आचार्य श्री के सानिध्य में तैयार हुई रचनाकारों की एक पूरी पीढ़ी
मुजफ्फरपुर में आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री की जयंती पर साहित्यकारों ने उन्हें याद किया। शास्त्री जी एक संवेदनशील कवि थे, जिन्होंने कई रचनाकारों की पीढ़ी को तैयार किया। उनका आवास निराला निकेतन हिंदी...
मुजफ्फरपुर, प्रमुख संवाददाता। आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री के सानिध्य में जब शाम में निराला निकेतन में नए रचनाकार बैठते थे तो उनकी रचनाओं को शास्त्री जी सही करते थे। आचार्य श्री के सानिध्य में रचनाकारों की एक पूरी पीढ़ी तैयार हुई थी। उनकी जयंती की पूर्व संध्या पर साहित्यकारों ने याद करते हुए ये बातें कहीं।
साहित्यकारों ने कहा कि बहुआयामी प्रतिभा संपन्न शास्त्री जी बड़े ही संवेदनशील कवि थे। उनका आवास निराला निकेतन साहित्य तीर्थ के रूप में हिंदी जगत में प्रसिद्ध है। पूरे देश से साहित्यकार यहां आते रहते थे और आचार्य जी से घंटों संवाद करते हुए अपनी रचनात्मक प्रतिभा को विकसित करते थे। हिंदी गीत, कविता के शिखर पुरुष जानकीवल्लभ शास्त्री अपने लेखन के लिए विश्वकवि रवींद्रनाथ ठाकुर को चुनौती के रूप में देखते थे। मानवेतर प्राणियों से भी स्नेह करने वाले शास्त्री जी करुणा, प्रेम, सौंदर्य और सत्य के बड़े चिंतक और रचनाकार थे। उन्होंने कई साहित्यिक पीढ़ियों का निर्माण किया। 'राका' और 'बेला' पत्रिका के माध्यम से उनकी रचनात्मक प्रतिभा को परवान चढ़ाया। संपूर्णत: साहित्य के लिए समर्पित शास्त्री जी मूल्य, मनुष्यता, प्रकृति, संस्कृति और अध्यात्म के संवेदनशील संवाहक थे। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेंद्र मधुकर कहते हैं कि जानकीवल्लभ शास्त्री भारतीय साहित्य परंपरा के ऋषि कवि और मनीषी चिंतक की तरह हैं, जिन्होंने अधुनातन समय को भी अपनी रचनाओं में समाहित किया। उनकी अभिव्यंजना बहुत गहरे अर्थ के साथ प्रकट हुई है। संस्कृत के विद्वान थे, इसलिए उनके गीतों में शास्त्रीयता का पूरा अनुशासन और जीवन का रस है। निराला निकेतन में आयोजित होने वाली हर महीने की 7 तारीख की नियमित गोष्ठी महावाणी स्मरण के संकल्पक और संयोजक आचार्य जी के प्रिय शिष्य संजय पंकज कहते हैं कि आचार्यश्री के साथ कवि सम्मेलन में जाने का सौभाग्य मुझे तभी प्राप्त हुआ जब मैं इंटरमीडिएट विज्ञान का छात्र था। कानपुर के बड़े कवि सम्मेलन में आचार्य जी के साथ पहली बार गया था। देश के नामी-गिरामी बड़े-बड़े गीतकार वहां आए थे। आचार्यश्री की अध्यक्षता थी और वहां जिस अंदाज में उन्होंने पहले बांसुरी गीत को सधे सुर में प्रस्तुत किया और फिर मेघगीत का पाठ किया तो पूरे वातावरण में गहरा सन्नाटा छा गया और केवल आचार्य जी के स्वर का प्रभाव लहराता रहा। वरिष्ठ कवयित्री डॉ. इंदु सिन्हा कहती हैं कि बहुआयामी प्रतिभा संपन्न शास्त्री जी बड़े ही संवेदनशील कवि थे। उनके गीत मर्म को छूते हैं। गीतों में प्रेम और सौंदर्य अपनी पराकाष्ठा पर है। गीतकार डॉ. विजय शंकर मिश्र कहते हैं कि आचार्य जी बड़े ही संवेदनशील और सहज थे। उनकी करुणा मानवेतर प्राणियों के साथ भी सदा रही। उनके गीतों में हृदय की गहराई और प्राण का मर्म है।
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