चुनौतियों के बीच केंद्र पर सेवा दे रहीं आंगनबाड़ी सेविकाएं
बच्चों को पोषाहार पहुंचाने से लेकर गर्भवती महिलाओं के पोषण का जिम्मा, मगर मजदूरी मजदूरों से भी कम। यह हाल है जिले के आंगनबाड़ी केंद्रों की सेविका और सह
मुजफ्फरपुर। मुजफ्फरपुर जिले में सभी प्रखंड मिलाकर 10 हजार से अधिक आंगनबाड़ी सेविकाएं और सहायिकाएं हैं। इतनी बड़ी संख्या में आंगनबाड़ी केन्द्रों को चलाने वाली ये महिलाएं वर्षों से समस्याओं से जूझ रही हैं। मजदूर से भी कम मानदेय पा रहीं सेविकाओं का कहना है कि हर तरह के काम में हमारी ड्यूटी लगा दी जाती है, मगर हमारी समस्याओं के समाधान पर किसी का ध्यान नहीं है। सेविकाओं को सात हजार तो सहायिकाओं को 4 हजार रुपया मानदेय मिलता है। सेविकाएं कहती हैं कि प्रतिदिन के हिसाब से यह 210 रुपया होता है। इतनी कम मजदूरी तो एक मजदूर को भी नहीं मिलती है। चन्द्रलेखा, सिम्पी कुमारी समेत कई सेविकाओं की पीड़ा है कि महंगाई के दौर में इस मानदेय में हमलोग अपना और बच्चों का पेट भी नहीं भर सकते हैं।
सामान खरीदने के लिए बाजार दाम से कम मिलते पैसे
आंगनबाड़ी सेविकाएं कहती हैं कि मानदेय की समस्या के अलावा पोषाहार की राशि भी एक बड़ी समस्या है। बाजार भाव कुछ भी हो, लेकिन हमें सरकार द्वारा निर्धारित दर पर ही सामान खरीदना पड़ता है। स्थिति यह है कि सभी सामान का बाजार में जो मूल्य है, उससे 30-40 फीसदी कम राशि मिलती है। बाजार में आलू का भाव भले ही 10-15 रुपए हो, मगर हमें सात रुपए ही मिलते हैं। यही हाल तेल, मसाला समेत अन्य सामानों का है। सेविकाएं कहती हैं कि इस राशि में हम किस तरह पोषाहार पूरा करें। इतनी चुनौतियों के बीच भी काम करते हुए जब मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो हमलोगों का मनोबल टूटता है।
सभी काम ऑनलाइन, मगर प्रशिक्षण नहीं
अधिकतर सेविकाएं आठवीं या 10वीं पास हैं। वहीं सहायिकाएं तो इनसे भी कम पढ़ी-लिखी हैं। सेविकाएं कहती हैं कि पहले आठवीं पास का ही चयन होता था। बाद में 10वीं पर भी बहाली हुई। अब हमें सभी काम ऑनलाइन करने का निर्देश है, जबकि न हमारे पास स्मार्ट फोन है और न ऑनलाइन काम करने का किसी तरह का प्रशिक्षण दिया गया है। मोबाइल छह-सात साल पहले मिला था, जो दो साल चलाने के बाद खराब हो गया। अभी हमें मोबाइल रिचार्ज के लिए सालाना दो हजार रुपए मिलते हैं, जबकि हर महीने कम से कम 299 का रिचार्ज करना पड़ता है। सेविकाओं ने कहा कि जो महिलाएं आठवीं-10वीं पास हैं, वे कैसे ऑनलाइन रिकॉर्ड और सारा काम बिना प्रशिक्षण के कर सकती हैं। यहां तक कि राशन का रिकार्ड भी मोबाइल में रखना पड़ता है।
बर्तन के नाम पर खिचड़ी वाला एक पतीला ही उपलब्ध
सेविकाओं की एक बड़ी समस्या केन्द्रों पर पोषाहार बनाने की भी है। उन्होंने कहा कि दो साल पहले मेनू बदला गया। इससे पहले केवल खिचड़ी मिलती थी और उसके लिए बर्तन के नाम पर एक पतीला था। आज भी वही एक पतीला है, जिसमें एक-एक करके सारा खाना बनाना होता है। केन्द्रों पर बर्तन की इतनी कमी है कि हम सभी परेशान रहते हैं। वर्ष 2008 के बाद बर्तन मिला ही नहीं है। कई आंगनबाड़ी केन्द्रों पर तो बर्तन उपलब्ध ही नहीं है। कहीं-कहीं खुद ही पैसा लगाकर एक-दो बर्तन खरीद कर रखा गया है। बच्चों को पानी पीने के लिए गिलास तक नहीं है। महीने में 12 दिन फल देना होता है, जिसके लिए 280 रुपए ही मिलते हैं। हमलोगों से इसका भी जीएसटी मांगा जाता है।
चयनमुक्त करने की दी जाती है धमकी
