बोले पटना : उचित मेहनताना मिले तो मेहंदी रचने वालों की जिंदगी में खिलेगा रंग
पटना में मेहंदी कलाकारों की संख्या घटती जा रही है। नई पीढ़ी में मेहंदी लगाने की रुचि कम हो रही है। पारंपरिक डिज़ाइन अब कम पसंद किए जा रहे हैं और आर्टिफिशियल मेहंदी का चलन बढ़ रहा है। कोविड-19 के बाद...
मेहंदी का उपयोग मुख्य रूप से पर्व-त्योहार और शादी- व्याह के खास मौके पर शुभ प्रतीक के रूप में किया जाता रहा है। बाद में यह फैशन से भी जुड़ता चला गया। मेहंदी में तरह-तरह के डिजायन प्रयोग में आए तो इसे लगाने वाले कलाकारों का वर्ग सामने आया। पटना के कई इलाकों में मेहंदी लगाने वाले कलाकर हैं। उनके सामने स्थायी रोजगार की कमी तो है ही, मेहनताना भी कम मिलता है। इसके अलावा कोई स्थायी जगह नहीं होने से उन्हें बैठने की भी दिक्कत है। भारतीय परंपरा में मेहंदी शुभता और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन और आयुर्वेदिक के रूप में भी होता है। मेहंदी लगाने की पारम्परिक कला सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ती आयी है। महिलाएं शादी-व्याह के अलावा तीज-त्योहार पर भी इसका उपयोग करती हैं। सावन माह में तो मेहंदी का खास महत्व होता है। आजकल शादी-व्याह में मेहंदी लगाने की एक रस्म ही आयोजित होने लगी है। धीरे-धीरे यह परंपरा से फैशन के रूप में बढ़ती गई है।
पटना में मौर्यालोक परिसर में मेहंदी लगाने वाले कई कारीगर हैं। वे छोटे से लकड़ी के तख्त पर बैठे महिलाओं की फरमाइश के मुताबिक उनके हाथों में मेहंदी की डिजायन बनाते हैं। मौर्या लोक परिसर के मेहंदी कारीगर राजेश कुमार बताते हैं कि मेहंदी लगाने की कला में अब बहुत बदलाव आया है। पहले लोग पारंपरिक डिज़ाइन पसंद करते थे। साथ ही मेहंदी के पत्ते को तोड़कर उसे पत्थर पर पीसते थे। फिर हाथ या पैर में उसकी डिजायन बनाई जाती थी। अब बना बनाया पैक आता है। राजेश कहते हैं कि आज की पीढ़ी को घंटों बैठकर मेहंदी लगवाना पसंद नहीं है। इसीलिए नए डिजायन खोजना पड़ता है। इसके लिए हमलोगों को निरंतर अभ्यास करना पड़ता है। नई उम्र की लड़कियां मेहंदी लगवाना पसंद नहीं करती हैं, क्योंकि उनके स्कूल और कॉलेज में इसकी मनाही होती है। ले-देकर त्योहार के मौसम में तो काम मिल जाता है, पर बाकी समय खाली बैठना पड़ता है। वह चिंता जाहिर करते हैं कि समय के साथ यह कला कहीं पीछे न छूट जाए। वैसे भी पुराने रीति- रिवाज बदलते जा रहे हैं।
मेहनत और धैर्य भरा पेशा है
मेहंदी कारीगरों का एक और वर्ग है, जो घर-घर जाकर मेहंदी लगाने के पेशे से जुड़ा है। इसमें ज्यादातर महिलाएं हैं। सारिता कुमारी पिछले दो दशक से यह काम कर रही हैं। वह एक पेशेवर मेहंदी कलाकार हैं। वह बताती हैं कि यह मेहनत और धैर्य भरा पेशा है। महिलाएं अक्सर देर शाम घर पर मेहंदी लगाने के लिए बुलाती हैं। काम समाप्त करते-करते देर रात हो जाती है। देर रात घर लौटना खतरनाक हो सकता है। लेकिन मेरे पास कोई और विकल्प नहीं है, क्योंकि मैं एक छोटे से शहर से हूं और मेरे पास अपनी दुकान खोलने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। सारिता ने आगे बताया, आर्टिफिशियल मेहंदी डिजाइन ने इस व्यवसाय को बहुत प्रभावित किया है। अब लोग आर्टिफिशियल मेहंदी की ओर आकर्षित हो रहे हैं।
