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मखाने को अमेरिकी टैरिफ की चुनौती तलाशने होंगे निर्यात के वैकल्पिक केंद्र

भारत से अमेरिका को हर साल 25-30 हजार मैट्रिक टन मखाना का निर्यात होता है। हाल ही में अमेरिकी टैरिफ में वृद्धि के कारण मखाना उत्पादक चिंतित हैं। जीआई टैग मिलने से मखाना की मांग बढ़ी है, लेकिन निर्यात...

Newswrap हिन्दुस्तान, मधुबनीSat, 5 April 2025 06:33 PM
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मखाने को अमेरिकी टैरिफ की चुनौती तलाशने होंगे निर्यात के वैकल्पिक केंद्र

 

मधुबनी। भारत से अमेरिका को हर साल 25 से 30 हजार मैट्रिक टन मखाना का निर्यात किया जाता है। वर्तमान में मखाने का निर्यात ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, रूस, अमेरिका आदि देशों में हो रहा है, लेकिन अमेरिका सबसे बड़ा उपभोक्ता है। इस कारण यहां के अधिकतर कारोबारी अपने उत्पाद को अमेरिका भेजने वाले रूट लाइन पर अधिक काम करते हैं। टैरिफ बढ़ने की घोषणा से मिथिलांचल से सीमांचल तक के मखाना उत्पादक व कारोबारी चिंतित हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार को व्यापार नीतियों में बदलाव कर निर्यात के वैकल्पिक केंद्र तलाशने होंगे। विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि चूंकि, मखाने के उत्पादन में 80 फीसदी हिस्सा बिहार का है। ऐसे में तात्कालिक तौर पर बहुत असर होता नहीं दिख रहा है।

जीआई टैग के बाद बढ़ी मखाने की मांग: 20 अगस्त 2022 को मिथिला मखाना को जीआई (जियोग्राफिकल इंडिकेशन) टैग मिला, जिससे इसकी अंतरराष्ट्रीय मांग में भारी बढ़ोतरी हुई। जीआई टैग मिलने के बाद मखाना की कीमतों में काफी उछाल आया और स्थानीय स्तर पर 600 से 800 रुपये प्रति किलो बिकने वाले मखाने की कीमत स्थानीय स्तर पर बढ़कर 1,200 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गईं। इस कारण उत्पादन और व्यापार में भी वृद्धि हुई लेकिन अमेरिका का टैरिफ प्लान इसकी कमर तोड़ सकता है। यदि बाजार का रूख अन्य देशों की ओर नहीं होता है तो काफी नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता ।

उत्पादन दोगुना बढ़ा पर मांग 10 गुना ज्यादा: पिछले पांच वर्षों में मखाने का उत्पादन दोगुना हो चुका है, लेकिन वैश्विक स्तर पर इसकी मांग 10 गुना तक बढ़ गई है। मिथिलांचल और कोसी क्षेत्र में करीब 30,000 एकड़ भूमि पर मखाना की खेती की जाती है। इससे हर साल 60,000 टन मखाना बीज और 24,000 टन लावा (तैयार मखाना) का उत्पादन होता है। इसमें केवल मधुबनी की सहभागिता अभी 45 प्रतिशत है। व्यवसायी परशुराम प्रसाद, मोहन कुमार, मुकेश कुमार, राजेश कुमार व अन्य ने बताया कि यदि अंतराष्ट्रीय बाजार में कुछ उथल पुथल होता है तो इसका सीधा असर यहां की अर्थव्यवस्था पर होगा।

फ्लेवर मखाना का बढ़ा बाजार: भारतीय व्यापारियों ने मखाना को और आकर्षक बनाने के लिए विभिन्न फ्लेवरों में इसे पैक कर निर्यात शुरू कर दिया है। मधुबनी में तीन दर्जन से अधिक स्थानों पर विभिन्न फ्लेवर में मखाने की पैकेजिंग हो रही है। कई कारोबारी सीधे अंतराष्ट्रीय बाजार से जुड़ गये हैं, जहां से विभिन्न फ्लेवर मखाना तैयार कर अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों में भेज रहे हैं। कृष्ण चंद्र प्रसाद, संकेत राज, उमेश कुमार बबलू, सुमन कुमार व अन्य ने बताया कि इससे मखाना का बाजार और विस्तृत हुआ है, लेकिन अमेरिकी टैरिफ बढ़ने से इस व्यापार पर असर पड़ सकता है।

