Independence Day: शान का है तिरंगे का कारोबार- Video
तिरंगे का कारोबार शान का है। केसरिया, सफेद और हरे रंग की खूबसूरत जुगलबंदी लिए अशोक चक्र की छटा मन को गौरव से भर देती है। स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान,देश की एकता अखंडता और शांति का संदेश देता...
तिरंगे का कारोबार शान का है। केसरिया, सफेद और हरे रंग की खूबसूरत जुगलबंदी लिए अशोक चक्र की छटा मन को गौरव से भर देती है। स्वतंत्रता सेनानियों के बलिदान,देश की एकता अखंडता और शांति का संदेश देता राष्ट्रीय ध्वज हर समय दिल में धड़कता है। मैं खुशनसीब हूं जो तिरंगे बेचता हूं। इसे बेचने के लिए मैं किसी के दर तक नहीं जाता बल्कि क्या मंत्री क्या नेता मेरी दुकान पर आते हैं। बार काउंसिल भवन के बगल में स्थित झंडे की दुकान के सत्येन्द्र नारायण सिंह ये बताते हुए सीना चौड़ा कर लेते हैं और जीभर कर मेहबूब वतन की कुर्बानियों को याद करते हैं। उन्हें इस बात का गर्व है कि वह तिरंगे बेचते हैं। अब वह तिरंगे बनवा तो नहीं पाते लेकिन राजधानी में सबसे अधिक तिरंगे इनके यहां से ही जाते हैं।
पांच साल में चमका है तिरंगे का कारोबार
पिछले पांच सालों में खादी के बने तिरंगे का व्यवसाय चल पड़ा है। पहले केवल 26 जनवरी और 15 अगस्त तक ही इसकी बिक्री सीमित थी जबकि अब 365 दिन इसकी डिमांड रहती है। इससे सालाना कमाई में भी वृद्धि हुई है। सत्येन्द्र नारायण सिंह बताते हैं कि तिरंगे का क्रेज काफी बढ़ा है। सरकारी दफ्तरों से लेकर निजी संस्थान में हमारे यहां से सालों भर तिरंगा जाता है। जज, मंत्रियों से लेकर विभिन्न योजनाओं से संबंधित कार्यों के लिए लोग तिरंगे लेने आते हैं। पहले साल में 50 हजार तिरंगे बिकते थे तो वहीं अब 5 लाख तिरंगे बिक जाते हैं। उन्होंने बताया कि रोजाना करीब 4 हजार झंडे बिकते हैं। सालाना कमाई 10-20 लाख तक पहुंच जाता है।
गर्व से कहते हैं मैं तिरंगा बेचता हूं
ये कारोबार शान का है। मुझे गर्व है कि मैं ऐसा व्यवसाय करता हूं जिसने मुझे ना सिर्फ पैसे बल्कि समाज में इज्जत भी दिलाता है। क्या मंत्री क्या नेता क्या आम लोग, हर कोई मुझे राष्ट्रीय झंडे के लिए जानते हैं।स्कूली दिनों में एनसीसी के कमांडर रहने की वजह से दिल में देश के प्रति जज्बा और जुनून हमेशा से रहा। वह बताते हैं कि 1991 में जब मैंने यह व्यवसाय शुरू किया था तब छोटी सी फैक्स मशीन बीजेपी कार्यालय के बाहर लगाया करता था। बगल में आरजेडी कार्यालय भी था तो छोटे मोटे काम मिल जाते थे। धीरे धीरे तिरंगे की फैक्ट्री कंकड़बाग में लगाई। आज मेरी दुकान से हर जगह झंडे जाते हैं।
हाथों से बनता है तिरंगा
तकनीकें अपग्रेड हुईं लेकिन तिरंगा आज भी हाथों से ही बनता है। तीन रंगों की खूबसूरत जुगलबंदी के लिए कारीगर दिन रात मेहनत करते हैं। हालांकि अब राजधानी में तिरंगे नहीं बनते लेकिन एक समय था जब तिरंगे पटना में बनते थे। वह बताते हैं कि विभिन्न चुनावी झंडों के मील प्रिंट बिकते हैं लेकिन तिरंगा आज भी अपने मौलिक रूप में ही है। तीनों रंग के खादी के कपड़ों को सिलकर इसपर अशोक चक्र बनाया जाता है। राजधानी में अब लखनऊ और दिल्ली के झंडे बिकते हैं।
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