ग्राहक भुगतान के समयकरने लगते हैं मोल-भाव : मेहंदी कलाकार मनोज ने बताया कि ब्राइडल राजस्थानी मेहंदी लगाने में 4 से 5 घंटों का समय लगता है। कई तरह की सामग्री का उपयोग करना पड़ता है। लेकिन, ग्राहक काम के बाद भुगतान के समय मोल-भाव करने लगते हैं। किसी के कितना झिकझिक किया जाये। जब मेहनत के मुताबिक पैसे ही नहीं मिलेंगे तो फिर काम करने का क्या फायदा? उनका कहना है कि इस पेशे में कोई रेट तय नहीं है। लोगों को मानसिकता को बदलने की जरूरत है।
शिकायतें
1. नई पीढ़ी मेहंदी कला में रुचि नहीं लेती है जिसके कारण ये कला धीरे धीरे विलुप्त होती जा रही है। तीज और सावन में ही कारोबार चलता है।
2. डिजिटल प्लेटफॉर्म पर मेहंदी लगाने की विधि उपलब्ध होने से लोग मेहंदी कलाकारों की आवश्यकता नहीं समझते हैं।
3. नई डिजाईन सिखने के लिए मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ प्रतिस्पर्धा ज्यादा है और कमाई कम।
4. नगर निगम की ओर से जुर्माना लगाये जाने और सुरक्षित स्थान की कमी के कारण मेहंदी कलाकारों को परेशानी होती है।
5. कभी-कभार ग्राहकों का व्यवहार आहत करता है। लोग घर पर घंटो इंतजार करवाते है जिससे दूसरी बुकिंग में समय से नहीं पहुंच पाते।
सुझाव
1. मेहंदी कला को प्रोत्साहित करने और इसे बचाए रखने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में कार्यशालाएं आयोजित की जायें।
2. मेहंदी कलाकारों को अपनी कला को ऑनलाइन प्लेटफार्म प्रमोट करने के लिए प्रशिक्षित करना चाहिए।
3. मेहंदी कलाकारों को अपनी कला को आर्टिफ़िशियल मेहंदी से अलग दिखाने के लिए प्रशिक्षित करना।
4. मेहंदी कलाकारों के लिए सुरक्षित और सुविधाजनक स्थान आवंटित किया जाये ताकि उन्हें खुले आसमान के नीचे पनाह न लेनी पड़े।
5. ग्राहकों को मेहंदी कलाकारों को सम्मान देना चाहिए और उन्हें अपनी मानसिकता में बदलाव लाना चाहिए।
लागत बढ़ती जा रही, आमदनी नहीं
मौर्यलोक में वर्षो से मेहंदी लगाने के पेशे से जुड़े अनिल कुमार ने बताया कि मेहंदी की खेती सबसे अधिक राजस्थान के सुजास में होती है, क्योंकि वहां की जलवायु और मिट्टी मेहंदी की खेती के लिए उपयुक्त है। मेहंदी की खेती के लिए गर्म और शुष्क जलवायु की आवश्यकता होती है, जो कि राजस्थान में उपलब्ध है। मेहंदी की पत्तियों को सुखाकर और पाउडर बनाकर बाजार में बेचा जाता है। इसके अलावा, मेहंदी का तेल भी निकाला जाता है जो कि बालों और त्वचा में उपयोग किया जाता है। मेहंदी की खेती की लागत राजस्थान में लगभग 50,000 से 1,00,000 रुपये प्रति एकड़ होती है। इसमें बीज, उर्वरक, कीटनाशक और श्रम की लागत शामिल होती है। वहां से मेहंदी मंगवाने में खर्च भी आता है। इसे सुरक्षित रखना पड़ता है, अन्यथा इसके जल्दी खराब होने की आशंका रहती है। जब काम नहीं मिलता तब ये मेहंदी को फेंकना पड़ता है। इस पेशे में लागत बढ़ता जा रहा है, लेकिन उस अनुपात में आमदनी नहीं होती है। नुकसान भी होता है। उनका कहना है कि अब नई पीढ़ी इस पेशे में नहीं आना चाहती, क्योंकि इसमें आमदनी दूसरे पेशे के मुकाबले कम है।
