स्वतंत्रता संग्राम में सूरज नारायण ने निभाई थी सक्रिय भूमिका
भारत की आजादी में मिथिला के पुत्र शहीद सूरज नारायण सिंह के चर्चा के बैगर अधूरी है। मधुबनी जिला अंतर्गत पंडौल प्रखंड के नरपतिनगर गांव में 17 मई 1906 को एक निर्भीक, क्रांतिकारी, समाजवादी देशभक्त को...
भारत की आजादी में मिथिला के पुत्र शहीद सूरज नारायण सिंह के चर्चा के बैगर अधूरी है। मधुबनी जिला अंतर्गत पंडौल प्रखंड के नरपतिनगर गांव में 17 मई 1906 को एक निर्भीक, क्रांतिकारी, समाजवादी देशभक्त को जन्म दिया। उनके पिता स्व. गंगा सिंह एक संभ्रांत जमींदार थे। सूरज बाबू स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाने से लेकर किसान और मजदूरों के हित एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए जीवन पयंर्त समर्पित रहे। जानकार बताते हैं कि सकरी स्थित खादी भंडार के पास लूट व सरकारी डाक खजाने को लूटने में उनकी मुख्य भूमिका थी। वहीं 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन व क्रांतिकारी गतिविधियों का व्यापक प्रभाव था। जिसके कारण 1942 इन्हें मधुबनी वाट्सन स्कूल से बाहर होना पड़ा था। 1926 मे पटना मे युवा संघ के सदस्य थे। 1928 मे दरभंगा मे युवा संगठनकर्ता बने। हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी के सदस्य बने। तथा 1930 मे गांधीजी के सविनय अवज्ञा आंदोलन में भाग लेकर 6 माह की सजा भी काटी। 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के करांची अधिवेशन में दरभंगा जिले का प्रतिनिधित्व किया। तिरहुत षडयंत्र कांड एवं हाजीपुर डकैती में सूरज बाबू गिरफ्तार हुए।
बड़ी घटनाओं में सूरज बाबू हजारीबाग में पंडित राम नंदन मिश्र व जयप्रकाश नारायण को कंधे पर लेकर योगेंद्र शुक्ला, गुलाबी सुनार और शालिग्राम सिंह के सहयोग से जेल से फांदकर निकल गए। 21 अप्रैल 1973 को रांची के टाटा सिल्वे स्थित उषा मार्टिन रोप कारखाने के मुख्य द्वार पर अन्य मजदूरों के साथ अनशन पर बैठे थे।
1974 के सम्पूर्ण क्रांति, उसके हीरोज और जयप्रकाश नारायण के बारे में पूरी दुनिया जानती है, लेकिन जिस शख्स के मौत ने इस आंदोलन के शुरुआत में कैटेलिस्ट की भूमिका निभाई। वो शख्स मिथिला सपूत क्रांतिकारी स्वतंत्रता सेनानी श्री सूरज नारायण सिंह थे। 1973 मे भ्रष्ट सरकारी तंत्र और पूंजीपतियों ने मिलीभगत कर उनकी हत्या कर दी। वर्ष 2001 मे शहीद सूरज नारायण सिंह के नाम से डाक टिकट जारी किया गया था।
लाश पर लिपट कर रोते रहे जेपी: उनकी हत्या पर लोकनायक जयप्रकाश जी सूरज बाबू की लाश लिपट कर रोते हुए कहा मेरा दाहिना हाथ टूट गया। अंग्रेजों की सेना सूरज बाबू को नहीं मार सका। विचलित जेपी ने 1974 में एक बड़ा आंदोलन देश में खड़ा कर दिया। सूरज बाबू की हत्या से ही सत्ता परिवर्तन की शुरूआत हुई।
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