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सरहद की रक्षा कर चुके पूर्व सैनिकों की जमीन का नहीं सुलझ रहा मामला

मुजफ्फरपुर में पूर्व सैनिकों को अपनी पुश्तैनी जमीन पर कब्जे और सरकारी सहायता की कमी का सामना करना पड़ रहा है। 25% पूर्व सैनिकों की जमीन पर अवैध कब्जा है। स्थानीय प्रशासन की अनदेखी और मिलिट्री स्टेशनों...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुजफ्फरपुरMon, 17 Feb 2025 05:41 PM
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सरहद की रक्षा कर चुके पूर्व सैनिकों की जमीन का नहीं सुलझ रहा मामला

मुजफ्फरपुर। सर्द बर्फीले पहाड़ से लेकर तपती रेत तक पर लेटकर दिन-रात सरहद की रक्षा करते रहे। माटी का कर्ज अदा कर एक दिन जब गांव लौटे तो पुश्तैनी जमीन पर कब्जा कर लिया गया था। जिले के करीब एक चौथाई पूर्व सैनिक इस समस्या से जूझ रहे हैं। उनका कहना है कि दफ्तरों की खाक छान रहे हैं, लेकिन जमीन विवाद का मामला नहीं सुलझ रहा है। मोहल्ले में सड़क, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं की अनदेखी की जा रही है। मिलिट्री स्टेशन हेडक्वार्टर से लेकर स्थानीय प्रशासन के स्तर पर उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया जाता। इससे उनमें गहरी निराशा है।

मुजफ्फरपुर में 8534 पूर्व सैनिक (आर्मी, वायु व नौ सेना) जिला सैनिक कल्याण बोर्ड से रजिस्टर्ड हैं। इसके अधीन मुजफ्फरपुर सहित सीतामढ़ी व शिवहर जिले के भी पूर्व सैनिक आते हैं। कुल मिलाकर इनकी संख्या करीब 11 हजार है। 20 साल से अधिक समय तक बॉर्डर और अन्य संवेदनशील जगहों पर सेवा देने वाले पूर्व सैनिकों को अपने गृह क्षेत्र में परेशानियां झेलनी पड़ रही हैं। जिले के करीब 25 प्रतिशित से अधिक पूर्व सैनिक जमीन विवाद से जूझ रहे हैं। उनकी जमीन पर अवैध कब्जा है। इसके अलावा सेना से मिलने वाली सुविधाओं में कटौती हो गयी है। ट्रेनों में मिलने वाले कोटा को भी बंद कर दिया गया है। मिलिट्री स्टेशन हेडक्वार्टर से भी इन दिनों संवाद नहीं हो रहा है, जिससे समस्याओं का समाधान नहीं हो पा रहा है।

रामचंद्र चौधरी समेत कई पूर्व सैनिकों का कहना है कि बिहार सरकार के अधिकतर विभागों में इन्हें आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है। किसी काम के लिए जाने पर जिला प्रशासन के विभिन्न कार्यालयों में अधिकारियों का रवैया अच्छा नहीं रहता। हालांकि, इनके सिविल डिस्प्यूट के निबटारे के लिए जिले में सैनिक हेल्प डेस्क स्थापित करने की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। कई पूर्व सैनिकों ने बताया कि लंबे समय तक घर पर नहीं होने की वजह से उनकी पुश्तैनी जमीन पर दूसरे लोगों ने कब्जा जमा लिया। इसको लेकर हिंसक झड़प तक की घटनाएं भी हो चुकी हैं, लेकिन स्थानीय थाना पुलिस इसमें रुचि नहीं लेता है। बताया कि बहुत सारे लोग शहर में गोबरसही के डुमरी रोड में घर बनाकर रह रहे हैं। मोहल्ले की सड़क पर जलजमाव रहता है। शिकायत के बावजूद प्रशासन सुन नहीं रहा है।

मिलिट्री स्टेशन हेडक्वार्टर से संवाद नहीं :

