बनता कहां है हमें इसकी जानकारी ही नहीं है।
ट्रॉली ले जाने में भी पुलिस हमें रोकती है और फाइन काटती है। कहती है कि साउंड को ट्रैक्टर में ले जाने का कागज दिखाओ। हमें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है। अगर ऐसा कुछ है तो सरकार जानकारी मुहैया कराए नहीं तो जागरूकता अभियान चलाए। इसके साथ ही रात के दस बजे के बाद ही साउंड नहीं बजाने के नियम से भी हमारा काफी नुकसान होता है। जहां हम एक रात में दो शिफ्ट लेते थे वहां अब समय सीमा होने के कारण एक ही बुकिंग ले पाते हैं। सरकार से हमारी यही मांग है कि उसी समय सीमा में दो शिफ्टों में बांट दिया जाए। एक 05 से 07 और दूसरा 08-10 बजे तक। इसके अलावे हमारी सरकार से यही मांग है कि हमारे धंधे को अपने जिम्मे में ले ले। ऐसा करने से हमें बल मिलेगा और हमारे साथ जितना नुकसान होता है वो नहीं होगा।
पुलिस वसूलती है अवैद्द हर्जाना
जब भी हम माइक, साउंड की जांच करते हैं तो ट्रैफिक पुलिस दूर व्यवहार करते है। तुरंत साउंड बंद करवा दिया जाता है जुर्माना लगा कोई मदद नहीं करती उलटा हटाने और काम बंद करवा देने का धमक्की दिया जाता है। हमलोग कहां जाए किस से मदद लें कुछ समझ नहीं आता। बहुत मुसीबतों का सामना करते है फिर भी कमाई नहीं होती। बैंड़ का सामान लोड करके ग्राहक तक ले जाने के क्रम में हर जगह , हर चौक चौराहे, पुल, यहां तक कि टॉल टैक्स पर भी हमसे फालतू पैसे लिए जा रहे हैं। हम भी इस डर से दे देते हें कि हमें पार्टी के यहां पहुंचने में देरी ना हो जाए। रास्ते में यातायात पुलिस 500 रूपए प्रति टेलर वसूली लेता है। हर गोलंबर वा चौराहे पर पैसा देना पड़ता है जिसके वजह से हमारी आधी कमाई इसी में चली जाती है।
ग्राहकों का भी सहयोग नहीं मिलता।
बैंड- बाजा पेशे में करीब 35 साल से रह रहे रामप्रवेश यादव कहते हैं कि पार्टी थोड़ी- थोड़ी बात पर गुस्सा करते हैं और पैसे देने से इंकार करते है। कभी- कभी तो समझाने - बुझाने का मौका तक नहीं मिलता और हमें एक रूपया तक नहीं दे पाते। ऐसे में हमें कुछ नहीं पता कि कहां जाएं क्रूा करें, कहां शिकायत दर्ज कराएं। अपने हक के बारे में जानकारी ही नहीं है। सरकार का दायित्व बनता है कि वो हमारे हित का ख्याल रखे। अगर हमारे पास लाइसेंस की सुविधा हो जाएगी तो शायद इनकी समझ आए और हमें नुकसान ना झेलना पड़े। ग्राहक हमें एडवांस देती है जिसके बाद हम अपनी सारी तैयारी कर लेते हैं। लेकिन कुछ भी कमी होने पर वे हमें पैसे देने से मना करते हैं। इससे हमें तो कुछ नहीं मिलता साथ ही कारीगरों को देना पड़ता है ।
पांच समस्याएं
ध्वनी प्रदूषण कागज कहां बनाएं, नहीं है जानकारी
हर चौक चौराहे पर ट्रैफिक पुलिस वसूलती है हर्जाना
नहीं मिलते पर्याप्त पैसे
जगह की है कमी, माइक ,साउंड जांच करने में पुलिस आ जाती है, अतिक्रमण वाले आ जाते हैं
ग्राहक के साथ हो एग्रीमेंट नहीं होती है जिससे हमे काफी नुकसान झेलना पड़ता है
पांच सुझाव
सरकार एग्रीमेंट की व्यवस्था करे जिसके बाद हम बुकिंग में हुई गड़बड़ी को दिखाकर उचित कार्रवाई करा सकें
हमें उचित जानकारी मिले जिससे हम फाइन से बच सकें और अपना कागज बनवा सके
सरकार से कर रहे संरक्षण की मांग
पर्मानेंट जॉब की व्यवस्था करे जो ऑफ सीजन हमारी कमाई का जरिया बने
छलका दर्द
