बोले बेगूसराय: बैंड-बाजा बजाने वालों की स्वास्थ्य जांच के लिए लगे नियमित शिविर
व्यक्ति के जन्म से लेकर अंतिम यात्रा तक साथ निभाने वाले बैंड बाजा वर्कर अब अवसाद में जी रहे हैं। डीजे के कारण उनकी आमदनी घट रही है और शादी समारोह में बैंड बाजा की जगह डीजे की बुकिंग बढ़ रही है। इनकी...
व्यक्ति के जन्म के शुभ अवसर से लेकर अंतिम यात्रा तक साथ निभाने से लेकर शादी समारोह की रौनक बढ़ाने वाले बैंड बाजा वर्कर पेशे की धूमिल होती चमक से चिंतित हैं। हर खुशी के मौके पर लोगों को आनंदित करने वाले बैंड बाजा में काम करने वाले लोग खुद अवसाद में जीते हैं। डीजे के शोर में बैंड बाजे की मधुर आवाजें लगातार दबती जा रही हैं। शादी-विवाह का सीजन समाप्त होने के बाद बैंड बाजा में काम करने वाले लोग बेकार हो जाते हैं। साल में दो से तीन महीने की कमाई के आसरे पूरे वर्ष जीवन यापन करने की विवशता है। लोगों का कहना है कि हमारे स्वास्थ्य की जांच को नियमित शिविर लगे। शादी-ब्याह से लेकर हरेक शुभ कार्य बैंड बाजे के बिना फीका लगता है। बैंड बाजे वाले शुभ कार्य में लोगों को आनंदित करने का काम करते हैं। बेगूसराय जिले में तकरीबन ढ़ाई सौ बैंड पार्टी में तकरीबन 20 से 25 हजार लोग काम करते हैं। जिले के दो से ढ़ाई लाख की आबादी बैंड-बाजे से लेकर आर्केस्ट्रा या फिर डीजे के पेशे के जरिये अपना जीवनयापन करता है। व्यक्ति के जन्म के शुभ अवसर से लेकर अंतिम यात्रा तक साथ निभाने वाले बैंड बाजा कर्मी लोगों को तो अपनी कला से आनंदित तो करते हैं, लेकिन खुद अवसाद में जीते हैं। जिन बैंड बाजों से शादी समारोह से लेकर अन्य कई शुभ अवसरों की रौनकता बढ़ती है, वहीं बैंड बाजा बजाने वाले कर्मचारियों को अपेक्षित कमाई नहीं होने के कारण खुद तकलीफों भरा जीवन जीते हैं।
हाल के वर्षों में डीजे के बढ़ते प्रचलन के कारण बैड बाजे का सुमधुर तान गुम होता जा रहा है। पहले के मुकाबले कमाई घट गई है। बैड पार्टी में काम करने वाले चकबल्ली के सौदागार, अनमोल, विन्देश्वरी, सुरेन्द्र, बीहट के मंजूर, तनवीर, अख्तर, अब्बास, शमीम, बेगूसराय रजौड़ा के नागेन्द्र सिंह समेत अन्य ने बताया कि डीजे के प्रचलन शुरू होने से पूर्व शादी-ब्याह समेत अन्य मांगलिक कार्यो की रौनक बैंड-बाजें और शहनाई से ही बढ़ती थी। एक बैंड पार्टी में 12 से लेकर 25 लोग काम करते थे। लेकिन अब डीजे के प्रचलन से उनलोगों का पेशा बंदी के कगार पर है। पहले सारी रात बैंड बाजा बजाते थे। एक दिन में दो से तीन जगहों पर बारात द्वार लगाने से लेकर अन्य अवसरों पर बैंड बाजा बजाते थे। लेकिन इधर कुछेक वर्षो से 10 बजे रात के बाद बैंड बाजा बजाने पर पाबंदी से उनलोगों को काफी दिक्कत हो रही है। पूरे वर्ष में बमुश्किल दो से तीन महीने ही उनलोगों को काम मिल पाता है और ऐसी स्थिति में दो से तीन महीने की कमाई पर सालोंभर जीवन यापन करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है।
वाद्य यंत्रों के बढ़ते कीमत तथा अपेक्षित कमाई नहीं होने के कारण बैंड पार्टी के कामगार साल दर साल कर्ज के दलदल में फंसते जा रहे हैं। कभी कभी लोग सूतक या फिर अन्य अपरिहार्य कारणों से बुकिंग को कैंसिंल कर देते हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें अग्रिम की राशि भी लौटानी पड़ती है। सरकार को बैंड बाजे के करार को कानूनी कवच देना चाहिए ताकि बुकिंग कैंसिल होने पर बैंड पार्टी में काम करने वाले लोगों को नुकसान का सामना नहीं करना पड़े। घट रही कमाई के कारण युवा पीढ़ी बैंड बाजे में शामिल होने से कतराने लगे हैं। कुल मिलाकर शादियों एवं अन्य मांगलिक कार्यों में रंग बिखरने वाले बैड वादक व गायकों की जिंदगी बेरंग होती दीख रही है।
