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सूरत से डेढ़ लाख में ट्रक हायर कर चले, चालक ने नवादा लाकर दे दिया धोखा

बिहार के बांका जिले जाने को सूरत से निकले 45 प्रवासी बीच मझधार में आकर नवादा में फंसे पड़े हैं। सूरत से डेढ़ लाख रुपये में एक ट्रक बुक कर चले लोगों को धोखे से नवादा में उतार कर ट्रक चालक भाग निकला और...

Malay Ojha नवादा। नगर संवाददाता, Tue, 19 May 2020 08:37 PM
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बिहार के बांका जिले जाने को सूरत से निकले 45 प्रवासी बीच मझधार में आकर नवादा में फंसे पड़े हैं। सूरत से डेढ़ लाख रुपये में एक ट्रक बुक कर चले लोगों को धोखे से नवादा में उतार कर ट्रक चालक भाग निकला और अब सभी इधर-उधर भटकने को मजबूर रह गए हैं। किसी के सुझाव पर आईटीआई होते नवादा नगर थाना पहुंचे सभी लोगों को टाउन इंस्पेक्टर संजीव कुमार व अन्य पुलिस कर्मियों ने पहल कर नाश्ता-पानी का इंतजाम करा दिया है। अब सभी को इस बात की चिंता है कि कैसे भी बांका भिजवाने की व्यवस्था हो जाए। 

इस बीच, थाना के गेट के समीप यूं ही अपने बुरे हाल से बेहद बुरी स्थिति में बैठे अमरपुर थाना के बालिकिता गांव के श्रवण, मिथिलेश, कमलेश, बजरंगी आदि प्रवासी बेहद करूण स्वर में अपनी व्यथा कह पड़े कि जीवन में ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे, नहीं सोचा था। कई तो रो पड़ते हैं और कहते हैं कि पेट की चिंता थी इसलिए घर-परिवार छोड़ कर सूरत में कमाई की जरूरत ने पहुंचा दिया। किस्मत में ऐसा लिखा है, सोच कर जीवन को उसी की धार पर बहने दिया। सब कुछ ठीकठाक चल रहा था कि अचानक से लॉक डाउन हमारे अरमानों को जलाने आ गया। पहले रोजगार छीन गया। कमाई बंद हो गयी। फिर पूरी पाबंदी में रहे। भोजन के भी लाले पड़ गए तो घर की याद सताने लगी। लगा घर में जैसे भी रहेंगे, बुरे हाल से तो बचे रहेंगे। यह सोच कर हर प्रयास किया लेकिन सरकार की पहल हमारे काम न आ सकी। आखिरकार अपने प्रयास से एक ट्रक को अपनी सारी जमा पूंजी लगा कर डेढ़ लाख रुपये में ठीक किया और बांका के लिए निकल पड़े। लेकिन कहां पता था कि किस्मत में अभी सुकून नहीं लिखा है। ट्रक चालक नवादा का ही था और उसकी मंशा बस नवादा तक आने की थी। उसने धोखे से हम सभी को नवादा में उतार दिया और भाग गया। हम सभी किस्मत के मारे अब बीच मझधार में पड़े हैं। यह तो भला हो कि नवादा नगर थाना के टाउन इंस्पेक्टर हमारे संकट मोचक बने हुए हैं वरना हमारा क्या होगा, हमें खुद ही नहीं पता। 

इस बीच, इंस्पेक्टर संजीव कुमार कहते हैं कि जो मेरे बस में था, वह मैंने कर दिया है। अब मेरे पास किसी प्रकार की व्यवस्था नहीं है। मेरी एक सीमा है। मेरे हाथ बंधे हैं। अपने इस दुविधा भरे हाल पर प्रवासी कहते हैं कि अब तो थकहार कर हमने अपने भाग्य पर ही खुद को छोड़ दिया है। किस्मत में घर तक पहुंचना लिखा होगा तो पहुंच ही जाएंगे अन्यथा अब जो होना है, वह झेलेंगे। सभी दर्द भरे अंदाज में कहते हैं, इतने बुरे दिन भगवान किसी को न दिखाएं। सरकार की नीति पर सभी फट पड़ते हैं और बस इतना ही कहते हैं कि हमारे भाग्य से बड़ा दुश्मन तो सरकार बनी पड़ी है।  

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