झूलनोत्सव पर गीत-संगीत और अध्यात्म की त्रिवेणी पर कोरोना का साया
मन को हर्षित करने वाले सावन के महीने में इसबार कोरोना संक्रमण से मायूसी और भय का माहौल है। शहर में बढ़ते संक्रमण के मामलों ने झूलनोत्सव के उल्लास को फीका कर दिया...
मन को हर्षित करने वाले सावन के महीने में इसबार कोरोना संक्रमण से मायूसी और भय का माहौल है। शहर में बढ़ते संक्रमण के मामलों ने झूलनोत्सव के उल्लास को फीका कर दिया है।
शहर की ठाकुरबाड़ी शाम होते ही रंग-बिरंगे विद्युत बल्वों से जगमगा उठता था। झूला पर झूलते कान्हा की मनोरम झांकी के बीच उनके दरबार में गीत-संगीत और अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित होती थी। देर रात तक ठुमरी, दादरा, झूला गीत और सावन की कजरी सुनने श्रोता जमे रहते थे। लेकिन इसबार कोरोना संक्रमण के कारण ठाकुरबाड़ियां सुनसान है।
सांस्कृतिक उत्सव पर लगा ग्रहण: सावन के प्रत्येक सोमवार को शिवालय में भक्तों के जमघट की जगह वीरानी है। कोरोना ने सांस्कृतिक व अध्यात्मिक उत्सव पर ग्रहण लगा दिया है। शहर में प्रेम मंदिर, राजा साहब की ठाकुरबाड़ी, राम-जानकी मंदिर सहित दो दर्जन से अधिक ठाकुरबाड़ियों और मंदिरों में कहीं पन्द्रह दिनों तक तो कहीं सात दिनों तक झूलनोत्सव की धूम मची रहती थी।
क्या कहते हैं आयोजक: बड़ा बाजार स्थित प्रेम मंदिर में 15 दिनों तक झूलनोत्सव धूमधाम से मनाया जाता था। मंदिर की सजावट देखते ही बनती थी। शाम होते ही झूलन की मनोरम झांकी के बीच शहर के तमाम शास्त्रीय गायक की महफिल सजती थी। ठुमरी, दादरा, कजरी और झूला गीत की रस धारा में श्रोता देर रात तक डुबकियां लगाते रहते थे। लेकिन इसबार मंदिर सुनसान है। प्रेम मंदिर के आयोजक शरत सिंह कहते हैं कि कोरोना के कारण इस बार झूलनोत्सव पर संगीत कार्यक्रम स्थगित कर दिया गया है। राम-जानकी ठाकुरबाड़ी कौड़ा मैदान में झूलन पर पिछले सौ साल से शास्त्रीय गायन-वादन की परंपरा चली आ रही थी। आयोजक रंजीत कुमार सिंह बताते हैं कि झूलन पर संगीत की महफिल पहली बार नहीं सजी है।
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