- हम पांच वर्षो से बैण्ड का काम कर रहें हैं। शादी विवाह में थोड़ी-बहुत बोहनी हो जाती है। बाकी महीने काम ठप रहता है। जिससे घर बैठ कर खाना मजबूरी हो जाती है। घर चलाने के लिए बैटरी रिक्शा चलाते है। उसमें भी ठेकेदार बहुत मनमानी करते हैं। प्रतिदिन 400 रुपए किराया देना पड़ता है फिर चाहे कमाई हो या ना हो। -रवि सोनी (लाइट मैन)
- महाजन का दबदबा बना रहता है। हम परिवार चलाने के लिए ये कार्य करते है। ज्यादा शिक्षा नहीं होने के कारण बैण्ड में ट्रॉली ड्राइवर का काम करते है। महाजन बहुत परेशान करता है। जितना हमलोगों को दिहाड़ी नहीं मिलता, आधा तो महाजन को देना पड़ता है। सरकार को हमारे बारे में भी सोचना चाहिए और अन्य सुविधाएं उपलब्ध करवानी चाहिए। - बैजनाथ कुमार
- हमलोगों की दिहाड़ी बहुत कम है। जीवन यापन करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है। कस्टमर मनमानी करता है। समय पर पैसा नहीं देता। कारीगर बाहर से मंगाते हैं इसलिए कमाई हो या नुकसान हमें कारगरों को पैसा देना ही पड़ता है। सरकार से यही निवेदन करते है, कृप्या कर हमलोग को मान्यता दे और दिहाड़ी में इजाफा करवाएं । - अनिल पासवान
- हमलोग तीन पीढ़ियों से बैंड - बाजा का कारोबार कर रहे हैं। आज के समय में आधुनिक डीजे और ऑर्केस्ट्रा सिस्टम का प्रचलन हो गाया है। बैंडबाजा की डिमांड कम हो गईं है। हमलोगो को उतना बुकिंग नहीं मिलता। कोरोना के बाद मार्केट में बहुत बदलाव आए है। जिसके वजह से घाटा का सामना करना पड़ रहा है। -मोहम्मद शब्बू
- रात्री 10 बजे के बाद हमलोग का काम बंद हो जाता है। बैंड व साउंड पर 10 बजे के बाद प्रतिबंध लग जाता है। इसके कारण पार्टी पूरा पैसा देने में आना-कानी करती है। हमलोग बेरोजगारी का सामना कर रहे हैं। सरकार को इस नियम में सुधार करना चाहिए । - मुन्ना कुमार( बैण्ड हेल्पर)
- कोरोना के बाद लेबर कॉस्ट ज्यादा हो गया है। सात वर्ष पहले बहुत कम था । इतने कम आमदनी में घर कैसे चलाएं और बच्चों की परवरिश कैसे करे बहुत दिक्कत होती है। नगर निगम बैंड गाड़ी को जब्त कर लेती है। नजायज भुगतान भरना पड़ता है। प्रत्येक बायपास में 500 रुपया टोल फिक्स है। सरकार को इस पर भी कार्रवाई करनी चाहिए। - राम परवेश यादव
- ओआरअल बैंड के संचालक चितरंजन कुमार ने बताया की ध्वनी प्रदूषण का कागज आज तक नहीं बना है। नगर निगम वाले हमारी गाड़ियों की बेफिजूल टोल लेते है। करबिगहिया मोड़, राजेंद्र नगर पुल,गर्दनीबाग, अनिशाबाद, हाजीपुर पुल, गाय घाट व बायपास में 500-1000 रुपया नजायज देना पड़ता है। प्रशासन को संचालक और बैंड वालो की समस्या का निदान करना चाहिए । मेरी सरकार से यहीं विनती है कि, बैंड बाजा वालो पर टोल ना लगाए व ध्वनी प्रदूषण का कार्य आगे बढाए और इसके लिए पर्याप्त जानकारी मुहैया कराए। -चितरंजन कुमार
- इस धंधे में सम्मान व आय काफी कम है। जिसके वजह से बैंडबाजा वाले काम छोड़ रहे है। पहले की तरह काम नहीं हो पाता । कर्ज लेकर जैसे तैसे घर का खर्चा निकलता है। अधुनिक बाजा,लाइट वा आर्केस्ट्रा ने हमारा धंधे को ठप कर दिया है। आज कल शादी-विवाह, सगाई, पार्टी में बाहर के कलाकारों की मांग है। हमलोग को कोई नहीं पूछता। सीजन में बुकिंग मिलती है परंतु उतनी आमदनी नहीं हो पाती है। बैंड वालों के साथ-साथ संचालक भी परेशान रहते है। हमलोग की परेशानी कोई नहीं समझता। - जगदीश रजक