नये बाजारों की जरूरत: उमेश कुमार बबलू व अन्य विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका पर अधिक निर्भरता भारतीय निर्यातकों के लिए नुकसानदायक हो सकती है। इसलिए यूरोप, मध्य पूर्व और एशियाई देशों में नए बाजार तलाशने की जरूरत है। अगर भारत को मखाना व्यापार को बचाना है, तो इसे अमेरिका के अलावा अन्य देशों में अपनी पकड़ मजबूत करनी होगी। सुमन, शैलेश व अन्य ने बताया कि अमेरिकी टैरिफ से मिथिला मखाना की कीमतें बढ़ने से निर्यात पर असर पड़ सकता है। हालांकि, जीआई टैग मिलने के बाद इसकी मांग बढ़ी है और उत्पादन में भी वृद्धि हुई है। भारतीय निर्यातकों के लिए जरूरी है कि वे नए बाजार खोजें और फ्लेवर मखाना जैसे नए प्रयोगों से वैश्विक प्रतिस्पर्धा में बने रहें। भारतीय मखाना व्यापारियों और उत्पादकों को नए बाजारों की तलाश करनी होगी। यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई देशों में मखाना की मांग बढ़ रही है, जो नए अवसर प्रदान कर सकते हैं। इसके अलावा, व्यापारियों को मखाना के मूल्यवर्धित उत्पादों जैसे फ्लेवर्ड, मसालेदार और रोस्टेड मखाना पर ध्यान देना होगा, जिससे वे प्रीमियम दाम पर उत्पाद बेच सकें और टैरिफ के प्रभाव को कम कर सकें।

निर्यात घटा तो कीमत में आएगी िगरावट

मिथिला और कोसी क्षेत्र के किसानों और व्यापारियों को इस बदलाव का सीधा असर झेलना पड़ सकता है। अगर निर्यात घटता है, तो स्थानीय बाजार में अधिक आपूर्ति होने से कीमतों में गिरावट आ सकती है, जिससे किसानों की आमदनी प्रभावित हो सकती है। सुनील पूर्वे, अमित कुमार, राकेश रंजन, अंतराष्ट्रीय व्यवसाय से संबंधित मामलों के अधिवक्ता महताब आलम ने बताया कि यदि सरकार और निर्यातक मिलकर नए बाजारों में मखाना के प्रचार-प्रसार पर ध्यान दें, तो इस संकट को अवसर में बदला जा सकता है। सरकारी स्तर पर व्यापार समझौतों के जरिये नए बाजार खोले जा सकते हैं, जिससे मखाना उत्पादकों को राहत मिलेगी। इन्होंने कहा कि अमेरिकी टैरिफ मिथिला मखाना के निर्यात के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। हालांकि, मखाना की वैश्विक मांग को देखते हुए, व्यापारियों और उत्पादकों के पास नए बाजारों में प्रवेश करने और उत्पादों में विविधता लाने का विकल्प है। यदि समय रहते सही रणनीति अपनाई जाए, तो मखाना का व्यापार और उत्पादन दोनों ही सतत रूप से बढ़ सकते हैं।

3-4 हजार प्रति िकलो बिक रहा मखाना

अगर अमेरिका भारतीय मखाना पर टैरिफ बढ़ाता है, तो इससे मखाना की कीमत और बढ़ सकती है। वर्तमान में अमेरिका में इसकी कीमत 3,000 से 4,000 रुपये प्रति किलो है, जो टैरिफ बढ़ने के बाद और अधिक महंगी हो सकती है। इससे वहां की खपत पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, जिससे भारत से होने वाले निर्यात में गिरावट आ सकती है। मखाना व्यापारियों को अतिरिक्त लागत, कस्टम नियमों और प्रमाणन प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ सकता है।

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मिथिला क्षेत्र का मखाना भारत के पारंपरिक और पोषण से भरपूर उत्पादों में से एक है। अमेरिका में टैरिफ बढ़ने के बाद नए बाजारों की तलाश और निर्यातकों को समर्थन देने के लिए रणनीति बनाई जा सकती है। यूरोप, मध्य पूर्व और दक्षिण एशियाई देशों में मखाना की बढ़ती मांग को देखते हुए, भारतीय उत्पादकों को वहां अवसर तलाशने होंगे। जिससे मखाना की बाजार हिस्सेदारी बढ़ाई जा सके। मूल्यवर्धित उत्पादों पर ध्यान देने और ऑनलाइन मार्केटिंग प्लेटफॉर्म को मजबूत करने की जरूरत है।

-रमेश चंद्र शर्मा, महाप्रबंधक, उद्योग विभाग

 

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