पिछले लगभग 8 महीने से कुलपति के नीतिगत निर्णय लेने एवं वित्तीय शक्ति पर लगी हुई है रोक
आस में मुंगेर, एक संवाददाता। पिछले लगभग आठ महीने से मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति के नीतिगत निर्णय लेने और वित्तीय शक्तियों पर रोक लगी हुई है। इसक
मुंगेर, एक संवाददाता। पिछले लगभग आठ महीने से मुंगेर विश्वविद्यालय के कुलपति के नीतिगत निर्णय लेने और वित्तीय शक्तियों पर रोक लगी हुई है। इसके चलते विवि के शैक्षणिक और प्रशासनिक कार्य ठप पड़े हुए हैं, जिससे विश्वविद्यालय का विकास लगभग अवरुद्ध हो गया है। विश्वविद्यालय सूत्रों के अनुसार, विश्वविद्यालय के कई महत्वपूर्ण कार्य केवल राजभवन की अनुमति के अभाव में रुके हैं। रूटीन कार्यों के अलावा हर नीतिगत निर्णय के लिए विश्वविद्यालय को राजभवन का मुंह देखना पड़ता है। अधिकारियों का कहना है कि, राजभवन से भी त्वरित अनुमति नहीं मिल रही, जिससे स्थिति और जटिल हो रही है। विश्वविद्यालय में छात्र संघ एवं सीनेट चुनाव, पिछले कई वर्षों से इंतजार कर रहे अनुकंपा आश्रितों की नियुक्ति, प्रोन्नति से वंचित रह गए शिक्षकों की प्रोन्नति, प्रोन्नति प्राप्त शिक्षकों एवं कर्मचारियों का वेतन निर्धारण, शिक्षकों एवं कर्मचारियों की नियुक्ति तथा स्थानांतरण, स्नातकोत्तर विभागों में पदों के सृजन को लेकर प्रक्रियाएं पूर्ण करने के लिए विभिन्न वैधानिक कमेटियों की बैठक बुलाने, विकास कार्यों के लिए निविदा निकालने आदि जैसे कई कार्य नियमित कुलपति के नहीं रहने से राजभवन की अनुमति के बिना लंबे समय से रुके हुए हैं। हालांकि, इन कार्यों की अनुमति के लिए राजभवन को विश्वविद्यालय द्वारा कई बार पत्र भेजा जा चुका है, लेकिन अभी तक अनुमति नहीं मिली है।
वहीं, विश्वविद्यालय के कई शिक्षकों एवं विशेषज्ञों ने कहा कि, नियमित कुलपति की नियुक्ति के साथ-साथ प्रभारी कुलपति की नियुक्ति भी राजभवन से ही होती है। इसके बाद भी विश्वविद्यालय के शैक्षणिक विकास एवं प्रशासनिक हित के विरुद्ध राजभवन द्वारा प्रभारी कुलपति को नीतिगत निर्णय एवं वित्तीय अधिकार देने में अनावश्यक देरी किया जाता है, जिसके कारण कई आवश्यक कार्यों के निष्पादन में अनावश्यक विलंब होता है और हर तरह का विकास प्रभावित होता है। राज भवन के स्तर पर ऐसी व्यवस्था नहीं दिखाई देती है की एक कुलपति कार्यकाल समाप्त होते-होते नए नियमित कुलपति का चयन कर लिया जाए और उनकी नियुक्ति की जाए। इससे विश्वविद्यालय का संचालन बिना अवरोध के सुचारू रूप से होते रहता। प्रभारी कुलपति के नीतिगत निर्णय लेने पर कई महीनो तक रोक लगे रहने से विश्वविद्यालय लगभग पंगु हो जाता है। क्योंकि, किसी भी कार्य के लिए राजभवन से त्वरित अनुमति मिलना मुश्किल होता है। हालांकि, यह रोक कितना सही है और कितना गलत यह विशेषज्ञों के मंथन का विषय है, किंतु इससे यह तो निश्चित है कि, कुलपति के नीतिगत निर्णय पर रोक लगाने से विश्वविद्यालय लगभग गतिहीन हो जाता है।
कहते हैं अधिकारी:
कुलपति की नियुक्ति एवं उनके नीतिगत निर्णय लेने तथा वित्तीय अधिकारों पर रोक लगाने का क्षेत्राधिकार राजभवन के पास है। विश्वविद्यालय अपने कार्यों के लिए केवल राज भवन से अनुमति मांग सकता है। मुंगेर विश्वविद्यालय द्वारा भी कई कार्यो के निष्पादन के लिए राजभवन से अनुमति मांगी गई है और कई बार पत्र भेजा गया है। किंतु, अभी तक अधिकांश मामलों में अनुमति नहीं मिली है। इससे निश्चित रूप से तीन प्रकार का विकास प्रभावित होता है। आशा है कि, नए वर्ष में जल्द ही विश्वविद्यालय को नियमित कुलपति मिलेगा। इससे कई रुके हुए कार्य निपटाए जाएंगे।
-- कर्नल विजय कुमार ठाकुर, कुलसचिव,
मुंगेर विश्वविद्यालय, मुंगेर
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