बुरे काम से परहेज रोजा का मकसद
रोजे का मकसद इफ्तार व सेहरी करने के अलावा बुरे कामों से परहेज करना है। माह-ए-रमजान में तरावीह पढ़ने व कुरआन शरीफ की तिलावत करें। साथ ही झूठ व...
रोजे का मकसद इफ्तार व सेहरी करने के अलावा बुरे कामों से परहेज करना है। माह-ए-रमजान में तरावीह पढ़ने व कुरआन शरीफ की तिलावत करें। साथ ही झूठ व चुगलखोरी व जलन से परहेज करते हुए रहमदिली व हमदर्दी की आदत को अपनाएं। यह फरमाते हुए माड़ीपुर स्थित मर्कजी खानकाह व एदार-ए-तेगिया के प्रवक्ता मौलाना जेया अहमद कादरी ने बयान किया कि रमजान के अशरा-ए-रहमत के बाद अशरा-ए-मगफिरत शुरू हो चुका है।
वे फरमाते हैं कि इंसान अपनी इच्छाओं को दबाकर खुद को बेहतर बनाता है। यदि इंसान रोजा रखे और झूठ व गलत बोले तो इससे रोजे का मकसद कमजोर पड़ जाता है। रोजे का रूह बेचैन हो उठता है। माह-ए-रमजान की रहमतों, बरकतों, मगफिरतों व निजादों से खुद को महरूम रखने वाला सख्श बड़ा बदनसीब होता है। नफरत से परहेज कर मोहब्बत को बढ़ावा देना, मां-बाप को खुश रखना, भूखों को खाना खिलाना, पड़ोसियों का हमदर्द बनना, रोगियों का इलाज कराना व देश की रक्षा करना आदि नेक कार्य इबादत में शामिल है।
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