गांधी जी के आदर्शों को अपनाकर नए समाज की रचना कर सकते हैं रचना
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में ‘गांधीवादी दृष्टिकोण से सामाजिक कार्य: संभावनाएं एवं चुनौतियां’ पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इसमें 170 शिक्षकों, शोधार्थियों और...
मोतिहारी,निप्र। महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी में ‘गांधीवादी दृष्टिकोण से सामाजिक कार्य: संभावनाएं एवं चुनौतियां विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी विश्वविद्यालय के गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग, सामाज कार्य विभाग तथा भारतीय गांधीवादी अध्ययन सोसायटी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित की गई। कार्यक्रम के संरक्षक कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव रहे, जबकि संयोजक प्रो. सुनील महावर थे। संगोष्ठी के दौरान उद्घाटन एवं समापन सत्रों के अतिरिक्त आठ तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया, जिनमें विभिन्न विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों, शिक्षाविदों व शोधार्थियों ने भाग लिया। संगोष्ठी में 170 शिक्षक, शोधार्थि, छात्र एवं विभिन्न संगठनों के प्रतिनिधि ने भौतिक एवं आभाषी माध्यम से अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए, जिनमें गांधीवादी सामाजिक कार्य, आर्थिक समानता, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास जैसे विषय शामिल थे। इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. जुगल किशोर दाधीच ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि गांधी जी के मूल्यों और सिद्धांतों की वजह से ही चंपारण आज भी जीवित है। उन्होंने कहा कि यदि हम गांधी के आदर्शों को अपनाएं, तो समाज की कुरीतियों को समाप्त कर एक नए समाज की रचना कर सकते हैं। प्रोफेसर रिपु सुदन सिंह राजनीति विज्ञान विभाग, लखनऊ ने गांधी द्वारा स्थापित आश्रमों की महत्ता पर प्रकाश डाला। प्रो. हिमांशु बौराई ने गांधी के समाज कल्याण में योगदान और उनके विचारों के समाज पर प्रभाव की चर्चा की। प्रो. अर्चना शर्मा पूर्व अधिष्ठाता, कला संकाय, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ने ‘विकास की अवधारणा पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भारत एक विकासशील देश है और हमें पाश्चात्य संस्कृति के प्रभावों को समझने की जरूरत है। मुख्य अतिथि प्रो. रजनीकांत पांडेय पूर्व कुलपति, सिद्धार्थ विश्वविद्यालय, कपिलवस्तु ने कहा कि गांधी जी ने संगठित समाज को ही संगठित राष्ट्र की नींव माना था। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और भारतीय विकास मॉडल की चर्चा करते हुए भारत को आत्मनिर्भर बनाने और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देने पर जोर दिया। उन्होंने गांधी को एक दूरदर्शी राजनेता बताते हुए ग्राम स्वराज के उनके स्वप्न की महत्ता पर प्रकाश डाला। समापन समारोह में स्वागत वक्तव्य संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ. जुगल किशोर दधीचि ने दिया। अंत में, संगोष्ठी के संयोजक प्रो. सुनील महावर ने धन्यवाद ज्ञापन किया और सभी प्रोफेसरों, शोधकर्ताओं, विद्वानों, प्रतिभागियों और अतिथियों की उपस्थिति की सराहना की।
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