- लेबर का खर्च बढ़ गया है। बैंड वालो को कस्टमर कम पैसा देते है। कम पैसे में पूरा काम करवाते है। पहले 300 से 400 लेबर खर्च पड़ता था। वही अब 500 से 800 रुपया प्रतिदिन हो गया है। इतने में संचालन क्या रखे और बैंड वालो को क्या दे। हमलोग मजबूरी के कारण कम पैसों में काम कर रहे हैं। कोरोना से पहले अच्छी बुकिंग हो जाती थी। अब स्थिति बद से बद्तर होते जा रही है। लाइट,बाजा,घोड़ी,ड्रेस आदि का रख रखाव करने के लिए भी पैसा नहीं जुटता। -अनिल मुंशी
- सालों से बैंड बाजा का कार्य कर रहे हैं। बीते 8-9 वर्ष में इस कारोबार में बहुत बदलाव देखे। आज कल बैंड बाजा वालों को कौन पूछता है। बाहर के कलाकारों की वजह से हम लोगों के पेट पर लात पड़ी है। बैंडबाजा से अब घर का खर्च नहीं निकल पाता। अलग से काम धंधा करना पड़ता है। सरकार को कोई ऐसा कानून लाना चाहिए जिससे हमलोग को आर्थिक तंगी से निजात मिल सके । हम आधुनिकीकरण के खिलाफ नहीं है, पर हमलोगो का घर इससे ही चलता है । सरकार हमलोगों को बढ़ावा दे और नजायज टोल टैक्स हटाएं, साथ ही ध्वनी प्रदूषण का कागज उपल्ब्ध कराए। - मनोज कुमार
बोले पटना
-----बैंड बाजा
शादी में कोई भी रस्म फिर चाहे वो बारात लगाना हो या मिट्टी काटना अथवा अन्य रस्मों का निर्वाह बिना बैंड बाजे के अधूरा है। कोई इंसान चाहे वो छोटा हो या बड़ा, बैंड बाजा हर घर की खुशियों में चार चांद लगा देता है।
लेकिन कहीं ना कहीं अब इन पौराणिक चीजों से लोग दूर जाते जा रहे हैं। आज के जमाने में डीजे और ऑर्क्रेस्ट्रा ने इनकी जगह ले ली है। कम पैसे में मिल जाने के कारण लोग भी बैंड- बाजे को छोड़ डीजे की तरफ रूख कर रहे हैं। बैंड बजाने के दौरान एक समूह में अमूमन दस से पंद्रह लोग शामिल होते हैं। और डीजे में ज्यादा से ज्यादा दो से तीन लोग रहते हैं। इसलिए उसमें कमाई ज्यादा और खर्च कम है। डीजे और ऑर्केस्ट्रा अच्छा है लेकिन व्यवस्थित परिधान में हाथों में बैंड बाजा लिए एक दूल्हे के परिछावन और दूल्हन के दुआर लगाई के लिए कतार में जब दस से पंद्रह लोग खड़े रहते हैं ता उनकी शोभा देखते बनती है। जो डीजे कभी नहीं कर सकता।
ये सबके साथ एक पहलू ये भी है कि दूसरों के घरों की शोभा बढ़ाने वालों के खुद के घर सूने पड़े हैं। ना रहने को सिर पर छत है ना ही बच्चों के खिलाने और पढ़ाने के लिए अच्छे स्कूल की व्यवस्था । यहां तक की खाने को भी लाले पड़े हैं। कारगरों का कहना है कि ये सीजनल कारोबार है। इसमें दो से तीन महीने हमारी कमाई होती है उसी में बाद नौ से दस महीने बैठ कर खाते हैं। इतने पैसे में गुजारा कर पाना तो मुश्किल है लेकिन कैसे भी करके कर्ज लेकर रहते हैं। बच्चों की पढ़ाई तो दूर उनका भरण पोषण भी नहीं हो पा रहा है। इसलिए हम नहीं चाहते कि जिस दुर्गति के साथ हमारा जीवन बीत रहा है उससे हमारे बच्चों का भी बीते। इसलिए अपने खानदानी पेशे को छोड़ कोई टेम्पो चालक तो कोई होटल में काम करने को मजबूर है।
अभी बैंड-बाजा और झाड़-फाटक की एक बुकिंग में 50 से 60 हजार रुपये के बीच होती है। इसमें दस से पन्द्रह लोगों को सीधे-सीधे रोजगार मिलता है। शादी समारोह के सीजन खत्म होने के बाद इन्हें वैकल्पिक रोजगार की तालाश करनी पड़ती है। इसमें काफी परेशानियां होती हैं। सीजनल कारोबार होने के कारण आधा से ज्यादा समय हमारा बेरोजगारी में ही बीतता है।
