डॉ. मधुकर हिंदी भाषा साहित्य के समर्थ लेखक
डॉ. महेंद्र मधुकर के जन्मदिन पर आयोजित समारोह में उनके उपन्यासों में आधुनिकता और प्राचीन मान्यताओं के संगम की चर्चा की गई। डॉ. पूनम सिंह ने उनके लेखन की भाषा के सौंदर्य की सराहना की। समारोह में कवियों...
मुजफ्फरपुर, प्रमुख संवाददाता। डॉ. महेंद्र मधुकर के उपन्यासों में आधुनिकता बोध और प्राचीन मान्यताओं का अद्भुत संगम है। भाषा का सौंदर्य भी इनके लेखन को सबसे अलग करता है। ये बातें शनिवार को डॉ. महेंद्र मधुकर के जन्मदिन पर आयोजित समारोह में डॉ. पूनम सिंह ने कही।
मदर टेरेसा विद्यापीठ, मृणाल कला मंच, कविता स्मृति न्यास, प्रस्तावना विचार गोष्ठी के तत्वावधान में आयोजित वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. महेंद्र मधुकर के जन्मोत्सव पर जुटे कवियों, लेखकों, संस्कृतिकर्मियों तथा शुभचिंतकों ने अपनी शुभकामनाएं दीं। डॉ. मधुकर के व्यक्तित्व पर चर्चा करते हुए उन्हें हिंदी भाषा साहित्य का समर्थ लेखक बताया।
सोनी सुमन की सरस्वती वंदना के बाद उपस्थित साहित्यकारों ने डॉ. मधुकर की पुस्तक छाप तिलक सब छीनी का लोकार्पण किया। मुख्य अतिथि डॉ. संजय पंकज ने कहा कि महेंद्र मधुकर ने हिंदी साहित्य की तमाम विधाओं को अपनी रचनाओं में स्थान दिया है। डॉ. विजय शंकर मिश्र ने कहा कि मधुकर जी की वाचन कला और सृजन कला दोनों ही प्रभावित करती है। डॉ. चितरंजन कुमार ने कहा कि समाज के अनछुए पहलुओं को मधुकर जी ने अपने उपन्यासों में बारीकी से पहचाना है और रेखांकित किया है।
रचना की यात्रा यातना की यात्रा
डॉ. मधुकर ने कहा कि रचना की यात्रा यातना की यात्रा है। एक रचनाकार जब जीवन के तमाम अनुभवों से गुजरता है तो उसके भीतर से हर्ष विषाद और सुख दुख आदि तमाम भाव प्रकट होते हैं। मधुकर जी ने अपने प्रसिद्ध गीत बूंद बूंद होकर भी ताल में नहीं है, मन बंधा हुआ है पर जाल में नहीं है, सुनाकर वातावरण को गीतमय कर दिया। आयोजन में सोनाली समदर्शी की काव्य पुस्तक भूमिजा का भी लोकार्पण किया गया। एनबीआई की चित्रकार काजल मेहता, विनीता कुमारी, कोमल कुमारी ने मधुबनी पेंटिंग तथा महेंद्र मधुकर के पोट्रेट को देखकर अपनी शुभकामनाएं व्यक्त कीं। समारोह के दूसरे सत्र में आयोजित कविगोष्ठी में काव्य पाठ करने वालों में संजय पंकज, पूनम सिंह, विनोद कुमार सिन्हा, केके चौधरी, उदय नारायण सिंह, विजय शंकर मिश्र, वंदना विजय लक्ष्मी, सोनाली समदर्शी, हरिकिशोर प्रसाद सिंह, बीके मल्लिक, प्रेमकुमार वर्मा, पंखुरी सिन्हा, सिबगतुल्लाह हमीदी, रमेश ऋतंभर, लोकनाथ मिश्र, ऋतुराज राज, गोपाल फलक, सविता राज, सोनी सुमन, आरती, मिलन कुमार, मानस, मौली आदि महत्वपूर्ण रहे। स्वागत संबोधन डॉ. मधुकर के सुपुत्र शुभेंदु अमिताभ, संचालन विजय शंकर मिश्र तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. सुनीति मिश्र ने किया।
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