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जीर्ण-शीर्ण कमरों में पढ़ने को मजबूर हैं राजकीय इंटर विद्यालय ओखरिया के विद्यार्थी

कौआकोल। एक संवाददाता बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण बाबू द्वारा शिलान्यास किया हुआ कौआकोल प्रखंड का राजकीय इंटर विद्यालय ओखरिया आज भी भवनविहिन है।

Newswrap हिन्दुस्तान, नवादाSun, 6 April 2025 03:39 PM
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जीर्ण-शीर्ण कमरों में पढ़ने को मजबूर हैं राजकीय इंटर विद्यालय ओखरिया के विद्यार्थी

कौआकोल। एक संवाददाता बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण बाबू द्वारा शिलान्यास किया हुआ कौआकोल प्रखंड का राजकीय इंटर विद्यालय ओखरिया आज भी भवनविहिन है। छात्र-छात्राओं को पढ़ाई करने के लिए यहां भवन उपलब्ध नहीं है। विद्यालय में भवन की कमी होने के कारण जीर्ण-शीर्ण हो चुके कमरों में ही बैठकर छात्र छात्राओं को पढ़ाई करनी पड़ रही है। सभी तरह के संसाधन मौजूद रहने के बावजूद वहां के छात्रों को शिक्षकों की कमी को झेलने की विवशता बनी हुई है। अपने जमाने का मशहूर यह विद्यालय ने जिले ही नहीं बल्कि प्रदेश में भी खूब ख्याति बटोरने का काम किया है। निर्माण काल में इस विद्यालय को लोग ओखरिया उच्च विद्यालय ओखरिया के नाम से जानते थे। इस विद्यालय की स्थापना 1953 ई. बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्रीकृष्ण सिंह के हाथों हुई थी। उन्होंने एक डायरी पर लिखा था कि कौआकोल के इस निर्जन स्थान पर उच्च विद्यालय की बहुत ही जरूरी है और मैं इस विद्यालय को फलता-फूलता और मुस्कुराते देखना चाहता हूं। उनकी इस डायरी को आज भी विद्यालय में सुरक्षित एवं संवारकर रखा गया है। विद्यालय के निर्माण के लिए ओखरिया गांव के ग्रामीण बाबू अनत सिंह, लक्ष्मी सिंह तथा सूर्यदेव सिंह ने सामूहिक रूप से जमीन की दान दी थी। उस वक्त यह विद्यालय कमिटी पर चलता था। भवन पूर्ण रूप से खपरैल ही था। कमरों की संख्या आठ थी। पर उस समय के खपरैल और संसाधनों की कमी के बावजूद जो इस विद्यालय ने ख्याति प्राप्त की, शायद अब मुश्किल होता है। हालांकि अभी भी इस विद्यालय में अध्ययनरत छात्र कभी इंटर तो कभी मैट्रिक में जिले में टॉपर होने की उपलब्धि को बरकरार रखने में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। 2010 में उच्च माध्यमिक विद्यालय का दर्जा मिला 1962 में इसका सरकारी करण कर लिया गया तथा 2010 में उच्च माध्यमिक विद्यालय का दर्जा प्राप्त हुआ है। पर खेद की बात है कि आज तक उच्च माध्यमिक विद्यालय का भवन का निर्माण नहीं हो सका है। जिसके कारण उच्च माध्यमिक विद्यालय के छात्र माध्यमिक विद्यालय के ही जीर्ण-शीर्ण अवस्था के कमरों में अध्ययन करने के लिए मजबूर हैं। कक्षा एवं छात्र छात्राओं की संख्या के अनुपात में कमरों की संख्या काफी कम हैं। कमरों की संख्या और होनी चाहिए। चूंकि इस विद्यालय का चयन पीएम श्री मॉडल विद्यालय के रूप में हो चुका है। जिसके लिए वर्ग 6 से 8 के लिए अतिरिक्त कमरा और शिक्षकों की आवश्यकता है। पर न तो इसके लिए कमरा का निर्माण कराया जा सका है और न ही शिक्षक ही उपलब्ध हैं। अनुशासन और पढ़ाई के क्षेत्र में यह विद्यालय जिलेभर में अपना स्थान रखता था। जिसके बल जिले से लेकर प्रदेश में अच्छी ख्याति प्राप्त कर चुकी है। उस समय इस विद्यालय में छात्रों की संख्या काफी