शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण व समापन सत्र
मोतिहारी में आयोजित संगोष्ठी में विभिन्न शोधार्थियों ने शोध पत्र प्रस्तुत किए। कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव ने संस्कृत साहित्य और लोकमंगल की अवधारणा को आधुनिक संदर्भ में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि...

मोतिहारी, हि.प्र.। संगोष्ठी के दूसरे सत्र में विभिन्न शोधार्थियों द्वारा शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। संगोष्ठी का संचालन डॉ. बबलू पाल (सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग) ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन डॉ. जुगल किशोर दिधीच (अध्यक्ष, गांधी एवं शांति अध्ययन विभाग) ने दिया। कुलपति प्रो. संजय श्रीवास्तव का अध्यक्षीय संबोधन में संस्कृत साहित्य और लोकमंगल की अवधारणा को आधुनिक संदर्भों में स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि वेदों, उपनिषदों और गीता में वर्णित जीवन के सिद्धांत आज भी हमारे समाज के लिए मार्गदर्शक हैं। उन्होंने कहा कि भगवद्गीता के अष्टाध्यायी सिद्धांतों में जीवन के सभी पहलुओं को शामिल किया गया है, जो व्यक्तिगत आत्म-विकास के साथ-साथ सामाजिक उत्थान पर भी बल देते हैं। उन्होंने विशेष रूप से कर्मयोग और निष्काम कर्म की अवधारणा को समझाते हुए कहा कि यदि व्यक्ति सही मार्ग पर चले और अपने कार्यों को ईमानदारी और निष्ठा से करे, तो समाज का संपूर्ण कल्याण संभव है। उन्होंने कहा कि भारतीय संस्कृति में लोकमंगल की भावना पिछले 5000 वर्षों से निहित है, और आज के युवाओं को इन मूल्यों को आत्मसात करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि संस्कृत साहित्य केवल अतीत का गौरव नहीं है, बल्कि भविष्य की दिशा तय करने वाला अमूल्य ज्ञान भी है। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी ने संस्कृत साहित्य में निहित लोकमंगल की भावना को व्यापक रूप से उजागर किया और इसके आधुनिक संदर्भों पर गहन विमर्श किया। कार्यक्रम में वरिष्ठ विद्वानों, प्रोफेसरों और शोधार्थियों की सक्रिय सहभागिता ने इसे एक महत्वपूर्ण अकादमिक चर्चा मंच बना दिया।
लेटेस्ट Hindi News , बॉलीवुड न्यूज, बिजनेस न्यूज, टेक , ऑटो, करियर , और राशिफल, पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।