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‘भारत के इतिहास का और मां भारती का कंठहार है, बिहार: उपमुख्यमंत्री

इंद्रधनुष कार्यक्रम के दूसरे दिन कवियित्रियों ने अपनी प्रस्तुतियों से समां बांधा। उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने कहा कि कला का उद्देश्य सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक विशेषताओं को पहचानना और...

Newswrap हिन्दुस्तान, पटनाSat, 23 Nov 2024 07:09 PM
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- इंद्रधनुष के दूसरे दिन कवियित्रियों ने बांधा समां - विरासत के साथ विकास बढ़ेगा: विजय कुमार सिन्हा

पटना, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि।

‘जहां ना पहुंचे रवि, वहां पहुंचे कवि। कविता वो विधा है जो मन तक घर कर जाती है। इंद्रधनुष कार्यक्रम के दूसरे दिन भी प्रस्तुतियों का जलवा बरकरार रहा। पूर्व क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र ,पश्चिम बंगाल, उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र , उत्तर प्रदेश तथा कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार सरकार के संयुक्त तत्वावधान में तीन दिवसीय सांस्कृतिक महोत्सव “इंद्रधनुष” का आयोजन किया जा रहा है। शनिवार को बाह्य परिसर में आरा के कलाकारों ने जनजातीय गायन की प्रस्तुति की एवं मुख्य मंच पर कवि सम्मलेन का आयोजन हुआ। कार्यक्रम की शुरूआत उप मुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा ने दीप प्रज्वलन कर की। अपने भाषण में उन्होंने बिहार के विद्वानों को याद करते हुए कहा कि ‘यह वही धरती है जहां से भारत के इतिहास की शुरूआत होती है। चाणक्य जैसे नीतिज्ञ और आर्यभट्ट जैसे गणितज्ञ ,महान राजाओं, मौर्य और चंद्रगुप्त की कर्मभूमि भी रही है। उन्होंने कहा कि कला सिर्फ मनोरंजन के उद्देश्य को पूरा करने की चीज नहीं है, इससे व्यापक जो चीज है उसे समझने की जरूरत है। साथ ही उन्होंने बताया कि हमारे विभाग ने स्पष्ट किया है कि हर जिले के अंदर हमारी विशेषता और विशिष्टता प्राप्त किए हुए लोगों को चिन्हित कर अपने वेबसाइट पर डाल देश दुनिया को अवगत कराएं। हमें अपने प्रदेश की बहुरंगी सांस्कृतिक विशेषताओं को देश-दुनिया में फैलाने की जरूरत है।

इस सम्मेलन में कवि से ज्यादा कवियित्रियों ने भाग लिया। इनमें अराधना प्रसाद, प्रीति सुमन, अनीता, प्रसाद रत्नेश्वर शामिल थे। पहली प्रस्तुति प्रीति सुमन की थी जहां उन्होंने माता सीता को याद करते हुए ‘सीतामढ़ी से विश्व पटल तक तेरे ही कारण है कीर्ति हमारी कविता का पाठ किया साथ ही ‘स्वयंवर पर कविता का हास्य पाठ किया। दूसरी आईं अनीता जिन्होंने भोजपुरी भाषा में दारू के मुद्दे को लेकर कविता पाठ किया। अराधना प्रसाद की प्रेम रस और श्रृंगार रस की कविता ने सबको झुमा दिया। प्रसाद रत्नेश्वर ने ‘ ऐसे हालात में भी हंस के हमें जीना है से आज के दौर में इंसानों की सच्चाई दिखाई। इसके बाद विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों ने नृत्य प्रस्तुति भी दी। अंत में राधा सिन्हा एवं ग्रुप द्वारा बिहार के गाथा गायन की प्रस्तुति के बाद आज के कार्यक्रम का समापन हुआ।

बॉक्स

इसके अलावा परिसर में लिट्टी- चोखा, चूड़ा- घूघनी, पिट्ठा के साथ मधुबनी पेंटिंग, मंजूषा पेंटिंग, टिकली पेंटिंग, अप्लिक कढ़ाई, सिक्की कला, लिप्पन कला आदि के कई स्टॉल भी लगाए गए हैं। पश्चिम बंगाल से आई सुनिता दास और उनकी टीम ढ़ेकी लगा कर यहीं चावल पिसती हैं और काठ के चूल्हे पर भप्पा पुली, ढ़ुपी पिट्ठा जैसे कई तरह के व्यंजन बना कर लाइव डेमो दे रही हैं।

मंजूषा कलाकार शिखा ने बताया कि मंजूषा पेंटिंग की शुरूआत भागलपुर से हुई थी। लोक कला पर आधारित यह पेंटिंग में जरजटिन सबसे प्रसिद्ध मंजूषा पेंटिंग में से एक है। टिकली पेंटिंग का स्टॉल लगाए रूचि कुमारी का कहना है कि लोग अपनी 800 साल पुरानी कला एवं संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और आज की नई पीढ़ी को इसकी जानकारी देना बहुत जरूरी है। इन्होंने दिल्ली के प्रगति मैदान और भुवनेश्वर में जी-20 में टिकली पेंटिंग का स्टॉल लगा चुकी हैं।

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