गोवा में लोक कला से दर्शाया जा रहा सीता का अनदेखा रूप
बिहार संग्रहालय ने 10 से 31 जनवरी 2025 तक गोवा के पणजी में 'सीता- बिहार की बेटी' नामक लोक कला प्रदर्शनी का आयोजन किया है। इस प्रदर्शनी में माता सीता के अनछुए पहलुओं को दर्शाया गया है। इसमें महिला...
- ‘सीता- बिहार की बेटी पर आधारित फोर्क आर्ट एग्जिबिशन का आयोजन - सीता माता के अनछूए पहलू को दर्शाया गया है
- टिकुली, सुजनी, मंजूषा, मधुबनी आर्ट में विशेषज्ञ कलाकारों ने लिया है भाग
पटना, हिन्दुस्तान प्रतिनिधि।
आज तक माता सीता को लागों ने सिर्फ राम की पत्नी या एक दैवीय शक्ति के प्रतिरूप में देखा, सुना और जाना है। लेकिन बहुत कम ही लोग जानते हैं कि माता सीता राजा जनक की बेटी, राजा दशरथ की पुत्र वधू होने के साथ साथ एक महान योद्धा और बहुत कर्मठ स्त्री थी। माता सीता के इस अनदेखे रूप को गोवा के पणजी स्थित आर्ट गैलरी, संस्कृति भवन में दर्शाया जा रहा है। बिहार संग्रहालय, और संग्रहालय निदेशालय के सहयोग से 10 से 31 जनवरी 2025 तक ‘सीता- बिहार की बेटी नामक लोक कला प्रदर्शनी आयोजित कर रहा है। प्रदर्शनी की थीम, वैदेही सीता, सीता को उनकी दिव्य अमूर्तता से परे फिर से कल्पित करने का प्रयास करती है। जिसमें एक महिला, बेटी, दोस्त और पत्नी के रूप में उनकी भूमिकाओं पर जोर दिया गया है।
सीता के जीवन के प्रसंगों को इस प्रदर्शनी के लिए थीम के रूप में क्यों चुना गया। क्या सीता के जीवन की आज की दुनिया में कोई प्रासंगिकता है? ऐसे विषयों का चयन करना क्यों उचित है? महिला सशक्तिकरण, संघर्ष और हाशिए पर होने के बारे में वैश्विक चर्चाओं में, देवी सीता की छवि अक्सर एक केंद्रीय प्रतीक के रूप में उभरती है। उल्लेखनीय है कि यह पूजनीय देवी, सीता बिहार के सीतामढ़ी से आती हैं। बिहार की बेटी मानी जाने वाली किसी महिला को सम्मानित करने के लिए, बिहार संग्रहालय ने सीता के जीवन पर केंद्रित एक प्रदर्शनी आयोजित की है। सीता बिहार की कलात्मक और लोक परंपराओं में, खास तौर पर मिथिला क्षेत्र में, एक प्रमुख और केंद्रीय स्थान रखती हैं। सीता ने अपना बचपन मिथिला में बिताया, जहाँ उनका लालन-पालन एक राजकुमारी के रूप में हुआ। उन्होंने विभिन्न कलाओं और शास्त्रों का अध्ययन किया। उनकी कहानियाँ लोक संगीत और कला रूपों के माध्यम से पीढ़ियों से चली आ रही हैं, माना जाता है कि सीता खुद एक असाधारण कलाकार थीं। इसके बावजूद, इन कहानियों की एक सुसंगत और समग्र प्रस्तुति का प्रयास पहले नहीं किया गया था, जिसे बिहार संग्रहालय ने करने का लक्ष्य रखा था। ऐसे समाज में जहां महिलाओं को अक्सर निष्क्रिय और विनम्र भूमिकाओं तक सीमित रखा जाता है और उनसे आज्ञाकारिता और नैतिक शुद्धता के सामाजिक मानदंडों के अनुरूप होने की अपेक्षा की जाती है। सीता का जीवन और उनकी चुनौतियां समकालीन महिलाओं को प्रेरणा देती हैं और उनकी कहानी ऐसी थी जिसे बताया जाना चाहिए था। बिहार संग्रहालय ने सीता के जीवन और उनकी यात्रा को अपनी कला के माध्यम से चित्रित करने के लिए बिहार के लोक कलाकारों को इकट्ठा किया। मधुबनी, मंजूषा, टिकुली, सुजनी और अप्लीक में विशेषज्ञता रखने वाले पद्म श्री पुरस्कार विजेताओं और राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों के प्राप्तकर्ताओं सहित तीस प्रसिद्ध लोक कलाकारों ने एक कला शिविर में भाग लिया। इन कलाकारों में मुख्य रूप से महिलाएं शामिल हैं, जिन्होंने बिहार की विविध लोक कलाओं का प्रदर्शन करते हुए सीता की कहानी सुनाई। लोक कलाकारों ने सीता के जीवन के विभिन्न क्षणों - उनके जन्म, बचपन, विवाह, अपहरण और वनवास - को विभिन्न पारंपरिक कला रूपों के माध्यम से खूबसूरती से कैद किया।
इस प्रदर्शनी में इन कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है। कुल 38 कलाकृतियाँ प्रदर्शित की जा रही हैं। चित्रों के साथ-साथ, राम-सीता के विवाह और सीता के साथ उनके बेटों लव और कुश के दृश्यों को दर्शाती पपीयर-मैचे की मूर्तियां और सिक्की कलाकृतियां भी प्रदर्शित की जा रही हैं।
बॉक्स
लोग अशोक वृक्ष के पत्तों पर लिख रहे अपनी बात
इस प्रदर्शनी में अशोक वृक्ष की आकृति बनाई गई है। इसके दिखाने के पीछे का उद्देश्य है कि माता सीता ने अपने जीवन का ज्यादातर समय इसी वृक्ष के नीचे बिताया था। आने वाले दर्शकों को ये बहुत आकर्षित कर रहा है। और वे अपने विचार इसके पत्तियों पर लिख रहे हैं।
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