पकड़ने सफलता की डोर, नेताजी चले अब गांव की ओर
नेताजी को सफलता की डोर पकड़नी है इसलिए वह गांवों की ओर चल पड़े हैं। वैसे भी इस बार शहरी क्षेत्र के प्रबुद्ध मतदाता सवालों की झड़ी लगाने के मूड में दिख रहे हैं। ऐसे में इन्हें बरगलाना संभव होता नहीं...
नेताजी को सफलता की डोर पकड़नी है इसलिए वह गांवों की ओर चल पड़े हैं। वैसे भी इस बार शहरी क्षेत्र के प्रबुद्ध मतदाता सवालों की झड़ी लगाने के मूड में दिख रहे हैं। ऐसे में इन्हें बरगलाना संभव होता नहीं दिख रहा है। इसलिए नेताजी गांवों के भोले-भाले मतदाताओं को रिझाने गांव की पगडंडियों पर चल पड़े हैं। नामांकन को लेकर शहर में एक सप्ताह से लग रही नेताओं की भीड़ अब गांवों का रुख कर चुकी है। गांवों में देर रात तक अलग-अलग पार्टी के नेता अथवा उनके समर्पित कार्यकर्ता पहुंच रहे हैं। गांवों में चुनावी चौपाल लगनी शुरू हो गई है। गुरुवार को नामांकन की अंतिम तिथि थी। इस कारण दल के प्रत्याशी से लेकर निर्दलीय प्रत्याशी भी अनुमंडल कार्यालयों में नामांकन पर्चा दाखिल करने के लिए पहुंच रहे थे। शाम पांच बजे तक भीड़ लगी भी रही। इसके बाद शहर में सन्नाटा छा गया। सभी प्रत्याशी गांवों का रुख कर गए।
गांवों में लग रहा चौपाल
गांवों में चुनाव प्रचार की बढ़ रही भीड़ के कारण गांव के लोग देर रात तक घर से बाहर एक जगह चौपाल लगा रहे हैं। इससे उनके परिवार को परेशानी नहीं हो रही है। चौपाल पर अभी क्षेत्र में किस दल से कौन प्रत्याशी बना है और कितने निर्दलीय प्रत्याशी मैदान में उतरे हैं, इस बात की चर्चा चल रही है। चौपाल में निर्दलीय से किसको लाभ और किसको नुकसान होगा, इसका आकलन भी किया जा रहा है। प्रचार के लिए आने वाले हर दल के नेताओं को ग्रामीण वोट देने का वादा तो कर रहे हैं लेकिन कुछ तीखे सवाल भी सामने आ ही जा रहे हैं। हालांकि वह किसी को निराश नहीं कर रहे हैं। वोट किसको देना है, इस पर किसी ने अभी तक निर्णय नहीं लिया है। दल से बंधे लोगों के अलावा अन्य लोग भी गांव और क्षेत्र का लाभ देख रहे हैं। उसी भाव से बातचीत का दौर चल रहा है।
चुनावी चहल-पहल हो गयी तेज
बहरहाल, जनता का निर्णय चाहे जो हो फिलहाल लोकतंत्र के इस महापर्व में गांवों में चहल-पहल तेज हो गई है। कभी गांवों में नहीं पहुंचने वाले भी गांवों में रात गुजारने को तैयार हैं। उनको गांव की हकीकत से रुबरु होना पड़ रहा है। गांव के लोगों के लिए भी यह मौका है कि वह गांव में नाली व गली से लेकर नल जल योजना की सच्चाई सामने रख कर अपने हित में नेताजी से हामी भरवा रहे हैं। अब 28 अक्टूबर के बाद ही इस गहमागहमी पर विराम लगना है।
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