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जीतेगा गांव हारेगा कोरोना: राजखंड में हजारों को रोजगार दे रहे कर्मयोगियों के हाथ कलेजे पर

सीतामढ़ी जिले की सीमा पर स्थित मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड की राजखंड पंचायत प्राचीन भैरव स्थान मंदिर के लिए उत्तर बिहार में मशहूर है। रोजाना जिस मंदिर में हजारों भक्त जलाभिषेक, मन्नत पूरी होने पर पूजा,...

Abhishek Kumar मुजफ्फरपुर। विभेष त्रिवेदी, Wed, 29 April 2020 01:16 PM
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सीतामढ़ी जिले की सीमा पर स्थित मुजफ्फरपुर के औराई प्रखंड की राजखंड पंचायत प्राचीन भैरव स्थान मंदिर के लिए उत्तर बिहार में मशहूर है। रोजाना जिस मंदिर में हजारों भक्त जलाभिषेक, मन्नत पूरी होने पर पूजा, शादी,  मुंडन और जनेऊ के लिए आते रहे हैं, वहां सन्नाटा पसरा है। आज राजखंड दूसरे कारणों से सुर्खियों में है। करोड़ों की लागत से तंबाकू व मसालों की खेती करने वाले राजखंड के किसानों के समक्ष आज विकट स्थिति है। एक सप्ताह से लगातार बारिश के बीच तंबाकू को छेबना-सुखाना और बचाना मुश्किल है। लॉकडाउन की वजह से व्यापारी माल खरीदने नहीं आ रहे हैं। करोड़ों की पूंजी दाव पर है। कर्मयोगियों का हाथ कलेजे पर है।
राजखंड लॉकडाउन में सोशल डिस्टेंस का पालन करते हुए तंबाकू टांगने-सुखाने व गांठ बनाने में आसपास के गांवों के चार हजार लोगों को रोजगार दे रहा है। जो कल तक मजदूर थे, वे आज भाड़े की जमीन पर खेती कर मिट्टी से सोना उगाने वाले किसान बन गए हैं। करीब 2000 बीघा में तंबाकू की खेती करने वाले किसानों को उन्हीं खेतों में उपहार में मक्का, सरसों, आलू, लहसुन व धनिया की फसलें मिली हैं।
राजखंड के रामखेतारी निवासी अशोक ठाकुर के दरवाजे के सामने से सीतामढ़ी के रुन्नीसैदपुर की सीमा आरंभ होती है। राजखंड, रुन्नीसैदपुर और मेहसौल में खेती करने वाले अशोक बताते हैं कि गेहूं का रिकार्ड उत्पादन हुआ है। चार बीघा में तंबाकू की फसल बहुत अच्छी रही। तंबाकू के पत्ते काटने, छेबने, सूखाने-टांगने में रोजाना आठ मजदूरों को काम दे रहे हैं। कृष्णकांत शाही ने दो एकड़ में तम्बाकू की खेती की, उनके दरवाजे पर चार मजदूर हैं।

प्रति बीधा 40 से 60 हजार लागत
 बेचन महतो बताते हैं कि तंबाकू का खेत तैयार करने में प्रति कट्ठा दो हजार रुपये की लागत आती है, जिसमें करीब एक हजार मजदूर पर खर्च होता है। एक बीघा पर 40 हजार रुपये पूंजी लगानी पड़ती है। जो किसान भाड़े पर एक से डेढ़ हजार रुपये प्रति कट्ठा जमीन लेकर तंबाकू उगाते हैं, उन्हें प्रति एकड़ 60 हजार रुपये पूंजी लगानी पड़ती है। हालांकि उनके परिवार के पांच-छह सदस्य दिन-रात खेतों में काम कर भरपूर फसल उगाते हैं। चार बीघा में तंबाकू की खेती करने वाले फूलटून महतो बताते हैं कि गांव के 90 प्रतिशत लोग अपना पक्का मकान बना चुके हैं। कोई दस तो कोई 20 बीघा में खेती करता है। जिसके पर एक कट्ठा जमीन थी, वह चार बीघा का मालिक है।

कई फसलों की सौगात
बेचन महतो बताते हैं कि तंबाकू के लिए खेत तैयार करने पर कई फसलें सौगात में मिलती हैं। तंबाकू के खेत में आलू, धनिया, सरसों व लहसुन का उत्पादन होता है, जिसे बेचकर अच्छी आय होती है। खेत की उर्वरा शक्ति इतनी बढ़ जाती है कि तम्बाकू काटकर बगैर खाद के मक्का-धान की खेती होती है। लागत काटकर तंबाकू से करीब दो क्विंटल प्रति कट्ठा गेहूं के बराबर आमदनी होती है।

 

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