प्रस्तुति : विपिन सिंह
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वाद्य यंत्रों की बढ़ रही कीमत से घट रही हमारी आमदनी
मंहगाई का असर बैंड पार्टी पर भी पड़ता दीख रहा है। विगत एक दशक के भीतर वाद्य यंत्रों की कीमत में 25 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हुई है। खराब होने पर वाद्य यंत्रों की मरम्मत करवाने के लिए भी दूर जाना पड़ता है। बैंड पार्टी चलाने वाले बीहट में अख्तर, अब्बास, मंजूर आदि ने बताया कि मंहगाई के हिसाब से जब वे लोग अपना राशि लोगों को बतलाते हैं तो ग्राहक झेंप जाते हैं। ऐसे लोग बैंड बाजे के बदले डीजे की ही बुकिंग कर लेते हैं। कुल मिलाकर वाद्य यंत्रों की बढ़ रही कीमत बैंड बाजे पेशा के लिए कोढ़ में खाज साबित हो रहा है। यह सच है कि जब बारात द्वार लगने के समय जब सुसज्जित परिधान से लैश बैंड पार्टी के लोग जब अपने वाद्य यंत्रों से सुरीली तान निकालते हैं, तो उस समय का माहौल बेहद ही खुशनुमा होता है। लेकिन मनोरंजन के नाम पर अब लोग बैंड बाजे के बदले डीजे की बुकिंग कर रहे हैं। मनोरंजन के नाम पर अश्लीलता परोसा जा रहा है। शादी विवाह समेत अन्य मांगलिक अवसरों पर परंपरा के तौर पर बजने वाले बैंड बाजे की जगह अब डीजे बजते नजर आते हैं।
एसोसिएशन की मांगों पर कोई नहीं देता है ध्यान
यों तो बेगूसराय जिले में काम करने वाले बैंड पार्टी वर्करों ने अपना एसोसिएशन बना रखा है। लेकिन एसोसिएशन की मांगों पर न तो जिला प्रशासन और न ही राज्य सरकार ध्यान देती है। जिला बैंड पार्टी एसोसिएशन के अध्यक्ष नागेन्द्र कुमार ने कहा कि 10 बजे के बाद बैंड बाजे के बजाने पर रोक से गायिकी व वादिकी के जरिये अपना जीविकोपार्जन करने वाले लोग काफी हद तक प्रभावित हुए हैं। कारखानों में रातभर कार्य हो सकते हैं। अन्य कार्य के लिए कोई मनाही नहीं है, ऐसी स्थिति में बैंड बाजा पर प्रतिबंध कहीं से भी उचित नहीं है। जब प्रतिबंध नहीं था तो एक ही दिन में चार से पांच बुकिंग हो जाया करती थी। इससे अच्छी आमदनी हो जाया करती थी। लेकिन प्रतिबंध से उनका पेशा काफी प्रभावित हुआ है और सरकार को इस पर विचार करने की जरूरत है।
सुझाव
1. वाद्य यंत्र खरीदने के लिए बिना ब्याज के ऋण की व्यवस्था होनी चाहिए।
2.बैड पार्टी में काम करने वाले कामगारों के रिहर्सल के व्यवस्था होनी चाहिए। प्रशिक्षण की व्यवस्था भी हो।
3.संचालकों व कामगारों का एसोसिएशन होना चाहिए और सरकार को उनकी मांगों पर संवेदनशील होना चाहिए।
4. ध्वनि प्रदूषण और समय सीमा के नाम पर बैड बाजा कामगारों का उत्पीड़न बंद होना चाहिए।
5. आवास योजना सहित अन्य लोक कल्याणकारी योजनाओं का लाभ देने में बैंड पार्टी के कामगारों को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।
शिकायतें
1. माहौल को खुशनुमा बनाने लगे रहते हैं, लेकिन समाज में उन्हें सम्मान नहीं मिलता है, जिसके वे हकदार हैं।
2.काम का पैसा देने में लोग आनाकानी करते हैं। एक मुश्त पैसे के बदले लोग किश्तों में रूपये देते हैं।
3. ध्वनि प्रदूषण के नाम पर पुलिस प्रशासन उन्हें परेशान करती है। ट्रैफिक पुलिस उनलोगों का शोषण करती है।
4.बैंड बजाने के नाते वे कलाकार हैं। लेकिन समाज कलाकारों की भांति बैंड पार्टी में शामिल लोगों को सम्मान नहीं देती है।
5.सरकारी कार्यक्रमों में बैंड बाजा कलाकारों को काम नहीं मिल पाता है।
उभरा दर्द
हमलोगों को नियमित काम नहीं मिल पाता है। इस वजह से काफी दिक्कत होती है।शादी के सीजन के बाद वे लोग बेकार हो जाते हैं। -अनमोल राय, चकबल्ली