होती थी। चूकि उस समय विद्यालयों की संख्या कम हुआ करती थी। अभिभावक अपने बच्चों को उसी विद्यालयों में नामांकन कराना चाहते थे जिस विद्यालय में शिक्षण व्यवस्था का प्रबंध अच्छा होता था। प्रयोगशाला है पर लाइब्रेरी एवं कम्प्यूटर लैब नहीं इस विद्यालय में छात्र छात्राओं को प्रयोगशाला की सुविधा है पर लाइब्रेरी एवं कम्प्यूटर लैब नहीं रहने के कारण उसकी सुविधा नहीं मिल पा रही है। चाह कर भी न तो छात्र लाइब्रेरी एवं कम्प्यूटर लैब में बैठकर ज्ञान हासिल कर सकते हैं और न ही शिक्षक दे पाते हैं। विद्यालय में स्मार्ट क्लास की भी व्यवस्था है पर उसके शिक्षक नहीं हैं। लिहाजा छात्र छात्राओं को कम्प्यूटर की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। लाइब्रेरी नहीं होने से छात्र छात्राओं को वहां पुस्तक प्राप्त करने की सुविधा से भी वंचित रह जाना पड़ रहा है। इस विद्यालय में इंटर आर्ट्स एवं साइंस दोनों संकाय की पढ़ाई होती है। हर वर्ष छात्रों का दाखिला भी 11वीं की कक्षा में होती है। पर शिक्षकों की कमी के कारण छात्र छात्राओं को बेहतर ढंग से पढ़ाई नहीं हो पाती है। विद्यालय में बाउंड्री बाल नहीं होने से शिक्षक तथा छात्र दोनों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। अक्सर विद्यालय परिसर में मवेशियों तथा असमाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है। बड़े-बड़े पद पर यहां के छात्र हैं पदासीन विद्यालय के फाउंडर प्राचार्य रामफल बाबू के पुत्र डा.अखिलेश कुमार जो इसी विद्यालय के छात्र रह चुके हैं और अभी पाटलिपुत्रा विश्वविद्यालय में प्राचार्य हैं। छबैल के दीपक कुमार सिंह आईएएस बने, फिलहाल वह सरकार के मुख्य सचिव के पद पर हैं। क्षेत्रीय लोग बताते हैं कि उस वक्त के शिक्षक छात्रों के प्रति समर्पित भाव से सेवा करने का काम करते थे। पर अब वह भाव न तो शिक्षकों में देखा जाता है और न छात्रों में। लिहाजा पढ़ाई की गुणवत्ता में कमी जरूर देखने को मिलती है। विद्यालय में नहीं हैं कई विषयों के शिक्षक शैक्षिक वर्ष 2024-25 में विद्यालय में छात्र छात्राओं की संख्या 549 है। उच्च माध्यमिक में 13 पदों सृजित हैं तथा सिर्फ 8 शिक्षक मौजूद हैं तथा 5 पद रिक्त पड़ा हुआ है। इसी प्रकार माध्यमिक में 17 पद सृजित है जबकि 11 शिक्षक उपलब्ध हैं तथा 6 सीटें रिक्त हैं। विद्यालय में प्लस टू के रसायन विज्ञान, भौतिकी विज्ञान, हिन्दी तथा अर्थशास्त्र के पद रिक्त हैं। इन विषयों के शिक्षकों के अभाव में इन विषयों की पढ़ाई नहीं हो पा रही है। जबकि माध्यमिक के वर्गों में गणित, हिन्दी, संस्कृत एवं उर्दू के शिक्षक नहीं रहने से छात्र छात्राओं को पढ़ाई करने में परेशानी हो रही है। बावजूद विद्यालय में उपलब्ध संसाधनों के आधार पर छात्रों को बेहतर शिक्षा दी जा रही है। यहां के छात्रों का मैट्रिक तथा इंटर के वार्षिक परीक्षा में बेहतर परिणाम आ रहा है। ---------- वर्जन विद्यालय में भवन की घोर कमी है। माध्यमिक तथा उच्च माध्यमिक में की विषयों के शिक्षक भी नहीं हैं। छात्र छात्राओं के अनुसार शिक्षकों की उपलब्धता रहने से पढ़ाई बेहतर तरीके से हो सकेगी। बावजूद पठन पाठन में सुधार के लिए हरसंभव प्रयास किया जा रहा है। विद्यालय में बाउंड्री बाल नहीं होने काफी परेशानी होती है। - अनंत कुमार, प्रभारी प्राचार्य, राजकीय इंटर विद्यालय ओखरिया, कौआकोल।

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