टैटू का बढ़ा ट्रेंड
कारीगरों ने बताया कि मेहंदी लगाने की कला में अब बहुत बदलाव आया है। पहले मेहंदी के पत्ते को तोड़कर उसे पत्थर पर पीसते थे। फिर हाथ या पैर में उसकी डिजायन बनाई जाती थी। अब बना बनाया पैक आता है। आज की पीढ़ी को घंटों बैठकर मेहंदी लगवाना पसंद नहीं है। मेहंदी लगवाने के लिए धैर्य और समय का होना अनिवार्य है। जो आजकल की महिलाओं के पास नहीं है। घर और दफ्तर की जिम्मेदारियों के कारण कामकाजी महिलाएं इसके लिए समय नहीं निकाल पाती हैं। इसीलिए नए डिजायन खोजना पड़ता है। समय के अनुकूल इसमें भी परिवर्तन देखने को मिल रहा है। लड़कियां अब मेहंदी की जगह टैटू भी छपवा रही हैं। अभी के समय में टैटू का ट्रेंड तेजी से बढ़ रहा है।
ग्राहकों की कम होती रुचि के कारण पेशे को छोड़ रहे हैं मेहंदी कलाकार
पटना में मेहंदी कारोबारियों की संख्या में कमी आई है। शहर के विभिन्न इलाकों मौर्यालोक, खेतान मार्केट, बोरिंग रोड, जगदेव पथ आदि में 15 वर्ष पहले जितने मेहंदी कलाकार हुआ करते थे, अब उनकी संख्या घटकर आधी हो गई है। मेहंदी कलाकारों का कहना है कि ग्राहकों की कमी और कमाई नहीं होने से वे इस पेशे को छोड़ रहे हैं। इसके अलावा शहर में उनके लिए कोई स्थायी जगह भी नहीं है। अक्सर वे नगर निगम के निशाने पर रहते हैं। कलाकारों का कहना है कि पटना में तो थोड़ी स्थिति ठीक है, लेकिन छोटे शहरों में इसका चलन कम है। पार्लर की वजह से भी ग्राहकों की संख्या में गिरावट आई है, क्योंकि बड़े घरों की महिलाएं उधर का ही रुख करती हैं।
मेहंदी कलाकार सुनील कुमार का कहना है कि उन्हें काम में किसी की मदद नहीं मिलती है। उन्हें खुद ही काम ढूंढ़ना पड़ता है, जिसमें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पर्व-त्योहार और शादी के सीजन में तो काम आसानी से मिल जाता है, बाकी के दिनों में खाली बैठे रहते हैं। इस पेशे में श्रम भी बहुत लगता है। एक ग्राहक को मेहंदी लगाने में घंटा भर लगता है। फिर भी लोग मेहनताना देने से हिचकते हैं। उन्होंने कहा कि मेहंदी कलाकारों के लिए कोई समय सीमा नहीं होती है। हमें ग्राहकों के अनुसार काम करना पड़ता है। उन्होंने बताया कि पटना में करीब 400 से अधिक मेहंदी कलाकार हैं।
कोरोना के बाद मेहंदी के कारोबार में आई गिरावट
पारंपरिक रूप से मेहंदी लगवाने में महिलाएं ज्यादा रुचि रखती थीं। तीज, त्योहार पर अक्सर महिलाएं बड़े शौख से मेहंदी लगवाना पसंद करती थीं। लेकिन आजकल महिलाएं इसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं। विशेष कर कामकाजी महिलाएं। कई दफ्तरों में मेहंदी लगा कर जाने पर रोक है, जिसकी वजह से महिलाएं इसमें कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाती हैं। इसके आलावा मेहंदी लगवाने के लिए धैर्य और समय का होना अनिवार्य है। जो आजकल की महिलाओं के पास नहीं है। घर और दफ्तर की जिम्मेदारियों के कारण कामकाजी महिलाएं इसके लिए समय नहीं निकाल पाती हैं। मेहंदी कलाकारों का कहना है कि कोरोना के बाद से इस कारोबार में 30 से 35 प्रतिशत की गिरावट आई है।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।