अजय कुमार शर्मा, मनोज कुमार सिंह उर्फ मन्नु व अन्य ने बताया कि कुछ साल से मिलिट्री स्टेशन से भी संवाद नहीं हो रहा है। इससे उनकी सर्विस संबंधित कार्यों में भी दिक्कतें आ रही हैं। अभी अधिकतर कार्य ऑनलाइन हो चुके हैं, लेकिन ज्यादातर पूर्व सैनिक तकनीकी रूप से दक्ष नहीं हैं, जिससे दिक्कत होती है। बताया कि उनके इलाज के लिए मुजफ्फरपुर में एक ईसीएचएस के अधीन पॉली क्लीनिक है। लेकिन, यहां की व्यवस्था सही नहीं है। चिकित्सकों की संख्या कम है। सभी दवा उपलब्ध नहीं है। पैथो लैब नहीं है। एमआरआइ, सिटी स्कैन की व्यवस्था पॉली क्लीनिक में नहीं है। यह पूर्व सैनिकों को टाइअप निजी अस्पताल से कराना होता है।

लौटाना पड़ा जनऔषधि काउंटर का लाइसेंस :

वायु सेना से रिटायर पूर्व सैनिक आनंद कुमार ने बताया कि पूर्व सैनिकों को जनऔषधि काउंटर के लिए केंद्र सरकार लाइसेंस दे रही है। मुजफ्फरपुर में सात पूर्व सैनिकों को मिला भी है। लेकिन, बिहार सरकार की नीति की वजह से सातों को लाइसेंस लौटाना पड़ा। कहा कि वे मेडिकल कोर में 30 वर्षों तक फॉर्मासिस्ट की नौकरी किये। ओटी सहायक रहे। लेकिन, जनऔषधि काउंटर के लिए बिहार सरकार द्वारा जारी बी-फार्मा व डी फार्मा की डिग्री होनी चाहिए। पूर्व नौ सैनिक मनोज कुमार सिंह उर्फ मन्नु ने कहा कि ट्रेनों में मिलने वाली कोटा को चालू करना चाहिए। वर्तमान में सिर्फ अवध असम में एक बोगी है।

गोबरसही में अब तक नहीं बना शहीद स्मारक :

सेवानिवृत सैनिकों ने कहा कि गोबरसही में शहीद पूर्व सैनिकों की याद में एक स्मारक का निर्माण होना था। तत्कालीन एसएसओ कर्नल नीरज कुमार ने प्रस्ताव भी भेजा था। लेकिन, अबतक यह फाइल कहां दबी है, उनलोगों को इसकी जानकारी नहीं है। बताया कि मुजफ्फरपुर में सेना की सिर्फ 154 एकड़ जमीन डिफेंस ए वन लैंड श्रेणी की है। इसमें से पूर्व सैनिकों ने अपने कार्यालय के लिए कुछ जमीन की मांग की थी। उस वक्त देने का वादा भी किया गया था, लेकिन अबतक मंजूरी नहीं मिल सकी। इसके कारण पूर्व सैनिकों के संघ का स्थायी कार्यालय मुजफ्फरपुर में नहीं है। इसके अलावा जिले में सैनिक रेस्ट हाउस भी नहीं है, जिससे दूसरे राज्यों से आये पूर्व सैनिकों को ठहरने में दिक्कत होती है।

वायु सेना से रिटायर पूर्व सैनिक आनंद कुमार ने बताया कि अन्य राज्यों में पूर्व सैनिकों को राज्य सरकार केंद्र सरकार की नीति के आधार पर नौकरियों में आरक्षण दे रही है। लेकिन, बिहार सरकार अबतक पूर्व सैनिकों को सिर्फ सैप पुलिस और बिहार पुलिस में चालक की नौकरी दे रही है। उन्होंने बिहार सरकार से आरक्षण देने की मांग की। सेवानिवृत फौजियों ने पूर्व वायु सैनिक मनोज कुमार सिंह के प्रयासों की सराहना की। कहा कि वे अबतक पांच हजार से अधिक पूर्व सैनिकों के जीवन प्रमाण पत्र की प्रक्रिया पूरा कराने में मदद कर चुके हैं।

बोले जिम्मेदार :

मेरी पोस्टिंग कुछ माह पूर्व ही हुई है। पूर्व सैनिकों से मिले आवेदनों का कल्याण कार्यालय द्वारा त्वरित निष्पादन कराता हूं। पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को कल्याणकारी योजनाओं का लाभ दिलवाया हूं। सैनिकों से जुड़ी सिविल समस्याओं पर मिलिट्री स्टेशन हेडक्वार्टर और जिला प्रशासन से समन्वय स्थापित कर निदान निकालने का प्रयास जारी है।

-विंग कमांडर यूके त्रिपाठी, जिला सैनिक कल्याण पदाधिकारी

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