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हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा

मुंगेर विश्वविद्यालय में शुक्रवार को विश्व हिन्दी दिवस पर 'हिन्दी शोध की संभावनाएं एवं चुनौतियां' विषय पर परिचर्चा हुई। डा. शिव कुमार मंडल ने कहा कि हिन्दी न केवल भारत की भाषा है, बल्कि वैश्विक स्तर...

Newswrap हिन्दुस्तान, मुंगेरSat, 11 Jan 2025 12:44 AM
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मुंगेर, हिन्दुस्तान संवाददाता। मुंगेर विश्वविद्यालय में शुक्रवार को विश्व हिन्दी दिवस पर हिन्दी शोध की संभावनाएं एवं चुनौतियां विषय पर परिचर्चा हुई। अध्यक्षता विभागाध्यक्ष डा.शिव कुमार मंडल ने की। कार्यक्रम का आरंभ विभागाध्यक्ष के स्वागत भाषण से हुआ। मौके पर उन्होंने कहा कि आज 10 जनवरी है । इस तिथि को हम विश्व हिन्दी दिवस के रुप मनाते हैं। हिन्दी भाषा न केवल देश के अधिकांश जनता की भाषा है बल्कि विश्व के अधिकांश देशों में बोली और समझी जानेवाली भाषा है । बदलते परिदृश्य में हिन्दी संसार की तीसरी सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा है । इसका साहित्य काफी समृद्ध है । इस भाषा में नित्य नये शोध हो रहे हैं । वैश्विक परिदृश्य में हिन्दी में प्रवासी साहित्य का भी विस्तार हुआ है ।उन्होंने कहा कि भाषाविज्ञान ,हिन्दी भाषा , लोक साहित्य , क्षेत्रीय बोलियां आदि ऐसे विषय है जिसमें शोध किए जा सकते हैं ।

डॉ मंडल ने कहा कि मुंगेर विश्वविद्यालय में पहली बार शोध की शुरुआत हुई है। अल्प संसाधन के बाबजूद शोधार्थियों के पीएचडी कोर्स वर्क सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए । यहां के पीजी हिन्दी विभाग लगातार शैक्षणिक व शोध की दिशा में अग्रसर है। कार्यक्रम में विवि हिन्दी विभाग के वरीय प्राध्यापक प्रो हरिश्चन्द्र शाही ने सभी शोध पर्यवेक्षकों का परिचय कराया । डा.सुनील कुमार ने परिचर्चा का बीज वक्तव्य देते हुए शोध की संभावनाएं एवं चुनौतियां की ओर संकेत किया। डॉ बृजेंद्र कुमार ब्रजेश ने अपने वक्तव्य में भक्तिकालीन साहित्य पर शोध की संभावनाओं पर प्रकाश डाला। डॉ अभय कुमार ने अपने व्याख्यान में कहा कि मुंगेर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा शोध कार्य की शुरुआत हो रही है। यह अच्छी पहल है। मौके पर प्रो हरिश्चंद्र शाही ने कहा कि हिन्दी में लोक भाषाओं पर शोध का व्यापक स्पेस है। खोजे गए तथ्य पर फिर से नई दृष्टि से विचार करना इसकी सार्थकता है। सेमिनार में उपस्थित डॉ अजय प्रकाश ने कहा कि शोधार्थी यह ध्यान रखें कि संदर्भ को कैसे उल्लेखित करना है। इससे संबंधित दिक्कतें आपके मूल कार्य को भी साहित्यिक चोरी की श्रेणी में ला सकती है। डॉ योगेन्द्र ने भी अपने विचार रखे।

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