सरकार को बैंड बाजे के पेशा को संरक्षण प्रदान करें। कलाकार के माफिक अपनी आमदनी हो। फिलहाल दिहाड़ी मजदूरों से भी कम आमदनी हमारी है।-राम सेवक, चकबल्ली
बैंड बाजे की मांग लगातार कम होती जा रही है। वर्ष में दो से तीन महीने ही काम मिलता है। बाकी दिनों में कर्ज लेकर खुद तथा परिवार का भरण-पोषण करना पड़ता है।-सुजेन्द्र, चकबल्ली
दिनोंदिन वाद्य यंत्रों की कीमतें बढ़ रही है। सरकार को वाद्य यंत्रों की कीमतों पर अंकुश लगाना चाहिए। -कौशल कुमार, चकबल्ली।
बैंड बजाने में अधिक परिश्रम लगते हैं। 10 से 15 वर्षों तक बैंड पार्टी में काम करने के बाद गंभीर बीमार पड़ जाते हैं। बीमार पड़ने के बाद कोई देखनेवाला नहीं होता है।-रामउदगार, चकबल्ली
ध्वनि प्रदूषण व समय सीमा के नाम पर पुलिस हमलोगों का शोषण करती है। पुलिस द्वारा अपमानित किये जाने से तकलीफ होती है।-सुरेंद्र कुमार, चकबल्ली
शादी वाले परिवार को अपने प्रदर्शन के जरिये खुशनुमा माहौल देते हैं। जब तय रकम भुगतान की बात आती है तो कमी निकालकर राशि की कटौती करते हैं लोग। -मो. शमीम, बीहट
डीजे का प्रचलन बढ़ने से हम बैंड बाजा बजाने वाले कर्मचारियों की अहमियत कम हो गई है। तेज आवाज वाले डीजे पर प्रतिबंध लगना चाहिए। -विन्देश्वरी, बैंड पार्टी चकबल्ली
भूमिहीन रहने से आवास योजना का लाभ भी नहीं ले पाते हैं। सरकार बैड पार्टी के कामगारों के लिए कॉलोनी का निर्माण कराये। -सौदागार, बैंड पार्टी संचालक, चकबल्ली
आर्थिक तंगी के कारण हम अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा व स्वास्थय का लाभ नहीं दे पाते हैं। हमारे लिए सरकार विशेष पहल करे।-रामप्रकाश दास,चकबल्ली
हर जगह तीन शिफ्ट में काम हो रहे हैं। ध्वनि प्रदूषण के नाम पर बैंड बाजे के रात के दस बजे के बाद से बजाने पर प्रतिबंध से हमारी आमदनी कम हुई है।-उमेश दास, चकबल्ली
शादी विवाह के मौके पर शराब के नशे में धुत्त होकर लोग हमारे साथ गलत व्यवहार करते हैं। लोगों के द्वारा सरेआम बेइज्जत किया जाता है। -उपेन्द्र, बैंड पार्टी कामगार, चकबल्ली
वाद्य यंत्रों को खरीदने के लिए सरकारी मदद मिले तो बहुत हद तक उनलोगों को राहत मिलेगी। सरकारी सुविधा में भी प्राथमिकता मिलनी चाहिए।-विष्णुदेव बैंड पार्टी कामगार
पहले हमारे प्रदर्शन पर लोग ईनाम भी खूब देते थे। मेहताना के अलावे न्योछावर से भी आमदनी होती थी। अब इसमें कमी आ गई है।-पंकज यादव,तेघड़ा
मनोरंजन व सांस्कृतिक कार्यक्रम में बड़े-बड़ें कलाकारों को लोग बुला रहे हं। हमारी कला के कद्रदानों की संख्या लगातार घट रही है।-प्रकाश दास,मंझौल
बैंड बाजा कर्मियों को अक्सर खड़ें रहकर काम करना पड़ता है। कार्यस्थल पर कर्मियों के आराम करने की कोई व्यवस्था नहीं होती है।-अरमान
बारात द्वार लगाने के लिए कई किमी की दूरी तय करनी पड़ती है। इससे श्रम व समय ज्यादा लगते हैं। समय व श्रम के लिहाज से मेहताना तय होना चाहिए।-शंभू दास, बरौनी
सालोभर बुकिंग नहीं होने से कलाकारों को टीम में रोककर रखना मुश्किल होता है। मंहगाई के हिसाब से लोग मेहताना नहीं देते हैं।-राधेश्याम रसिया
मांगलिक कार्य का सीजन खत्म होने के बाद वे लोग बेकार हो जाते हैं। अन्य रोजगार करने में सरकार को बैंड बाजा कर्मियों को सहयोग करना चाहिए।-नागेन्द्र सिंह, बैंड पार्टी संचालक, रजौड़ा
तमाम सरकारी प्रतिबंधों की वजह से हमलोगों का काम काफी प्रभावित हुआ है। जब प्रतिबंध नहीं था तो एक दिन में तीन-चार बुकिंग में काम करने का मौका मिल जाता था।-सुरेश, चकबल्ली
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