सेविकाओं ने कहा कि चाहे जनगणना हो या अन्य काम, सबमें ड्यूटी लगा दी जाती है। एक तरफ आदेश है कि हमें अन्य कामों में नहीं लगाया जाना है और दूसरी तरफ इस तरह के काम भी लिए जाते हैं। यही नहीं, हर समय हमें चयनमुक्त करने की धमकी मिलती रहती है। यह हमारा मानसिक शोषण है।
सरकारी काम करने के बावजूद राज्यकर्मी नहीं
आंगनबाड़ी सेविकाओं ने कहा कि सरकार जो भी जिम्मेवारी देती है, उसका हमलोग बखूबी निर्वहन करते हैं। लेकिन, दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि हमलोगों को राज्यकर्मी का दर्जा नहीं है। लंबे समय से हमारी मांगें अनसुनी की जा रही हैं। अगर हम किसी तरह की शिकायत भी करते हैं तो कहा जाता है कि आपको पद से हटा दिया जाएगा। आंगनबाड़ी सहायिकाओं ने कहा कि हमलोगों को महज चार हजार रुपया मिलता है, मगर हमसे 40 हजार मानदेय वाला काम कराया जाता है। बच्चों के बीमार पड़ने या अन्य किसी तरह की समस्या होने पर हमें कोई मदद नहीं मिलती है। हम कथित तौर पर बस नौकरी करते हैं।
मानदेय वृद्धि पर किया जाए विचार
जिले में 5600 सेविकाएं और 4800 साहायिकाएं कार्यरत हैं। इनकी बदौलत सरकार कई तरह की कल्याणकारी योजनाओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाती है। चाहे वह स्वास्थ्य विभाग का काम हो या जनगणना। अधिकारी यह नहीं देखते कि इन्हें इनके काम का क्या पारिश्रमिक दे रहे हैं। घर खर्च, बच्चों की पढ़ाई, भाड़ा समेत कई खर्च वहन करने पड़ते हैं। एक मजदूर भी एक दिन में पांच सौ रुपए कमा लेता है। पूरे महीने को मिलाया जाए तो 15 हजार उनका मासिक होता है। वहीं, दूसरी तरफ हमें सात हजार मानदेय मिल रहा है। सरकार को इसपर विचार करना चाहिए। मानदेय के लिए लगातार सेविका-सहायिकाएं संघर्ष करती आ रही हैं, मगर इनकी जगह दूसरे विभाग के कर्मियों का मानदेय बढ़ाया जा रहा है, जो न्यायोचित नहीं है।
-प्रतिमा कुमारी, प्रदेश अध्यक्ष, बिहार प्रदेश आंगनबाड़ी कर्मचारी संघ।
बाजार दर पर मिले पोषाहार राशि
अन्य राज्यों की आंगनबाड़ी सेविका और सहायिकाओं को जितना मानदेय मिलता है, उतना मानदेय बिहार में हमलोगों को नहीं मिलता है। हमलोगों का मानदेय बढ़ाया जाना चाहिए। उच्च तकनीक युक्त मोबाइल उपलब्ध कराया जाना चाहिए, ताकि ऑनलाइन काम करने में सहूलियत हो। पोषाहार की राशि बाजार मूल्य के अनुसार दी जानी चाहिए, ताकि केन्द्र पर बच्चों को पोषाहार देने में परेशानी न हो। सेविकाओं को समय-समय पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इससे उनकी कार्यक्षमता का विकास होगा। केन्द्र पर वाईफाई की सुविधा मिलनी चाहिए, ताकि डाटा के लिए जेब से पैसे न खर्च करने पड़े। कभी-कभी हमलोगों का मोबाइल काम नहीं करता है, उस दौरान विभाग के कर्मचारी और अधिकारी हमलोगों को प्रताड़ित करते हैं।
-चंद्रलेखा कुमारी, जिलाध्यक्ष, बिहार प्रदेश आंगनबाड़ी कर्मचारी संघ।
सेविका और सहायिकाओं का मानदेय बढ़ाने की मांग सीएम के समक्ष रखूंगा
आंगनबाड़ी सेविकाएं बच्चों की प्रथम शिक्षिका होती हैं, वे पढ़ाती ही नहीं, बल्कि बच्चों को कुपोषण से भी बचाती हैं। आंगनबाड़ी केन्द्र की सेविका और सहायिकाओं ने कोरोना काल में सराहनीय काम किया था। स्वास्थ्य विभाग के कर्मियों के साथ वैक्सीनेशन में काफी सक्रिय रही थीं। सरकार सेविका और सहायिकाओं का मानदेय धीरे-धीरे बढ़ा रही है। आने वाले दिनों में और बेहतर होगा। उनकी ओर से मानदेय बढ़ाने की जो मांग की जा रही है, मैं उसे मुख्यमंत्री के समक्ष रखूंगा और उनकी परेशानी से अवगत कराऊंगा।
-केदार प्रसाद गुप्ता, पंचायती राज मंत्री बिहार सरकार।
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