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भागलपुर दंगे का मुख्य आरोपित कामेश्वर यादव कोर्ट से बरी

भागलपुर दंगे के मुख्य आरोपित कामेश्वर प्रसाद यादव को पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। गुरुवार को अदालत ने तुरंत उसे जेल से छोड़ने का आदेश जारी किया है। साथ ही यह भी कहा कि यदि किसी दूसरे केस में...

विधि संवाददाता पटना Thu, 29 June 2017 09:05 PM
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भागलपुर दंगे के मुख्य आरोपित कामेश्वर प्रसाद यादव को पटना हाईकोर्ट ने बरी कर दिया। गुरुवार को अदालत ने तुरंत उसे जेल से छोड़ने का आदेश जारी किया है। साथ ही यह भी कहा कि यदि किसी दूसरे केस में संलिप्त नहीं हो तो जेल से छोड़ा जाए। 

  • न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह की एकलपीठ ने इस मामले में की सुनवाई 
  • सूचक की गवाही सही ढंग से नहीं कराने के आधार पर कोर्ट ने किया बरी 


अपने 49 पन्ने के आदेश में प्राथमिकी दर्ज करने से लेकर केस के अनुसंधान करने सहित गवाहों की गवाही ठीक से नहीं कराने तथा प्राथमिकी दर्ज कराने वाले सूचक की गवाही सही ढंग से नहीं कराने के आधार पर कामेश्वर प्रसाद यादव को इस केस से बरी किया गया है। अदालत ने मुख्यत: सात बिंदु पर आरोपी को बरी किया। 

इसी केस में किया गया बरी  
-कोतवाली (ततारपुर) थाना कांड संख्या 77/90

न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह की एकलपीठ ने मामले पर सुनवाई के बाद अपना आदेश जारी किया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि घटना 24 अक्टूबर 1989 की कही जा रही है, लेकिन तीन माह 16 दिनों के विलंब से प्राथमिकी दर्ज की गई।  देरी से प्राथमिकी दर्ज की गई इस बारे में एक शब्द कुछ नहीं कहा गया। यहां तक कि पुलिस ने अनुसंधान कर अपना आरोपपत्र दायर किया जिसमें कामेश्वर प्रसाद यादव को आरोप से मुक्त कर दिया। लेकिन 16 वर्ष बाद सरकार की ओर से भागलपुर के सीजेएम के यहां दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 173 (8)के तहत एक अर्जी 25 मार्च 2006 को दायर कर फिर से अनुसंधान करने की गुहार लगाई गई। निचली अदालत ने 28 जुलाई 2006 को सरकार की अर्जीको मंजूर कर फिर से अनुसंधान करने का आदेश दे दिया। 


09   गवाहों की पेशी की गई थी इस मामले में 
07   बिंदुओं के आधार पर कोर्ट ने किया बरी 


अदालत के आदेश के बाद पुलिस ने जांच कर 30 सितंबर 2006 को अपनी अंतिम रिपोर्ट पेश किया। इसमें आवेदक को आरोपी बनाया गया। पुलिस की रिपोर्ट पर कोर्ट ने 7 अक्टूबर 2006 को संज्ञान लिया और 10 जनवरी 2007 को आगे की ट्रायल प्रक्रिया शुरू करने के लिए सत्र न्यायाधीश के पास भेज दिया। 
सरकार की ओर से पेश 9 गवाहों की गवाही के बाद सत्र न्यायाधीश ने आवेदक को 6 नवंबर 2009 को दोषी करार दिया और 9 नवंबर 2009 को आजीवन कारावास सहित अर्थदंड की सजा दी। 
निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में आपराधिक अपील दायर कर चुनौती दी गई। हाईकोर्ट के तत्कालीन न्यायाधीश न्यायमूर्ति धरणीधर झा तथा मौजूदा न्यायाधीश न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने सुनवाई कर 3 सितंबर 2015 को अपना आदेश जारी किया। न्यायमूर्ति श्री झा ने कामेश्वर प्रसाद यादव को इस केस से बरी कर दिया, वहीं न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह ने आवेदक की अपील को एक सिरे से खारिज कर दिया। दोनों जजों के बीच निर्णय को लेकर आपसी मतभेद के बाद तीसरे जज के निर्णय के लिए मुख्य न्यायाधीश के पास इस केस को भेजा गया। मुख्य न्यायाधीश ने तीसरे जज के रूप में न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार सिंह को नियुक्त कर मामला सुनवाई के लिए उनके यहां भेज दिया। 
मुख्य न्यायाधीश के आदेश पर न्यायमूर्ति श्री सिंह ने सुनवाई कर 18 मई 2016 को अपना आदेश सुरक्षित कर लिया। लेकिन केस में आदेश जारी नहीं किया। इसके बाद एक बार फिर मामला सुनवाई के लिए रखा गया। कई दिनों तक चली बहस के बाद गत 13 अप्रैल को अदालत ने अपना आदेश सुरक्षित कर लिया, जिसे गुरुवार को सुनाया गया। 

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