इसी तरह शहनाई पर औसतन 9 से 10 हजार रुपये खर्च होते हैं और शादी समारोहों में फूलों आदि की सजावट पर 15 से 20 हजार रुपये के बीच खर्च होता है। इनकी कमाई में भी हमेशा संकट में रहती है।
पटना में बैंड बाजा वाले स्टेशन रोड करबिगहिया, सुल्तानगंज, दानापुर, आदि जगहों पर रहते हैं।
जोड़
11. अखिलेश कुमार- बैंड बाजा कर्मियों को अक्सर लंबे समय तक खड़े होकर कार्य करना पड़ता है । जिसके वजह से शारीरिक व मानसिक तौर पर कठिनाई का सामना करना पड़ता है।हमलोग के लिए कोई अक्सर कोई व्यवस्था नहीं होती जहां हमलोग कुछ समय समान रख कर आराम कर सकें।
12. मोहम्मद याकुब - हमलोग कम पैसों में घंटो काम करते है। भारी बैंड बाजा का सामान उठाते है थोड़ा आराम के लिए बैठते तो पार्टी की नाराजगी झेलनी पड़ती है। घंटो कार्य करने के कारण पीठ, घुटनें, कमर में अक्सर दर्द की समस्या आती है ।
13. संदीप कुमार - लगन में थोड़ी कमाई होजाति है नहीं तो घर बैठने की स्थिति होती है कोई काम भी नहीं मिलता। अक्सर समाज में हमलोग को अवसरों और सम्मान में कमी का सामना करना पड़ता है । अपने समाज में बैंड बाजा कर्मियों के प्रती इज्जत और सम्मान में कमी देखने को मिलती है।
14. शिवम कुमार - बच्चों को आगे बढ़ाना चाहते है ताकि वो कभी इस कारोबार में कभी न आए । पर उनकी अधिक पढ़ाई लिखाई के लिए पैसे नहीं जुटा पाते हैं। सरकारी स्कूल में वो सुविधा नहीं मिलती है आर्थिक तंगी के कारण प्राईवेट स्कूलों में दाखिला नहीं करवा पाते।
15. सुदामा कुमार -बैंड बाजा कर्मियों को अक्सर समाज में कम सम्मान मिलता है। इससे उन्हें सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। जैसे जल्दी बैंक से लोन नहीं मिलता , किराए का घर नहीं देते , और आत्म सम्मान की कमी महसूस करते है।
16. उमाशंकर कुमार - हमलोग प्रशिक्षण और अवसरों की कमी का सामना करना पड़ता है । इससे हमें अपने कौशल में सुधार करने और अपने कैरियर में आगे बढ़ने का कोई अवसर प्राप्त नहीं हो पाता । हमलोग को भी बेहतर करने के लिए प्रशिक्षण मिलना चाहिए।
17. शिवजी - लगन नहीं रहता है तो काम भी नहीं मिलता। एक वक्त का खाने को भी सोचना पड़ता है कहां से घर में राशन लाए परिवार कैसे चलाएं । कर्ज लेकर कुछ समय का गुजारा हो जाता है । पर महाजन को लौटाने को भी पैसे नहीं रहते है काम का बहुत अभाव रहता है।
18. होरा - बैंड बाजा कर्मियों को बहुत तनाव और दवाब का सामना करना पड़ता है , खासकर जब उन्हें समय पर प्रदर्शन करना होता है। इससे उन्हें मानसिक परेशानियां होती है। जैसे कि चिंता और अवसाद।
19. कामेश्वर - शादी समारोहों में बग्गी संचालक कहते हैं कि शादी समारोह नहीं होने मतलब ऑफ सीजन में घोड़ा आदि को चारा देना तक मुश्किल हो जाता है। बाजार में बग्गी सिंगल घोड़ा 15 हजार रुपये, डबल घोड़ा 20 हजार और चार घोड़ा 50 हजार रुपये तक बुक होता है।
20. जाफर अली - इस धंधे में आय और इज्जत बहुत कम है इसलिए हम नहीं चाहते कि हमारी जिंदगी हमारे बच्चे भी जिएं। शारीरिक मेहनत, मानसिक तनाव और सामाजिक दबाव से जूझ रहे कर्मी के जीवन जीने का मतलब ही नहीं रह गया है। रूपए पैसे से लेकर खाने तक को मोहताज हो गए हैं।
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