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पापा के श्राद्ध से पहले मां ने आंखें मूंदी, बेटों के जीवन में अंधेरा

ऋतिक राज, राजा और ऋषिकेश जब दरवाजे से घर में प्रवेश करते हैं तो बेचैन आंखों में उम्मीद जगती है कि मम्मी-पापा कमरे में बैठे दिखेंगे। जब घर की विरानगी...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरFri, 21 May 2021 04:04 AM
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मुजफ्फरपुर | विभेष त्रिवेदी

ऋतिक राज, राजा और ऋषिकेश जब दरवाजे से घर में प्रवेश करते हैं तो बेचैन आंखों में उम्मीद जगती है कि मम्मी-पापा कमरे में बैठे दिखेंगे। जब घर की विरानगी बहन कंचन समेत तीनों भाइयों को काटने लगती है, तो वे दरवाजे पर कदम रखते हैं। यहां भी आंखें धोखा खा जाती हैं। घर के चप्पे-चप्पे में बसी यादें इन्हें रुला रही हैं। बच्चों के दिल-दिमाग इस कड़वी सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पा रहे कि मम्मी-पापा अब कभी नहीं आएंगे। सात दिनों में इनकी दुनिया ही उजड़ गयी। मोतीपुर प्रखंड के बरूराज निवासी शशिधर कुमार पंडित ने कोरोना से जूझते हुए गत सात मई (शुक्रवार)को एसकेएमसीएच में दम तोड़ दिया। अगले शुक्रवार की रात उनकी पत्नी नीलू देवी ने भी एसकेएमसीएच में आखिरी सांस ली। चंद दिनों पहले तक पापा का कस्टमर सर्विस प्वाइंट था, शोहरत और प्रतिष्ठा थी, घर में खुशहाली थी और दिन भर ‘कुछ खा लो कहने वाली मां का प्यार बरसता था। क्रमश: दो शुक्रवारों को सबकुछ लुट गया, कुछ बचा ही नहीं। सात मई की रात शशिधर की भतीजी की शादी थी। हंसते चेहरों पर खुशियां बरस रही थीं। नीलू देवी देवता पूजी में मंगल गीत गा रही थीं। रंग-बिरंगे बल्बों से सजे दरवाजे पर बारात का इंतजार था। अचानक मेडिकल कॉलेज से मनहूस खबर आयी, शशिधर नहीं रहे। टोला में मातम पसर गया। गाना बंद हुआ और बल्ब बुझ गए। जैसे-तैसे पड़ोसी के आंगन में शादी की रस्म पूरी की गई। अगले दिन से नीलू देवी बीमार हो गयीं। पहले बच्चों ने समझा कि पापा के गम में मां नहीं खा रही है। बुखार-खांसी के बाद जब सांस लेने में भी दिक्कत होने लगी तो 12 मई को एसकेएमसीएच में भर्ती कराया गया। दो दिन ठीक रहने के बाद तीसरे दिन स्थिति गंभीर हो गई। रात के 11 बजे मां ने दम तोड़ दिया। पापा-मां को मुखाग्नि दे चुका ऋतिक रात चुपचाप बैठा रहता है। बहन भाइयों को इस डर से कुछ भी समझाने की कोशिश नहीं करता है कि उनकी भावनाओं को फफोले फूट पड़ेंगे। उसे आगे कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा। चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा है।

तिनका-तिनका जोड़कर घर बनाया

शशिधर ने तिनका-तिनका जोड़कर घर बनाया। घर बसाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। किशोरावस्था में मृर्तियां बनायी, युवावस्था में फोटोग्राफी करते हुए स्टूडियो खोला और कुछ दिनों तक पत्रकारिता भी की। जब बरूराज में बैंक का कस्टमर सर्विस प्वाइंट खोला तो गृहस्थी पटरी पर आ गई। गांव के लोग कहने लगे शशिधर बहुत आगे बढ़ेगा। घर बनाया, बेटी की शादी की और तीनों बेटों को पढ़ाने लगे। पैक्स और सरपंच के चुनाव में दूसरे स्थान पर रहे और इस बार मुखिया का चुनाव लड़ने की तैयारी में थे। सारे सपने बिखर गए। खुशहाली में पल रहे राज, राजा और ऋषिकेश अर्श से फर्श पर आ गए हैं। पति-पत्नी के इलाज में सारे पैसे खर्च हो गए। छोटे भाई दिवाकर कर्ज लेकर भाई-भाभी के श्राद्ध की तैयारी में हैं। लंबी सांसे लेते हुए दिवाकर कहते हैं कि उनके पास भतीजी और भतीजों को ढांढ़स देने वाले शब्द नहीं हैं।

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